द फॉलोअप टीम, रांची : 15 अगस्त के दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। हर साल आज ही के दिन देश के प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस तिरंगे को लेकर हमारा सीना शान से चौड़ा हो जाता है। हम फक्र से उसे सलामी देते हैं, उसे इस रूप तक पहुंचने में कितना लंबा सफर तय करना पड़ा।
पहला राष्ट्रीय ध्वज
साल 1906 में पहली बार भारत का एक आधिकारिक ध्वज फहराया गया था, जिसे साल 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने बनाया था। इसे बंगाल विभाजन के विरोध के दौरान कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान भी फहराया गया था। इसे पहले ध्वज में लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां थीं। ऊपर की हरी पट्टी में 8 आधे खिले हुए कमल के फूल, नीचे की पट्टियों में सूरज और चांद बना था और बीच की पट्टी में वंदे मातरम् लिखा गया था।
पेरिस में फहरा दूसरा ध्वज
दूसरे झंडे को पेरिस में भीकाजी कामा और कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। ध्वजारोहण के बाद सुबह इंडिया गेट पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था और लोगों की करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर भारतीय झंडे को फहराया गया था। यह भी कुछ-कुछ पहले के झंडे जैसा ही था। हालांकि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर सिर्फ एक कमल था। इसमें सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते थे।
तीसरा ध्वज तैयार नहीं हो सका
सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साल 1921 में अपने जर्नल यंग इंडिया में देश के राष्ट्रीय ध्वज की बात लिखी थी। उन्होंने 2 रंग (केसरिया और हरा) का राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने के लिए मछलीपट्टनम के निवासी पिंगली वैंकेयानंद को जिम्मेदारी सौंपी। झंडे में इस्तेमाल किए जानेवाले दोनों रंगों को हिंदू और मुस्लिम समुदाय का प्रतीक माना गया। महात्मा गांधी ने ही इस झंडे के बीच में चरखा जोड़ने की बात कही थी, ताकि यह प्रमाणित किया जा सके कि इसे भारत में निर्मित कपड़े से तैयार किया गया है। गांधी जी साल 1921 में इसे कांग्रेस सेशन में प्रस्तुत करना चाहते थे लेकिन यह समय पर तैयार ही नहीं हो पाया।
1931 में राष्ट्रीय झंडे की स्वीकृति
बाद में जब यह प्रश्न उठा कि यह झंडा सिर्फ दो ही धर्मों का प्रतिनिधित्व कर रहा है तब इसमें अन्य धर्मों के लोगों के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। गांधी जी ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया था कि केसरिया रंग बलिदान, सफेद रंग पवित्रता और हरा रंग उम्मीद का प्रतीक है। मोती लाल नेहरू ने साल 1931 में ही स्वराज झंडे को राष्ट्रीय झंडे की स्वीकृति प्रदान कर दी।
झंडे का फिर बदला स्वरूप
राष्ट्रीय ध्वज को लेकर काफी माथापच्ची के बाद में इस झंडे में फिर बदलाव हुआ। झंडे की बीचवाली सफेद पट्टी में जो नीले रंग का चरखा बना हुआ था, उसकी जगह चक्र ने ले ली, जिसमें 24 तीलियां थीं, जो धर्म और कानून का प्रतिनिधित्व करती हैं। देश की आजादी के मौके पर इसी झंडे को फहराया गया और यही झंडा आज तक उसी स्वरुप में विद्यमान है।