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कर्बल कथा-5: सुबह से लाश उठा रहे हुसैन से कई बार कोशिश करने पर भी अकबर की लाश न उठी

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हैदर रिज़वी, मुंबई:

9 मुहर्रम की रात बीती और 10 मुहर्रम 61 हिजरी का सूर्य अपने गर्भ में इस्लामी इतिहास का सबसे काला दिन लेकर रेगिस्तान की तपती ज़मीन पर चमका। हुसैनी खेमों में सुबह से पानी के लिये बच्चों की चीख़ें गूँज रही थीं, औरतें अपने बच्चों भाइयों और शौहरों को होने वाले युद्ध के लिये तैयार कर रही थीं और ताकीद कर रही थीं कि देखो हुसैन कोई सेना का सरदार नहीं है, मुहम्मद का नवासा है, कहीं तुमसे पहले कोई तीर हुसैन को न लग जाय। फ़ैसला हुआ जो़ह्रर (दोपहर) की नमाज़ के बाद युद्ध शुरू होगा, लेकिन जैसे नमाज़ शुरू हुई तब यजीदी सेना का पहला हमला हुआ। यजीदी सेना ने नमाज़ पढ़ते हुसैन पर तीर बरसाने शुरू कर दिये। जोहरेक़ैन और सईद नमाज़ के सामने खड़े होगये और तीरों को अपनी ढाल और शरीर पर रोकना शुरू कर दिया, ताकि कोई तीर नमाज़ियों को न लगे। सईद तीरों को रोकते हुए वहीं वीरगति को प्राप्त हुए। घायल जोहरेक़ैन ने नमाज़ ख़त्म होते ही हुसैन से इजाज़त ली और घोड़े पर सवार होकर पहला हमला किया। अरब की युद्ध नीति के अनुसार एक से एक का युद्ध होता रहा और जो़हरेक़ैन सबको पार लगाते गये तभी यजीदी कमांडर ने आदेश दिया एक साथ हमला करो लेकिन जो़हरेक़ैन क़ाबू मे न आये, झुँझलाकर कहा तीर चला दो। चारों तरफ़ से घेर कर तीर चलाये गये, जोहरेक़ैन घोड़े से नीचे गिर गये तभी एक सिपाही ने अपना भाला उनके सीने के आर पार कर दिया।

