द फॉलोअप एडिट डेस्क, रांची:
'विश्व आदिवासी दिवस' 9 अगस्त को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने 9 अगस्त 1982 को की थी। दरअसल जब संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने महसूस किया कि आदिवासी समाज उपेक्षा, बेरोजगारी और बंधुआ बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित है, तो इन समस्याओं को सुलझाने, आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए पहले कार्यदल (UNWGIP) का गठन किया था। इसकी सिफारिश के बाद UNO ने अपने सदस्य देशों को प्रतिवर्ष 9 अगस्त को 'विश्व आदिवासी दिवस' मनाने की अपील की। आईये जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासंघ का घोषणा पत्र क्या कहता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के घोषणा पत्र में आदिवासियों के अधिकार
अनुच्छेद-1: आदिवासियों को सामूहिक रूप से अथवा व्यक्तिगत तौर पर, उन सभी मानवाधिकारों और मूल स्वतन्त्रताओं का पूरी तरह उपयोग करने का अधिकार है जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा और अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में स्वीकार किये गए है।
अनुच्छेद-2: आदिवासियों और व्यक्तियों, अन्य सभी लोगों एवं व्यक्तियों की भांति ही स्वतंत्र और बराबर है तथा अपने अधिकारों, विशेषकर उनके आदिवासी होने के कारण मिले अधिकारों को इस्तेमाल करने में किसी भी तरह के भेदभाव से मुक्त रहने का अधिकार है।
अनुच्छेद-3: आदिवासियों को आत्मनिर्णय का अधिकार है। इस अधिकार से ही वे अपनी राजनितिक स्थिति स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं और अपने आर्थिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के प्रयास कर सकते हैंं।
अनुच्छेद-4: अपने आत्मनिर्णय के अधिकार का इस्तेमाल करने में आदिवासियों को अपने आंतरिक और स्थानीय मामलों में स्वायत्ता अथवा सरकार स्थापित करने का तथा उनके स्वायत क्रियाकलाप के लिए वित्तीय साधन जुटाने का अधिकार भी होगा।
अनुच्छेद-5: आदिवासियों को अपने विशिष्ट राजनीतिक, कानूनी, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थानों को बनाये रखने और उन्हें सशक्त बनाने का अधिकार होगा और साथ ही यदि वो चाहें तो अपने राज्य के राजनितिक. आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में पूरी तरह भाग लेने का उनका अधिकार भी बरक़रार रहेगा।
अनुच्छेद -6: प्रत्येक आदिवासी को राष्ट्रीयता का अधिकार प्राप्त होगा।
अनुच्छेद-7:
1. आदिवासियों को व्यक्ति के जीवन, शारीरिक, एवं मानसिक निष्ठा,स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार होगा।
2. आदिवासियों को विशिष्ट लोगों की भांति स्वतंत्रता.शांति और सुरक्षा के साथ जीने का सामूहिक अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह के नरसंहार या किसी अन्य प्रकार की हिंसक कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। जिनमे किसी समूह के बच्चों को जबरन किसी अन्य समूह में शामिल करना शामिल है।
अनुच्छेद-8:
1. आदिवासियों और व्यक्तियों को अधिकार होगा कि उनकी संस्कृति का जबरन विलय अथवा नष्ट न किया जाये।
2. राज्य ऐसी प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराएँगे जो निम्नलिखित की रोकथाम और निराकरण करायेगा।
