(युवा लेखक शाह फ़हद नसीम इतिहास के जानकार हैं। संंप्रति अमरोहा में रहकर स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।
शाह फ़हद नसीम, अमरोहा:
शहीद भगत सिंह के हाथ की लिखी हुई यह चिट्ठी उर्दू में है। भगत सिंह ने ये चिट्ठी अपनी शहादत से बीस दिन पहले 3 मार्च 1931 को अपने छोटे भाई प्रताप को लिखी थी। जिन्हें वो प्यार से कुलतार कहते थे। ये चिट्ठी बड़े भाई की छोटे भाई से मोहब्बत का बेहतरीन नमूना है। चिट्ठी की इबारत ये है:
अज़ीज़ कुलतार!
आज तुम्हारी आंखों में आंसू देख कर बहुत रंज हुआ। आज तुम्हारी बात में बहुत दर्द था। तुम्हारे आंसू मुझ से बर्दाश्त नहीं होते।
बरख़ुरदार! हिम्मत से तालीम हासिल करते जाना और सेहत का ख्याल रखना।
हौसला रखना। और क्या कहूँ शेर भी क्या लिखूं। सुनो:
उसे ये है फ़िक्र है हर दम नया तर्ज़ ए जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इन्तेहा क्या है
दह्र से क्यूँ ख़फ़ा रहें चर्ख़ का क्यूँ गिला करें
सारा जहां अदू सही आओ मुक़ाबला करें
कोई दम का मेहमां हूं ऐ अहले महफ़िल
चिराग ए सहर हूं बुझा चाहता हूं
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली
ये मुश्त ए ख़ाक है फ़ानी रहे रहे न रहे
अच्छा रुख़सत!
ख़ुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं.
हौसले से रहना
नमस्ते! तुम्हारा भाई
भगत सिंह
नोट: दह्र= दुनिया, चर्ख़ = आसमान, अदू= दुश्मन, मुश्त ए ख़ाक = जिस्म, फानी = ख़त्म हो जाने वाला
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(युवा लेखक शाह फ़हद नसीम इतिहास के जानकार हैं। संंप्रति अमरोहा में रहकर स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।