सभी साथियों के मारे जाने के बाद अब हुसैन के परिवार की बारी थी

सभी साथियों के मारे जाने के बाद अब हुसैन के परिवार की बारी थी। अली की बेटी और हुसैन की बहन ज़ैनब ने हुसैन से अपनी बात मानने का वचन लेने के बाद सबसे पहले अपने दोनों बेटों औन तथा मुहम्मद को युद्ध में भेजने की अपील की। एक लम्बी बहस के बाद हुसैन को जैनब की बात माननी पड़ी और आज्ञा देनी पड़ी। इतिहासकारों में इन दोनों बालकों की उम्र के बारे में मतभेद हैं, लेकिन किसी ने भी इनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक नहीं लिखी है। दोनों बालकों ने बहुत बहादुरी के साथ युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए। रण क्षेत्र से एक बच्चे की लाश हुसैन और दूसरे की अब्बास उठा कर लाये। कहते हैं कि जैनब करबला के युद्ध के बाद से अगले एक साल तक कभी अपने इन बेटों के लिये नहीं रोयीं। करबला के युद्ध में हुसैन के बाद सबसे महत्वपूर्ण चरित्र अब्बास का था। अब्बास हुसैन के छोटे भाई और अली के बेटे थे। कहते हैं अली ने बचपन से ही अब्बास को यह कहकर पाला था कि एक समय ऐसा आयेगा जब मैं नहीं रहूँगा और तुम्हारा भाई दुश्मनों में घेर लिया जायगा, उस समय तुम्हें अपने भाई की सहायता करनी है। इतिहास में अब्बास को अली जैसा बहादुर, वैसी ही क़द काठी और वैसे ही युद्धकौशल में निपुण बताया गया है। यजीदी सेना को भी यदि पूरे युद्ध में किसी से भय था, तो वह या तो हुसैन से था या अब्बास से। अब्बास जिस दिन से खेमों में पानी ख़त्म हुआ उसी दिन से हुसैन से युद्ध की आज्ञा मांग रहे थे, किन्तु हुसैन आज्ञा न देते थे। बच्चों की प्यास का तर्क देने पर हुसैन ने तीन दिनों में अब्बास से 7 कुँए खुदवाये, जिनमें से पानी तो न निकला किन्तु प्यासे अब्बास की ताक़त में कमी ज़रूर आ गयी। औन तथा मुहम्मद की लाश लाने के बाद अब्बास ने फिर हुसैन के सामने हाथ जोड़ दिये कि आका़ युद्ध की आज्ञा न दीजिये, कम से कम बच्चों के लिये पानी लाने की ही आज्ञा दे दीजिये, सकीना कई बार मुझसे पानी मांग चुकी है और अब मेरी ग़ैरत जवाब दे चुकी है। हुसैन कुछ नहीं बोले बस उन्होंने सकीना की मश्क(पानी रखने का चमड़े का पात्र) लाकर अब्बास के अलम(झंडा) पर बाँध दिया और अलम पर लिखा "नसरुम्मिनल्‍लाहे फ़तहुन क़रीब" ( खुदा सफलता को पास लाये) मिटा कर " इन्‍नल्‍लाहा मअ स्‍साबरीन" ( खुदा संयम रखने वालों के साथ है) लिख दिया। अब्बास समझ गये पानी लाने की आज्ञा तो मिली है किन्तु युद्ध की नही।
 

 

अब्बास ने तलवार निकाली और घोड़ा नहर की तरफ़ दौड़ा दिया

हुसैन से आज्ञा मिलते ही अब्बास ने तलवार निकाली और घोड़ा नहर की तरफ़ दौड़ा दिया। यजीदी सेना में जो लोग अली को पहले युद्ध करते देख चुके थे, दूर से आता घोड़ा और उसके सवार को देखकर ही समझ गये और घबराकर चिल्लाये, अब्बास आ गये। नहर की सुरक्षा में खड़ी फ़ौजों में अफ़रा-तफ़री मच गयी। सेनानायक चिल्लाते रहे कि एक ही आदमी तो है, क्यों डर रहे हो, मत भागो। मगर सैनिक रुकने का नाम हा नहीं ले रहे थे। कुछ दो चार हिम्मत करके सामने भी आते तो अपनी तलवार उठाने से पहले ही परलोक सिधार जाते। घोड़ा और तलवार दोनों बिजली की तरह चल रहे थे। भागती फ़ौजों ने यजीदी सेना के कमांडर तक ख़बर पहुँचायी कि अब्बास मैदान में आगये हैं। कमांडर ने अपनी बेहतरीन टुकड़ियों को सोने का लालच देकर नहर की और रवाना किया। इधर अब्बास ने अपना घोड़ा नहर में उतार दिया, मश्क भरी, चुललू में पानी उठाया, लेकिन हमीद इब्ने मुस्लिम लिखता है, अब्बास ने जाने क्या सोचा और पानी फेंक दिया। मश्क भरकर अलम के ऊपर बाँधी और भागती फ़ौजों से चिल्लाकर कहा, मैं युद्ध करने नहीं आया हूँ न ही पानी पीने, हुसैन के बच्चों के लिये केवल पानी लेने आया था, यह मश्क गवाह है, और मैं वापस जारहा हूँ। यह सुनते ही भागी हुई फ़ौजें पलटीं, नयी पहुँची सेनाओं ने अपनी कमानें सम्भाली, कमांडर ने हुक्म दिया ख़बरदार कोई तलवारों से लड़ने की ग़लती न करना, तीर चलाओ। चारों तरफ़ से तीर बरसे, एक ने दायाँ हाथ काट गिराया, अलम बायें हाथ में पकड़ा लगाम दाँतों में दबायी, बायाँ हाथ भी कटा गिरती मश्क़ दाँतों से सम्भाली तभी कमांडर चिल्लाया मश्क़ पर निशाना लगाओ। एक तीर मश्क से टकराया पानी अब्बास के शरीर से बहता करबला की गर्म रेत पर गिरा, अब्बास का सर हताशा से झुक गया, घोड़े की रफ़्तार थम गयी। मौक़ा पाकर एक सैनिक ने सर पर बुर्ज़ ( गदा जैसा नुकीला हथियार) मारा, अली का शेर मुँह के बल रेत पर गिरा। हुसैन बेटे अली अकबर का हाथ थामे दौड़े।