(क) ऐसा कोई कार्य जिसका उद्द्येश अथवा परिणाम उन्हें उनकी विशिष्ट पहचान या उनके सांस्कृतिक मूल्यों या जातीय पहचान से वंचित करना हो-
(ख़) ऐसा कोई कार्य जिसका उद्द्येश अथवा परिणाम उन्हें उनके देश, क्षेत्रों या संसाधनों से वंचित करना हो-
(ग) किसी भी प्रकार का जबरन आबादी स्थांतरण जिसका मकसद अथवा प्रभाव उनके किसकी भी अधिकार का अतिक्रमण या उल्लंघन करना हो-
(घ) किसकी भी प्रकार का जबरन विलय या समन्वय-
(ङ) उनके विरुद्ध नस्ल आधारित अथवा जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने या उकसाने के इरादे से किसी भी प्रकार का दुष्प्रचार-
अनुच्छेद-9: आदिवासियों को अधिकार होगा की संबद्ध समुदाय अथवा देश की परम्पराओ और रीतियों के अनुसार किसी भी आदिवासी समुदाय या देश को अपना ले. इस अधिकार के प्रयोग से किसी भी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न नही होना चाहिए।
अनुच्छेद-10: आदिवासियों को उनके क्षेत्र या देश से जबरन हटाया नही जायेगा, संबद्ध आदिवासियों को स्वतंत्र एवं लिखित पूर्व सहमति के बिना कोई पुनः आबंटन नही होगा और उसके बाद भी न्यायसंगत एवं उचित मुआवजा देने का. और हो सके तो उनके वापस लौट सकने विकल्प का अनुबंध भी होना चाहिए।
अनुच्छेद-11:
1. आदिवासियों को अपनी सांस्कृतिक परम्पराएं और रीतिरिवाज अपनाने और उन्हें अधिक सशक्त बनाने का अधिकार है। इसमें उनका यहाँ अधिकार भी शामिल होगा कि वो पुरातत्वा की दृष्टि से महत्वपूर्ण और ऐेतिहासिक स्थलों, कला वस्तुओं, डिजाइनों, समारोहों, आयोजनों, प्रद्योगिकियों और दृश्य एवं मंचन कलाओ तथा साहित्य सहित अपनी संस्कृति की सभी प्राचीन, वर्तमान और भाव अभिव्यक्तियों की देखभाल संरक्षण एवं विकास कर सके।
2. राज्य आदिवासियों के कानूनों, परम्पराओं और रीतिरिवाजों का उल्लंघन करके अथवा उनकी स्वतंत्र, लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना उनके सांस्कृतिक, बौद्धिक, धार्मिक, और आध्यात्मिक सम्पदा के सम्बन्ध में उनकी किसकी भी शिकायत को, उनके ही सहयोग से पुनः प्रतिष्ठित और विकसित करके, दूर करने का उद्द्येश से शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध करायेगा।
अनुच्छेद-12:
1. आदिवासी लोगों को अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक परम्पराओं, रीती-रिवाजो और समारोहों को मनाने, विकसित करने और पढ़ाने-सिखाने का अधिकार होगा, अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों के रख-रखाव, संरक्षण एवं पूरी गोपनीयता से वहां पहुचाने, अपनी पूजा की चीजो का प्रयोग एवं नियंत्रित करने, तथा अपने नश्वर अवशेषों को अपने यहाँ प्रत्यावर्तित करने का अधिकार होगा।
2. राज्य पूजा अर्चना से जुडी वस्तुओं और मानवीय अवशेषों तथा पहुंच उपलब्ध करने और/या उन्हें प्रत्यावर्तित करने का निष्पक्ष, पारदर्शी एवं प्रभावी तंत्र संबद्ध आदिवासियों के सहयोग से विकसित करेंगे।
अनुच्छेद-13:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा के वे अपने इतिहास, भाषाएं, मौखिक सिद्धांत, लेखन प्रणालिया और साहित्य को फिर सशक्त बना सके, प्रयोग कर सके और अपनी भावी पीढ़ियों को सौंप सके तथा समुदाय, स्थानो और व्यक्तियों के परंपरागत नाम रखे रहे।
