द फॉलोअप टीम, जोधपुर:
कभी जोधपुर के नगर निगम में झाड़ू पोछा लगतीं थी। आज प्रसाशनिक अधिकारी बन जिला संभालने का मौका मिलने वाला है। यह कहानी है राजस्थान जोधपुर के 40 साल की आशा कंडारा की। आशा का एक उदाहरण है कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता है क्योंकि इस लाइन को साकार करने वाली वह खुद ही जीती जगती उदाहरण हैं। आशा कंडारा को राजस्थान प्रशासनिक सेवा में 728वीं रैंक मिला है। यह कौन सी बड़ी बात है आप सोच रहें होंगे। आपका सोचना भी सही है क्योंकि हर मेहनती छात्र इस मुकाम को हासिल कर ही लेता है। बात आशा कंडारा की कर रहें हैं तो जरूर कुछ ख़ास है। जी हां इनकी संघर्ष की कहानी सुन आपके अंदर भी मेहनत करने का जूनून जग जायेगा और आप भी अपने मुश्किलों से कभी नहीं घबराएंगे।
कौन है आशा कैसे बनी अधिकार
आशा कंडारा ने बताया कि उनके पिता राजेंद्र कंडारा फ़र्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया में अकाउंट ऑफ़िसर थे और मां हाउस वाइफ थी। घर में पढ़ाई का माहौल था लेकिन सामाजिक दबाव के कारण बारहवीं के बाद ही उनकी शादी कर दी गई। आशा पत्रकारों से बात करते हुए बतातीं हैं कि वो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को याद नहीं करना चाहती हैं। उन्होंने बताया कि तलाक़ के समय वो 32 साल की थीं और दो बच्चे भी थे। तलाक के बाद घरवालों ने तो सपोर्ट किया लेकिन समाज को उनका तलाकशुदा होना नाग़वार था। आशा कहतीं है कि ''उस समय लगा कि जिंदगी रुक गई है। तलाक़ के मसले पर रिश्तेदार हमारे विरोध में खड़े हो गए थे और कहते थे कि परिवार का नाम ख़राब कर दिया। घरवाले मुझे ये समझाते थे कि बुरा वक़्त है निकल जाएगा। परिवार मेरे फ़ैसले के साथ था।'' आशा अनुसूचित जाति से हैं। वह कहती हैं कि 'मध्यमवर्गीय परिवार में तलाक़ लेना बड़ी बात होती है तो आप समझ सकती हैं कि मुझ पर क्या गुज़र रही होगी।
2013 में आशा ने दोबारा पढ़ाई शुरू किया
तलाक के बाद आशा कंडारा ने 2013 में दोबारा पढ़ाई शुरू करने का फैसला लिया और 2016 में ग्रेजुएशन पूरा किया। आशा ने बातचीत में बताया कि जब वो नौकरियों के लिए परीक्षाएं दे रही होती तो लोग ताना मारते थे कि क्या तुम कलेक्टर बनोगी? क्या तुम्हारे खानदान में कोई बना है? वहनहीं जानती थी कि कलेक्टर कौन होते हैं। उन्होंने गूगल सर्च किया तो पता चला कि कलेक्टर किसे कहते हैं। उन्होंने कहा कि वह जानती थी कि लोग उन्हें ताने मार रहे हैं। वह उन्हें कभी मोटीवेट नहीं करेंगे। तब से ही उन्होंने ठान लिया था कि उनको प्रशासनिक सेवा में जाना है। वह बताती है कि "मेरी उम्र भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए ज़्यादा थी तब मैंने राजस्थान प्रशासनिक सेवा की तैयारी शुरू की। इसमें तलाकशुदा महिलाओं के लिए उम्र की सीमा नहीं होती है। ''
2018 में आरपीएससी का फॉर्म भरा
आशा ने 2018 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए फ़ॉर्म भरा। 2018 में जब उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा के लिए प्रीलेमिनरी का फ़ॉर्म भरा तो पास हो गई। फिर उन्होंने मेन्स की परीक्षा दी जिसका रिजल्ट नहीं आया था। उसी समय साल 2019 में उनकी नगर निगम में सफ़ाई कर्मचारी के रूप में काम करना शुरू कर दिया। उन्हें बच्चों और घर के ख़र्च के लिए सपोर्ट चाहिए था। वह सफाईकर्मी का काम करने लगी। आशा कहती हैं, 'मैंने कभी झाड़ू लगाने के काम को छोटा नहीं माना।' वह कहती है मेरे पास घर चलाने के लिए नौकरी आ गयी थी लेकिन वह प्रशासनिक सेवा के लिए दूसरे पड़ाव का परिणाम का भी इंतजार कर रही थी।
काफी मुश्किलों से भरी है संघर्ष की दास्तां
आशा सुबह छह बजे घर से निकल जातीं थीं। सफ़ाई करके लौटने के बाद पढ़ना और घर का काम उन्हें थका देता था। वह मेहनत करती रही। परिवार वाले आराम करने को कहते पर उन्होंने खुद को ऐसा ढाल लिया था कि कम सोती थी और देर रात तक पढ़ती थी। फिर तड़के काम पर चली जाती थी। उनकी यह मेहनत रंग लाई। उन्होंने प्रशासनिक सेवा में मेन्स की परीक्षा पास की। इससे उन्हें और हौसला मिला कि वो अब इंटरव्यू भी पास कर लेंगी और ऐसा ही हुआ। आशा ने अभी भी नगर निगम की नौकरी से इस्तीफ़ा नहीं दिया है। वह कहतीं है कि अगर वो कामयाब हो सकती हैं तो कोई भी महिला कामयाब हो सकती है। जोधपुर नगर निगम की मेयर विनीता सेठ कहती हैं कि आशा को देखकर कई लोगों को प्रोत्साहन मिला है।