 

 

ज़ख्‍मी अब्‍बास का सिर हुसैन ने अपनी गोद में रखा

हुसैन ने आते ही भाई का सर अपनी गोद में रखा। अब्बास ने कहा आका़ मुझे आपकी शक्ल देखते हुए मरना है, मेरी एक आँख में तीर लग चुका है और दूसरी में उसका ख़ून जम चुका है। हुसैन ने ख़ून साफ़ किया। भाई ने भाईँ को आख़िरी बार देखा। अब्बास ने वसीयत की कि मेरा जनाज़ा खेमों तक न ले जायें और यहीं रेत में दबा दें, मैं सकीना से शर्मिंदा हूँ , मैंने पानी लेकर ही लौटने का वादा किया था। हुसैन ने कहा अब्बास तुमने हमेशा मुझे आक़ा हा कहा एक बार भाई कह कल पुकार लो। अब्बास ने भाई कहा और प्राण त्याग दिये। अली जैसा यह बहादुर योद्धा अली जैसे युद्ध कौशल दिखाने के अरमान मन में ही लिये मात्र 32वर्ष की अवस्था में इस संसार से विदा हो लिया। जब तक अब्बास जिंदा थे औरतों और बच्चों को ढांढस थी। जब भी कोई लाश खेमों में आती वे अब्बास को देखते और सोचते कि जब अब्बास जायेंगे लड़ने तो कर्बला का मंज़र बदल जाएगा।किन्तु अब्बास की मौत के बाद हुसैन के खेमों का मंज़र बदल गया. औरतों में मायूसी छा गयी, बच्चों को यकीन होगया कि अब इस ज़िन्दगी में पानी नहीं नसीब होने वाला है। हुसैन के अट्ठारह वर्षीय पुत्र अली अकबर ने हुसैन से युद्ध की इजाज़त मांगी। हुसैन ने मना कर दिया। अली अकबर अपनी माँ के पास गए , माँ ने हुसैन से काफी इल्तेजा की. हुसैन ने कहा अली अकबर की शक्ल हूबहू नाना मुहम्मद साहब से मिलती है। मुझसे नहीं देखा जायेगा कि कोई मुहम्मद साहब की सूरत वाले मेरे बेटे पर हमला करे. किन्तु पत्नी की जिद के आगे हुसैन को झुकना पड़ा, और अकबर रणक्षेत्र में उतरे। अली अकबर जब घोडा लेकर आगे बढे तो उन्हें महसूस हुआ कोई पीछे पीछे आ रहा है, पलट कर देखा तो बूढा बाप कमर पे हाथ रखे चला आता है. हुसैन कभी चलते और कभी रेत में उलझ कर गिर जाते. अकबर वापस आये पिता पुत्र ने दुबारा आखिरी विदा ली।

 