2. राज्य प्रभावी उपाय करके सुनिश्चित करेंगे कि उनका यह अधिकार सुरक्षित रहे और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि राजनितिक, कानूनी और प्रशासनिक गतिविधियों को आदिवासी लोग समझ सके और उन्हें भी इन गतिविधियों से समझा जाए तथा जहां जरुरी हो वहां दुभाषियों कि अथवा कोई अन्य उपयुक्त व्यवस्था कि जाए।
अनुच्छेद-14:
1. आदिवासियों को अधिकार है कि वे अपने ही भाषा में पढ़ने-पढ़ाने की, अपनी सांस्कृतिक पद्धतियों के अनुरूप उपयुक्त तरीके से शिक्षा उपलब्ध करने वाली शिक्षा प्रणालियों और संस्थान स्थापित करके उनका नियंत्रण भी अपने पास ही रखेंें।
2. आदिवासियों, विशेषकर बच्चों को बिना किसी भेदभाव के राज्य के सभी स्तरों की और सभी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
3. राज्य, आदिवासियों के सहयोग से सभी आदिवासियों खासकर बच्चो के लिए जिनमे अपने समुदाय से बहार रहने वाले बच्चे भी शामिल है यथासंभव प्रयास करेगा कि वे अपने संस्कृति के अनुरूप और अपनी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा तक पहुंच प्राप्त कर सके।
अनुच्छेद-15:
1. आदिवासियों को अपनी संस्कृतियों, परम्पराओं, इतिहासों और आकांक्षाओं की गरिमा और विविधता बनाये रखने का अधिकार होगा जो उपयुक्त रूप से शिक्षा और सार्वजनिक जानकारी को प्रतिबिम्बित करेगा।
2. राज्य संबद्ध आदिवासियों के सहयोग एवं परामर्श से ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे कि पूर्वाग्रह का सामना किया जा सके और भेदभाव समाप्त हो सके तथा आदिवासी लोगों और समाज के अन्य वर्गो के बीच संयम, आपसी समझ अपर सदभावना पूर्ण सम्बन्ध विकसित हो।
अनुच्छेद-16
1. आदिवासियों को अधिकार है कि वे अपनी भाषा में अपने मीडिया स्थापित कर सके और बिना किसी भेदभाव के हर किस्म के गैर आदिवासी मीडिया में भी पहुंच प्राप्त कर सके।
2. राज्य ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे जिनमने सुनिश्चित हो सके कि सरकारी स्वामित्व वाले मीडिया में आदिवासी सांस्कृतिक विधिवत को समुचित रूप से प्रतिबिम्बित किया जा सके, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के राज्यों को निजी स्वामित्व वाले मीडिया को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह आदिवासी संस्कृति विविधता को समुचित रूप से प्रचारित करे।
अनुच्छेद-17
1. आदिवासियों और व्यक्तियों को लागू अंतर्राष्ट्रीय और घरेलु श्रम कानूनों के अंतर्गत प्रदत सभी अधिकारों का पूरी तरह उपयोग करने का अधिकार होगा।
2. आदिवासियों के परामर्श और सहयोग से राज्य ऐसे विशिष्ट उपाय करेंगे कि आदिवासी बच्चों का आर्थिक शोषण तथा ऐसे कोई भी काम करने से बचाया जा सके जो उनके स्वास्थय क लिए हानिकारक हो सकता हो या जिसमें उनकी शिक्षा में बाधा पड़ती हो या जो उनके शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक अथवा सामाजिक विकास में बाधक हो, तथा यह भी ध्यान रखा जाये कि वे किन पहलुओं से प्रभावित हो सकते हैं और उनके सशक्तिकरण के लिए शिक्षा कितनी आवशयक है।
3. आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे श्रम सम्बन्धी किसी भेदभाव के शिकार न बनाये जा सकें, जिसमें रोजगार या वेतन आदि का भेदभाव शामिल है।
अनुच्छेद-18: आदिवासियों को अधिकार होगा कि उन मामलो में निर्णय प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी हो जिनसे उनके अधिकारों पर असर पड़ सकता है. इसके लिए उनके अपने तौर-तरीको से उनके ही द्वारा चुने गए प्रतिनिधि निर्णय प्रक्रिया में शामिल किये जा सकते हैं और साथ ही वे अपनी स्वयं की आदिवासी निर्णय प्रक्रिया भी स्थापित कर सकते हैंं।
