द फॉलोअप टीम, धनबाद:
धनबाद जिला सिविल कोर्ट के जज उत्तम आनंद की मौत मामले में जांच जारी है। गिरफ्तार आऱोपी लखन वर्मा और राहुल वर्मा ने पुलिस को बताया कि शराब के नशे में उनसे ये हादसा हो गया जबकि पुलिस को उनकी बातों पर यकीन नहीं है। अब पुलिस गिरफ्तार ऑटो चालक राहुल वर्मा और लखन वर्मा का ब्रेन मैपिंग, नार्को और साइकोलॉजिकल टेस्ट करवाएगी। सोमवार को ही पुिलस ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी से इसकी अनुमति मांगी थी।
जांच की तिथि और समय लेकर आएं!
अदालत ने मामले में पुलिस को कहा है कि जांच करने वाले संस्थान से तिथि और समय लेकर आएं। तीन तरह की जांच की मंजूरी मांगी गई है। तिथि और समय मिलने के बाद आगे की जानकारी मांगी जाएगी। दूसरी तरफ सोमवार की शाम को पुलिस रिमांड की अवधि पूरी होने के बाद दोनों अभियुक्तों को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया गया। यहां से दोनों अभियुक्तों को कड़ी सुरक्षा के बीच धनबाद मंडल कारा भेज दिया गया। मामले में आज हाईकोर्ट में सुनवाई है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण की खंडपीठ मामले में सुनवाई करेगी।
झारखंड हाईकोर्ट में भी होगी सुनवाई
गौरतलब है कि धनबाद के प्रधान जिला जज की रिपोर्ट पर हाइकोर्ट ने मामले में स्वत संज्ञान लिया था। बाद में इसको जनहित याचिका में तब्दील किया गया। जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और प्राथमिकी के प्रति सीलबंद लिफाफे में मांगी गई है। साथ ही अदालत ने साल 2020 के बाद हुए तमाम अपराधों का ब्योरा भी मांगा है। दूसरी तरफ एसआइटी के प्रमुख एडीजी संजय आनंद लाठकर ने जोड़ापोखर में आरोपियों के परिवार के सदस्यों से पूछताछ की। धनबाद रेलवे स्टेशन का निरीक्षण किया जहां आरोपियों ने बैठकर शराब पी थी।
अदालत ने पुलिस से पूछा ये सवाल
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट की अनुमति के बारे में आवेदन पर अदालत ने पुलिस से पूछा कि वे किस तिथि को ये टेस्ट करवाना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि संबंधित संस्थान से तिथि निर्धारित करवा लें। इसके बाद मंजूरी मांगें। पुलिस ने बताया कि गुजरात के गांधीनगर लैब से ब्रेन मैपिंग टेस्ट करवाया जाएगा। अभियुक्तों ने भी कहा है कि उन्होंने नशे की हालत में घटना को अंजाम दिया। वे किसी भी जांच के लिए तैयार हैं।
ऐसे किया जाता है नार्को टेस्ट
नार्को टेस्ट किसी व्यक्ति से सही जानकारी हासिल करने के लिए किया जाता है। ये एक फॉरेसिंग परीक्षण होता है। पुलिस आऱोपियों का नार्को टेस्ट अदालत के आदेश के बाद विशेषज्ञों से करवाती है। अधिकांश मामलों में देखा गया है कि आरोपी नार्को टेस्ट में सही जानकारी देता है। बहुत कम संभावना रहती है कि आरोपी नार्को टेस्ट में सच ना बोले। जांच के दौरान कुछ दवाइयां दी जाती है जिसमें व्यक्ति पूरे होश में नहीं रहता। उसकी शारीरिक औऱ मानसिक स्थिति ऐसी नहीं होती है कि वो सवालों का जवाब इधर-उधर घूमा सके। किसी को बरगला सके। इससे सच पता चल सकता है।