पहलवान ने भाला फेंका पर अकबर ने तलवार से रोक कर दिशाहीन कर दिया

अली अकबर में जवानी का भरपूर जोश और अब्बास का सिखाया हुआ युद्ध कौशल था। हालाँकि 3दिन की प्यास हावी थी. अकबर ने कुछ ही पलों में जंग का मंज़र बदल दिया। घोड़ा हवा से बातें कर रहा था। अली अकबर के घोड़े का नाम "ओक़ाब" था, ओक़ाब एक चिड़िया को कहते हैं जो आसमान में तेज़ी से उड़ते हुए आती है और शिकार को भनक लगने से पहले ही उसे अपने पंजों में जकड कर दुबारा आसमान पर उड़ जाती है। इब्ने ज़्याद बौखला गया। उसने एक साथ का हमला रुकवा दिया और एक -एक के युद्ध का प्रस्ताव रखा. 18 साल के युवक के मुक़ाबिल अरब का एक मशहूर पहलवान भेजा गया। हुसैनी ख़ेमों से युद्ध का मंज़र देख रहे लोगों का दिल दहल गया। पहलवान ने भाला फेंका जिसे अकबर ने तलवार से रोक कर दिशाहीन कर दिया और अपने घोड़े को एड लगाकर अपने जीवन का पहला "तूल का वार" किया। तूल का वार ऐसा वार होता था जो अपने से बहुत ही ताक़तवर पहलवान को हारने के लिए किया जाता था. इसमें दुश्मन का पहला वार रोक कर अचानक उसके सर के बीचो बीच एक वार किया जाता था जिससे दुश्मन घोड़े समेत बीच से आधा आधा हो जाय। यह वार अली द्वारा डेवेलोप किया गया था और इसका इस्तेमाल अली ने मरहब के खिलाफ पहली बार किया था। पहलवान के मरते ही, अकबर ने तलवार हवा में उठायी और हुसैनी ख़ेमों की तरफ मुंह मोड़ा ताकि दूर से अपने पिता का आशीर्वाद ले सकें, इतने में पीछे से हमला हुआ। एक सनसनाती हुई बरछी अकबर की पीठ पर लगी, अकबर पीछे पलटे तभी एक बरछी पेट के आर पार गुज़रकर फँस गयी, अकबर घोड़े से नीचे गिरे. हुसैन खेमों से दौड़े. हुसैन जोर जोर से अकबर अकबर पुकार रहे थे. हुसैन की आँखों के आगे अँधेरा छा गया चिल्लाकर बोले बेटा मुझे आवाज़ दो मुझे कुछ दिख नहीं रहा है. आवाज़ का पीछा करते अकबर के पास पहुंचे. बेटे का सर अपने गोद में रखा. अकबर की बरछी खींचने लगे। हुसैन बेटे को ढाढस बंधाते जाते और और बरछी खींचने की कोशिश करते. या अली मदद कह एक जोर लगाया और बरछी के साथ बेटे का कलेजा निकलकर बाप की गोद में आ गिरा। हमीद इब्ने मुस्लिम लिखता है, हुसैन सुबह से लाश उठा रहे थे, लेकिन उनमें ज़रा भी थकन न थी, किन्तु अकबर की लाश उनसे कई बार कोशिश करने पर भी न उठी. आखिरकार मजबूर बाप ने लाश को अपने सीने से चिपकाकर चलना शुरू किया, लाश का पैर ज़मीन पे घिसटता जाता था, हुसैन कभी गिरते कभी सँभलते और बढ़ते जाते थे .....
 

क्रमश:

पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुहर्रम: आख़िर क्‍या थी कर्बला की कहानी, जिसे भुलाना सदियों बाद भी मुश्‍किल

दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कर्बल कथा-2: माविया की मृत्यु के बाद बेटा यज़ीद खुद खलीफा बन बैठा

तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कर्बल कथा-3: दो लाख के लश्कर में सुकूं ऐसा था तारी, एक सुई भी गिर जाए तो आवाज़ करेगी 

चौथा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कर्बल कथा-4: नवेली दुल्‍हन के सामने ईसाई नौजवान इमाम हुसैन के लिए हो गया शहीद

(लेखक का लालन-पालन उत्‍तर प्रदेश के ओबरा  में हुआ। कर्बल कथा टाइटल से एक किताब प्रकाशित। संप्रति मुंबई में रहकर टीवी और फिल्‍मों के लिए लेखन)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।