अनुच्छेद-19:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे अपनी राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालिया स्थापित एवं विकसित कर सकें ताकि वे अपनी जीवन निर्वाह और विकास का अंपने साधनों (तौर-तरीको) से आनंद उठाने में सुरक्षित रहें तथा अपनी सभी परम्पराओं और अन्य आर्थिक गतिविधिया में स्वतंत्र रूप से शामिल हो सकेंं।
2. जो आदिवासी जीवन निर्वाह और विकास के साधनों से वंचित हैं उन्हें न्यायसंगत एवं निष्पक्ष समाधान/ मुआवजा पाने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद-21 : आदिवासियों को बिना किसी भेदभाव के अधिकार होगा कि अपनी आर्थिक एवं सामाजिक हालत सुधर सके जिसमे शिक्षा का क्षेत्र, रोजगारम व्यवासायिक प्रशिक्षण वृद्धजनों, महिलाओं ,युवाओं, बच्चों और विकलांगो के अधिकार और ख़ास जरुरतों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
अनुच्छेद-22 :
1. इस घोषणा को कार्यनावित करते समय आदिवासी वृद्धजनों, महिलाओं, युवाओ, बच्चों के अधिकारों और उनकी ख़ास जरुरतो पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
2. आदिवासियों के सहयोग से राज्य यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे की आदिवासी महिलाये और बच्चे किसी भी प्रकार की हिंसा और भेदभाव से पूरी तरह सुरक्षित एवं आश्वस्त रहेंं।
अनुच्छेद-23: आदिवासियों को अधिकार है कि वे विकास के अधिकार को इस्तेमाल करने की प्राथमिकताएं और नीतिया तय कर सकें, विशेषकर आदिवासियों को स्वयं को प्रभावित करने वाले, स्वस्थ और अन्य आर्थिक सामाजिक कार्यक्रम निर्धारित करने का अधिकार होगा और जहां तक संभव हो वे ऐसे कार्यक्रमों को अपनी ही संस्थाओं के माध्यम से लागू करेंगे।
अनुच्छेद-24: आदिवासियों को अपनी परंपरागत औषधियों तथा स्वास्थ्य पद्धतियाँ बनाये रखने का अधिकार होगा, जिनमें उनके महत्वपूर्ण औषधीय पौधे, पशुओं और खनिजों का संरक्षण शामिल है, आदिवासी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के सभी सामाजिक एवं स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का भी अधिकार होगा।
अनुच्छेद-25: आदिवासियों को परंपरागत रूप से अधिकृत और प्रयोग की जा रही जमीनों, भूखंडों, जलक्षेत्रों और तटीय सागरों तथा अन्य संशाधनों पर अपना विशिष्ट आध्यामिक सम्बन्ध बनाये रखने और उसे मजबूत करने का अधिकार है और साथ ही इस बारे में अपनी भावी पीढ़ियों के प्रति दायित्वा निभाने का अधिकार है।
अनुच्छेद-26:
1. आदिवासियों को उन जमीनों, राज्यक्षेत्रों और संशाधनों का अधिकार होगा जो परंपरा से उनके स्वामित्वा, कब्जे या अन्य प्रकार के इस्तेमाल अथवा नियंत्रण में रही है।
2. आदिवासियों को वे जमीन, राज्यक्षेत्र और संशाधन स्वामित्वा में लेने, इस्तेमाल करने. उन्हें विकसित करने अथवा नियंत्रण में रखने का अधिकार है जिन पर उनका परंपरागत स्वामित्व है या किसी परंपरागत कब्जे या इस्तेमाल से उनके पास है या जो किसी भी अन्य प्रकार से उनके नियंत्रण में है।
3. राज्य इन जमीनों, क्षेत्रों और संशाधनों के लिए कानूनी मान्यता एवं संरक्षण प्रदान करेंगे, इस प्रकार की मान्यता देते समय सम्बद्ध आदिवासी लोगों के रीती-रिवाजो, परम्पराओं और जमीन की पट्टेदारी व्यवस्था का पूरा सम्मान किया जायेगा।
