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सुदेश महतो ने सीएम को लिखा पत्र, ब्यूरोक्रेट्स के हाथ में पंचायतों की शक्तियां थमाना राज्य को पीछे धकेलना होगा

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द फॉलोअप टीम रांची

राज्‍य के पूर्व उपमुख्‍यमंत्री और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने पंचायत चुनाव मामले में समूह या समिति बनाकर पंचायतों के संचालन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था वाला ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के बयान से असहमति जाहिर की है। वहीं कहा है कि यह विकल्प कारगर नहीं होगा। अगर सरकार यह कदम उठाती है, तो कई किस्म की विसंगतियां,  अड़चनों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। सुदेश ने यह बातें मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन को बुधवार को लिखे पत्र में कही हैं। जिसमेंआगे लिखा है कि ब्यूरोक्रेट्स के हाथ में पंचायतों की शक्तियां थमाना राज्य को पीछे धकेलने जैसा होगा। इसलिए तथ्यों, परिस्थितियों और शासन-प्रशासन की कार्यक्षमता को देखते हुए पंचायत चुनाव होने तक पंचायतों को ही व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी दी जाए। जरूरत पड़े, तो सरकार कानून में संशोधन करे।

 

मुखिया और जिला परिषद सदस्यों की शक्तियां समाप्त हो जाएंगी

सुदेश महतो ने लिखा है कि पंचायत चुनाव नहीं कराए जाने के बीच इसी महीने झारखंड में गांव की सरकारका कार्यकाल खत्म हो रहा है। पंचायती राज व्यवस्था का काम-यथा योजनाओं का चयन, अनुश्रवण, कार्यान्वयन नौकरशाही के जिम्मे होगा। प्रावधान के तहत वार्ड सदस्य से लेकर मुखिया और जिला परिषद के सदस्यों (64 हजार 700 पंचायत प्रतिनिधियों) की शक्तियां समाप्त हो जाएंगी।

पंचाय़ती राज व्यवस्था होने से ही 15वें वित्त आयोग का फंड मिलेगा

पत्र में लिखा है कि पंचाय़ती राज व्यवस्था कायम होने से ही राज्य को 15वें वित्त आयोग का फंड हासिल होना है। यह विकट तस्वीर उस झारखंड राज्य में उभरेगी, जहां 32 सालों बाद 2010 में त्रिस्तीय पंचायत चुनाव कराकर सत्ता के विकेंद्रीकरण का रास्ता खोला गया और गांव की सरकारकी अहमयित को स्थापित करने की सकारात्मक कोशिश की गई।

धान खरीदी की हालत अच्छी नहीं

सुदेश ने कहा कि वित्तीय साल खत्म होने में महज साढ़े तीन महीना बाकी हैं। अक्तूबर तक लक्ष्य का सिर्फ 32 फीसदी ही राजस्व संग्रह हो पाया है। 86 हजार करोड़ के बजट खर्च करने की बड़ी चुनौतियां सामने हैं। आधे दर्जन महत्वपूर्ण विभागों में बजट की 5 से 20 फीसदी ही राशि खर्च हो सकी है। धान खरीदी की हालत अच्छी नहीं है। रोजगार के अवसर नहीं खड़े किए जा सके हैं।