द फॉलोअप टीम, वाराणसी:
महज 22 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास करके आईएएस (IAS) ऑफिसर बनने वाले गोविंद जायसवाल को तो आप जानते ही होंगे। हालांकि उनके सफल जीवन के पीछे की संघर्ष भारी कहानी शायद ही आपको पता हो। यहां आईएएस गोविंद जायसवाल के संघर्षों की वो कहानी जानिए जो अब तक अनछुआ है। ये कहानी निश्चित तौर पर आपको प्रेरणादायी लगेगी।
बड़े होकर रिक्शा ही चलाना है
बचपन के दिनों में यह लड़का बनारस की गलियों में कुछ दोस्तों के साथ खेलकूद किया करता था। खेलते खेलते एक दिन जब वह अपने एक दोस्त के घर चला गया तो दोस्त के पिता को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्हें लगा कि एक रिक्शेवाले का बेटा उनके बेटे के साथ कैसे खेल सकता है। उसकी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि उनके घर आ गया। एक संपन्न परिवार को रिक्शेवाले के बेटे का घर अच्छा नहीं लगा।
बहन को मिलते थे ताने
गोविंद की बहन घर से पढ़ाई के लिए निकलती तो आस पड़ोस के लोग ताना देते कि तुम्हें तो दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा और बर्तन मांजना चाहिए ताकि इससे तुम दो पैसे कमा कर अपने घर वालों को दे सको। उनकी कुछ मदद ही हो सके। पिता को भी रिक्शा चलाना ना पड़े। लड़के की उम्र महज बारह साल थी इसलिये लोगों की बातें ज्यादा समझ नहीं आई। गोविंद के पिता रिक्शा चलाते थे। पांच सदस्यों का परिवार बेहद ही तंगहाली और गरीबी से गुजर रहा था। दो वक्त का खाना भी मुश्किल था।
कितने बड़े आदमी बन जाओगे तुम
जब यह छोटा सा लड़का पढ़ाई करता है। स्कूल जाता तो लोग उसे ताना देते कि आखिर कितने बड़े बन जाओगे तुम? तुम्हारे पिता तो रिक्शा चलाते हैं तुम भी रिक्शा ही चलाओगे। हो सकता है तुम उनसे ज्यादा एक रिक्शा अधिक खरीद लो। एक रिक्शा तुम खुद चलाओ और बाकी एक भाड़े पर चलवा सको। इससे ज्यादा तुम्हारी कुछ औकात भी नहीं है और ना तुम कुछ कर पाओगे। इन सारी बातों को बच्चे ने ध्यान नहीं दिया और ना ही दिल पर लगाया। वह जानता था कि बोलने वाले तो बोलते रहेंगे लेकिन मुझे कुछ अलग करके दिखाना है। बड़ा आदमी बनना है। तब से ही गोविंद ने ठान लिया कि लोगों को कहकर जवाब नहीं दूंगा बल्कि कुछ बनकर करारा जवाब दिया जाएगा।
मुश्किलों को मात देकर मिली कामयाबी
आज हम जिस आईएएस अधिकारी गोविंद जयसवाल के बारे मे बात कर रहे हैं उन्होंने अपनी जिंदगी में मुश्किलों को मात देकर वो मुकाम हासिल कर लिया है जिसका सपना उन्होंने बचपन मे देखा था। मन में कुछ बड़ा करने की ठान लेने के बाद खेलने कूदने की उम्र में ही गोविंद जायसवाल ने पढ़ाई-लिखाई पर पूरा फोकस कर दिया था। सोते-जागते केवल आईएएस बनने का सपना उनके दिमाग मे चलता था। उनका ज्यादातर समय पढ़ाई में ही बीतने लगा। बताया जाता है कि गोविंद अपने घरों में कानों में रुई डाल कर पढ़ाई किया करते थे ताकि पड़ोस में चलने वाले प्रिंटिंग मशीन और जनरेटर की आवाज से वह डिस्टर्ब ना हों और उनका ध्यान ना भटके।
पढ़ाई के लिए पिता ने बेची पुस्तैनी जमीन
शुरुआती पढ़ाई वाराणसी में खत्म करने के बाद गोविंद सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली आ गए। पिता नारायण जायसवाल के पास वाराणसी में थोड़ी सी जमीन थी और उन्होंने वह जमीन बेचकर अपने बेटे की पढ़ाई के लिए दे दिया। पिता ने बेटे को 40000 देकर दिल्ली भेजा। आईएएस बनने का सपना लेकर गोविंद जयसवाल दिल्ली आ गए। दिल्ली आने के बाद भी गोविंद की मुश्किलें खत्म खत्म नहीं हुई।
दिल्ली में अक्सर रहती थी पैसों की कमी
उसके पास हमेशा पैसों की कमी बनी रहती थी। दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहकर गोविंद हमेशा पैसे बचा कर चलता। अपने खाने-पीने पर कंट्रोल लगा दिया था। चाय भी बंद कर दिया था। शारीरिक रूप कमजोर हो गए थे। लेकिन मन में दृढ़ संकल्प लेकर वह अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते।
गोविंद को कलाम से मिली थी प्रेरणा
2006 में महज 22 साल की उम्र में गोविंद जायसवाल ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। उन्हें 48वां रैंक हासिल हुआ। गोविंद जयसवाल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा मिली है। वह उनसे काफी प्रभावित है। हिंदी मीडियम से सफलता हासिल करने वाले इस आईएस ने कहा था कि महात्मा गांधी के बाद कलाम ही एक ऐसे शख्स है जो हमें सपने देखने की ताकत देते हैं।