अनुच्छेद-27: राज्य सम्बन्ध आदिवासी लोगों की सहमति एवं सहयोग से एक निष्पक्ष, स्वतंत्र, न्यायसंगत, खुली और पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करेंगे जिसमें आदिवासियों के कानूनों, परम्पराओं, रीती-रिवाजों और भू-पट्टेदारी व्यवस्थाओं को समुचित मान्यता दी जाएगी तथा स्वीकार किया जायेगा जिनमें वे जमीने, क्षेत्र और संशाधन भी शामिल है, जिन पर परंपरा से ही आदिवासियों का अधिकार, कब्ज़ा, इस्तेमाल या नियंत्रण रहा है। आदिवासियों को इस प्रक्रिया में भी शामिल होने का भी अधिकार है।
अनुच्छेद-28:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि अपनी शिकायत का समाधान के लिए प्रत्यापर्ण सहित विभिन्न उपाय अपनाये और ऐसा संभव न हो तो जिन जमीनों, क्षेत्रों और संशाधनों पर उनका परंपरागत स्वामित्व या अन्य प्रकार का कब्ज़ा अथवा इस्तेमाल/नियंत्रण हो और उन्हें उनकी स्वतंत्र, लिखित और पूर्व सहमति के बिना जब्त कर लिया गया हो या कब्जे में ले लिया गया हो या नुकसान पहुचाया गया हो उनका समुचित न्यायसंगत मुआवजा दिया जाये।
2. सम्बन्ध लोगों के साथ स्वतंत्र रूप से समझौता किये बिना मुआवजा जमीनों, क्षेत्रों और संशाधनों के रूप में ही समानता. आकार एवं गुणवत्ता पर आधारित होगा या धन के रूप में मुआवजा दिया जायेगा या फिर अन्य उपयुक्त समाधान उपलब्ध कराया जायेगा।
अनुच्छेद-29:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि अपनी जमीनों एवं संशाधनों के पर्यावरण एवं उत्पादक क्षमता का संरक्षण कर सकें, राज्य इस प्रकार के संरक्षण और बचाव के लिए बिना किसी भेदभाव के आदिवासियों के लिए सहायता कार्यकर्म बनाकर उन्हें लागू करेंगे।
2. राज्य यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे कि आदिवासियों की जमीन और क्षेत्रो में. उन लोगो को स्वतंत्र, लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना खतरनाक सामग्रियों का किसी भी प्रकार का भण्डारण अथवा निपटान नहीं किया जायेगा।
3. राज्य आवश्यक होने पर यह सुनिश्चित करने के भी प्रभावी उपाय करेंगे कि ऐसी सामग्री से प्रभावित आदिवासियों द्वारा स्वास्थ्य की निगरानी. देखभाल. और बहाली के कार्यकर्म उपयुक्त रूप से क्रियान्वित किये जाये।
अनुच्छेद-30:
1. आदिवासियों के क्षेत्रो या देशों में सैनिक गतिविधिया नही होंगी जब तक की व्यापक जनहित के कारण अथवा स्वतंत्र सहमति से आदिवासी स्वयं इस आशय का अनुरोध न करें।
2. आदिवासियों की जमीनों या क्षेत्रों का सैनिक गतिविधियों के वास्ते इस्तेमाल करने से पहले राज्य सम्बद्ध आदिवासियों के साथ मिलकर उपयुक्त प्रक्रिया के जरिये व्यापक एवं प्रभावी विचार विमर्श करेंगे।
अनुच्छेद-31:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे अपने सांस्कृतिक धरोहर, परंपरागत ज्ञान और पारम्परिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों तथा अपने विज्ञान, प्रौघोगिकीयो तथा संस्कृति की अभिव्यक्ति को बराबर,सुरक्षित एवं नियंत्रित रख सके,जिसमे मानवीय एवं वंशानुगत संशाधन, बीज, औषधीय, वनस्पतियाँ एवं जड़ी-बूटियों के गुण-दोंषो के प्रयोग,मौखिक परम्पराओं साहित्य, शैलियाँ खेलकूद और परंपरागत खेलकौशल तथा दृश्य एवं मंचन कलाएं शामिल हैंं ,उन्हें यह भी अधिकार होगा कि ऐसी सांस्कृतिक धरोहर,पारम्परिक ज्ञान और परंपरागत सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर अपनी बौद्धिक सम्पदा का बरक़रार, नियंत्रण में, सुरक्षित रख सकें और इनका विकास कर सकेंं।
