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पांव में नहीं थे जूते पर होठों पर बुलंद मुस्कान, जानिये ओलम्पिक खिलाड़ी रेवती वीरामनी की संघर्षों भरी कहानी

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द फॉलोअप टीम, चेन्नई:
कहा जाता है कि किसी अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो वह अपनी मंजिल हासिल कर ही लेता है। विपरीत परिस्थितियों को वह अपने आड़े नहीं आने देता। मजबूत हौसले के दम पर हर मुश्किलों का सामना करता है। किसी भी क्षेत्र में मेहनत करने से कामयाबी जरूर मिलती है। इंसान का जुनून उसको  एक सफल व्यक्ति बनाता है। और उन्ही में से एक कहानी है तमिलनाडु के छोटे से गांव की रहने वाली रेवती वीरामनी की। जिसने गांव से लेकर ओलम्पिक तक का सफर तय किया। जिसके सर से माता पिता का साया बचपन में ही उठ गया था। लेकिन उसने इस परिस्थिति को खुद पर हावी ना होने दिया बल्कि उसने खुद का एक मुकाम बनाया। 



माता-पिता का बचपन मेंही निधन हो गया 
इतिहास हमेशा मुश्किलों, इंसान के जुनून, गरीबी, खून पसीने से ही बनती हैं। हमने आज तक ऐसे कई खिलाड़ियों को देखा है जिन्होंने गरीब परिवार में जन्म लिया परंतु उन्होंने अपनी मेहनत से बुलंदियों को हासिल कर लिया है। उन्ही में से एक है रेवती वीरामनी। रेवती की टोक्यो ओलंपिक तक पहुंचने की कहानी काफी संघर्षों से भरी रही है।  जब वह 7 साल की थीं तो उनके पिता का निधन हो गया था। इसके एक साल बाद उनकी मां का भी निधन हो गया। रेवती और उनकी बहन दोनों को उनकी नानी ने पाला। नानी मजदूरी करके जो भी कमाती थीं उससे इनका पालन पोषण करती थीं। 



नंगे पैर ही दौड़ी हर जगह
रेवती जब थोड़ी बड़ी हुई तो प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगीं लेकिन, पैर में जूते नहीं थे। कई बार तो वह नंगे पैर दौड़ी उस वक़्त ही उनके कोच ने उनके टेलेंट को पहचान लिया था। कोच ने पहले रेवती को जूते दिलवाए और उसके बाद कॉलेज के फीस की व्यवस्था की।  रेवती के दोस्तों ने भी आर्थिक रूप से उनकी सहायता की थी। लोग रेवती की नानी को ताना मारते थे कि क्यों वह रेवती को खेलने के लिए भेजती हैं। लेकिन, उन्होंने हमेशा से रेवती को सपोर्ट किया। कई साल तक म्हणत करने पर रेवती की दक्षिणी रेलवे में नौकरी लग गई।  रेलवे ने 400 मीटर की दौड़ 53.55 सेकेंड में पूरी करने पर उन्हें सम्मानित किया। इसके बाद 400 मीटर रिले टोक्यो ओलंपिक के लिए सिलेक्ट हो गईं।