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बंद लफ़्ज़ों की चीख, अभी सुनाई दे तो ठीक वरना..

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मनोज पांडेय, रांची:
झारखंड के युवा हैरान औऱ पेरशान हैं। उन्हे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें। एक नजर अपनी घर की ओर देखता है तो दूसरी नजर सरकार पर है। किस रहनुमा का इंतजार हैं, कभी खुद को दिलासा देता है, तो कभी परिवार के सदस्य को, लेकिन हर कोई हार रहा है। किसी और से नहीं अपनों से ही। झारखंड सरकार के एक फैसले से हजारों घरों में मायूसी है। जितनी मुंह उतने तर्क हैं। लेकिन हर कोई यही कह रहा है गलत हुआ। दरअसल झारखंड सरकार ने पिछली कैबिनेट बैठक में नियोजन नीति को खारिज कर दिया। इसके साथ सरकार ने राज्य में हर तरह की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। हजारों छात्र जो अपनी नियुक्ति पत्र का इंतजार कर रहे थे,  तरह-तरह के सपने देख रहे थे, सरकार के इस फैसले ने सब समाप्त कर दिया। मन में बस सवाल बचे हैं। जुबान चुप है। लेकिन दिल में उठती हलचल को अगर कोई सुन सकता है, तो चीख सुनाई देगी।



सरकार कब नई नियोजन नीति लेकर आएगी। सरकार किस-किस पोस्ट के लिए विज्ञापन निकालेगी। उसमें उम्र की क्या सीमा होगी। सवाल कैसे होंगे। क्या उस इग्जाम में मुझे मौका मिल पायेगा या नहीं। उसका प्रोसेस पूरा होने में कितना वक्त लगेगा। तब तक जिन्दगी कैसे चलेगी। ये सारे सवाल हर छात्रों के मन में उठ रहें हैं, जो एक अदद सरकारी नौकरी की तालाश में अपना तन मन औऱ धन तीनों लगा चुके हैं। सालों की उनकी मेहनंत उनके सामने बीखरती दिख रही है।

सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्ष भी खामोश
सरकार के इस फैसले को लेकर सत्ता पक्ष जहां खामोश है। वहीं विपक्ष की जुबान भी बंद दिख रही है। बीजेपी के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को छोड़ पार्टी के किसी भी नेता ने अपना इस पर कोई पक्ष नहीं रखा। न ही पार्टी इस खामोशी को तोड़ने के लिए कोई आंदोलन के मूड में दिख रही है। हर ओर चुप्पी् है। लेकिन शोर जोर-जोर से हो रहा है। विधायक (सत्ता पक्ष और विपक्ष) मीडियावालों से पूछ रहें हैं, अच्छा इस फैसले से क्या होगा। सीएम साहब खत्म करने से पहले नई नियोजन नीति क्यों नहीं लाएं! सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया। सवाल तो हर तरह के हैं। लेकिन जुबान खामोश हैं।

बुधनी अपने भाग्य को कोस रही है
बुधनी (बदला हुआ नाम) द फॉलोअप से बात करते करते फूट-फूट कर रो पड़ती है। कहती है बचपन में खूब मेहनत की थी। उस समय खाना भी ठीक से नहीं मिलता था। मां-बाप ने जैसे-तैसे पाला। शादी हुई तो लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा। लेकिन शादी के 15 साल बाद ही पति की मौत हो गई। वे भी पैसे की कमी से अगर मेरे पास भी पैसा रहता तो हम अपने पति का इलाज बड़े अस्पताल में कराते। बेटा को घर का काम कर के पढ़ाये। बेटा भी कुछ कुछ करता था। सोचे थे नौकरी हो जायेगा तो इस जमीन पर हम भी घर बना लेंगे। लेकिन बेटा की नौकरी नहीं लग रही है। हर बार खाली बोलता है देखे कुछ दिन और कुछ दिन और। अब तो पूछने पर बोलता है, चुप हो जावो तुमको नहीं समझ आयेगा। क्या हुआ है। अब पता नहीं कब नौकरी होगी या नहीं होगी। हम ऐसा करते हैं कुछ प्राइवेट काम धर लेते हैं। वेतन कम देगा लेकिन बाद में बढ़ाता है। लेकिन उस काम को देने के लिए भी पहले मोटरसाइकल मांग रहा है, बिना मोटरसाइकल के बोलता है काम नहीं कर पाओगे। अब आप बताएं क्या होगा मेरे बेटा का। सरकार के पास इतना पैसा है तो सबको नौकरी क्यों नहीं दे रही है।



अभय कहता है अब मेरी शादी का क्या होगा
द फॉलोअप से बात करते हुए अभय कहता है कि मैंने अपने प्रेमिका के घर वालों से कुछ वक्त मांगा था। कहा था नौकरी हो जायेगी तो शादी कर लूंगा। लेकिन नौकरी होने से तो रहा। लगता है शादी भी नहीं होगी। क्योंकि मेरी प्रेमिका की मां कहती है हम बेटी की शादी सिर्फ सरकारी नौकरी वाले से हीं करेंगे। ताकि उसका जीवन ठीक रहे।

भइया हम लोग की परीक्षा पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा ना
पंचायत सचिव के तौर पर अपनी नौकरी की प्रतिक्षा कर रहे अभियर्थी कहते हैं, भइया हम लोग तो उस 11 जिला से आते हैं, जहां 100 प्रतिशत आरक्षण नहीं था। सरकार ने जो संकल्प वापस ले लिया है, उसमें हम लोग का तो नहीं आ रहा है। इसका मतलब हम लोगों की नौकरी लग सकती है। फिर धीरे स्वर से आपको क्या लगता है। अधिकारी लोग कुछ बोल नहीं रहा है। आप तो मंत्रीजी लोग के पास जाते रहते हैं उ लोग कुछ हमारे बारे में बोल रहें हैं का।