2. आदिवासियों की सहमति से राज्य इन अधिकारों को मान्यता देने और उनका सुरक्षित प्रयोग सुनिश्चित करने के प्रभावी उपाय करेंगे।
अनुच्छेद-32:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे जमीनों, क्षेत्रों तथा अन्य संशाधनों के विकास की प्राथमिकताएं एवं नीतिया तय कर सकेंं।
2. राज्य आदिवासियों के देशों, क्षेत्रों या अन्य संसाधनों को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना को स्वीकृत करने से पहले उनकी स्वतंत्र एवं सूचित सहमति प्राप्त करने के मकसद से उनके ही प्रतिनिधि संस्थाओं के माध्यम से आदिवासी लोगों के साथ सहयोग एवं परामर्श करेंगे।
3. राज्य ऐसे किसी भी गतिविधि के लिए न्यायसंगत और निष्पक्ष क्षतिपूर्ति का प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराएँगे साथ ही पर्यावरणीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या आध्यात्मिक दृष्टि से हो सकने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के भी प्रयास करेंगे।
अनुच्छेद-33:
1. आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे रीती-रिवाजो और परम्परओं के अनुरूप अपनी पहचान या सदस्यता निर्धारित कर सके, इसमें आदिवासियों के इन राज्यों को नागरिकता पाने के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, जहां वे रहेंं।
2. आदिवासियों को अपने तौर-तरीके के हिसाब से अपनी संस्थाओं की संरचना तय करने और उनके सदस्यता चुनने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद-34: आदिवासी लोगों को अधिकार है कि वे अपने संस्थागत ढांचों और उनके तौर-तरीकों, अध्यात्मिका, परम्पराओं. क्रियाकलाप, धार्मिक कृत्यों और यदि हो तो न्यायिक व्यवस्थाओं या रीतियों को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप प्रेरित, विकसित और सुरक्षित रखने का उपाय कर सकेंं।
अनुच्छेद-35: आदिवासियों को अधिकार है कि वे अपने समुदाय के प्रति सभी व्यक्तियों के दायित्वा तय कर सकेंं।
अनुच्छेद-36: आदिवासियों और खासकर अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से विभाजित हुए आदिवासी लोगों को अपने यहाँ रहने वाले और सीमाओं के पार रहने वाले के साथ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक. राजनितिक. आर्थिक एवं सामाजिक मकसद से संपर्क, सम्बन्ध और सहयोग बनाये रखने और आगे बढ़ाने का अधिकार है।
अनुच्छेद-37:
1. आदिवासियों के राज्यों या उनके उत्तराधिकारियों के साथ की गई सन्धियां,समझौते और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं को मान्यता दिलाने, उनका परिपालन करने और उन्हें लागू करने का अधिकार है।
2. घोषणा में शामिल किसी भी अंश को आदिवासियों के इन संधियों , समझौतों और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं में निहित अधिकारों के हल्का करने या महत्व काम करने वाला नही मन जाना चाहिए।
अनुच्छेद-38: आदिवासियों के साथ परामर्श और सहयोग से इस घोषणा के मकसद की पूर्ति के लिए विधायी सहित राज्य सभी उपयुक्त प्रयास करेंगे।
अनुच्छेद-39: आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे इस घोषणा में उल्लिखित अधिकारों का इस्तेमाल कर सकने के मकसद से राज्यों से आर्थिक एवं तकनिकी सहायता प्राप्त कर सकें और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी ले सकेंं।
अनुच्छेद-40: आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे राज्यों एवं अन्य पक्षों के साथ चल रहे टकरावों और विवादों का समाधान न्यायसंगत और निष्पक्ष तरीकों से करने के वास्ते तुरंत निर्णय ले सकें और साथ ही, अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक अधिकारों के किसी भी प्रकार के उल्लंघन का प्रभावी उपचार कर सकें। इस प्रकार के निर्णय सम्बद्ध आदिवासी लोगों के रीती-रिवाजों, परम्पराओं. नियमों एवं कानूनी प्रणालियों तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों पर समुचित ध्यान दिया जायेगा।
अनुच्छेद-41: संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंग और उसकी विशेषित एजेंसियों तथा अन्य अंतरसरकारी संगठन वित्तीय सहयोग और तकनीकी सहायता के द्वारा इस घोषणा के प्रावधानों को पूर्णतया क्रियान्वित करने में योगदान देंगे, आदिवासी लोगों को प्रभावित करने वाले मामले में उनका सहयोग सुनिश्चित करने के तौर-तरीके भी तय किये जायेंगे।
अनुच्छेद-42: संयुक्त राष्ट्र आदिवासियों के मुद्दे के बारे में स्थायी मंत्र सहित उसकी संस्थाए और राष्ट्र स्तर की एजेंसियों समेत विशेषित एजेंसिया और राज्य इस घोषणा के प्रावधानों को पूरा सम्मान देते हुए इनके पूर्ण क्रियान्वयन के लिए प्रयास करेंगे तथा इस घोसना की प्रभाविकता आंकने के उपाए भी अपनाएंगे।
अनुच्छेद-43: इसमें शामिल अधिकार दुनिया भर के आदिवासियों के अस्तित्व, मान, सम्मान, और कल्याण का न्यूनतम स्तर है।
अनुच्छेद-44: इसमें शामिल सभी अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सभी पुरुष और महिला आदिवासियों के लिए पक्की गारंटी रहेगी।
अनुच्छेद-45: इस घोषणा के किसी भी अंश या प्रावधान को आदिवासियों की मौजूदा या भावी अधिकारों को काम या समाप्त करने का न माना जाये
अनुच्छेद-46:
1. इस घोषणा में शामिल किसी अंश या प्रावधान का अर्थ यह कदापि न लगाया जाये कि किसी भी राज्य, लोगों, समूह, या व्यक्ति को ऐसा कोई अधिकार मिल जायेगा कि वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के विरुद्ध कोई कार्य कर सके अथवा ऐसे किसी भी कार्य को मान्यता या प्रोत्साहन मिल जायेगा जिससे सार्वभौम एवं स्वतंत्र राज्यों की राज्य क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक एकता पर पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
2. प्रस्तुत घोषणा में दिए गए अधिकारों को इस्तमल करते वक़्त सभी के मानवाधिकारों और मूल अधिकारों का सम्मान किया जायेगा इस घोषणा में निहित अधिकारों को इस्तेमाल करते समय केवल कानून द्वारा निर्धारित और अंतरास्ट्रीय मानवाधिकारों के अनुरूप सीमाएं ही लागू होंगी इस तरह की सीमा लगाने में कोई भेदभाव नही बरता जायेगा और इसका एकमात्र मकसद अन्य सभी के अधिकारों और स्वतंत्रता की मान्यता और प्रतिष्ठा सुनिश्चित करना तथा लोकतांत्रिक समाज की न्यायसंगत एवं अनिवार्य मांगों को पूरा करना है।
3. इस घोषणा में शामिल प्रावधानों का अर्थ लगाते समय न्याय, लोकतंत्र, मानवाधिकारों के सम्मान, समानता, भेदभावरहित, व्यवस्था. कुशल प्रशाशन एवं पूर्ण निष्ठा के सिद्धांतो को ही आधार माना जायेगा।