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सत्य कथा: पकड़ऊआ शादी के लिए जब मुझे धर-दबोचा गया- "हे गोर पड़य छियौ हमरा छोयर दै"

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प्रेम कुमार, बेगूसराय: 

ये उस दौर की कहानी है जब तथाकथित उदारीकरण के आने क्या घोषित होने में भी एक दो साल बाकी थे। मतलब 1989-90 के आसपास मैं इंटरमीडिएट पास कर के ग्रेजुएशन की देहरी पर था। जहाँ तक मेरी बात है तो मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि मैं तब बिल्कुल आदर्श उदाहरण था इस बात का कि एक किशोर लड़के को कैसा नहीं होना चाहिए और मुझे गर्व इस बात का है कि तब कई लोग अपने बच्चों को समझाते हुए मेरी मिसाल भी दिया करते थे कि वैसे हो गए तो समझो जिंदगी खतम है। मतलब नशे की जितनी चीजें मुझे उपलब्ध हो जातीं मुझे किसी से कोई परहेज नहीं था। और बाकी के धतकरमों की तो गिनती भी याद नहीं। मेरे पिता दुनियादार सरकारी अधिकारी थे तो पैसे के दम पर मैंने समय से पहले हर चीज हासिल कर ली थी. बड़ा नाम और बड़े आदमी का aura भी था पिता के पास और उसकी छाँव में मैं भी हमेशा स्पेशल समझा जाता था।

ये वो दौर था जब बिजनेस के उतने मौके नहीं थे और बाजारों में सामान बड़े सीमित हुआ करते थे तो दुनियादार सरकारी अधिकारी बड़े लोग समझे जाते थे। उस दौर में बाबूजी से मेरे संबंध खराब थे क्योंकि उनकी मर्जी के खिलाफ मैंने मैट्रिक पास करने के बाद कॉलेज में आर्ट्स यानि ह्यूमैनिटीज में दाखिला लिया था। ऐसे में मैं जब भी हजारीबाग से बेगूसराय आता महीनों पड़ा रहता और अय्याशियाँ करता रहता। ऐसे ही कई मौकों पर मैं अपने गोतिया के एक हमउम्र भाई से कई बार कहता था कि मैं सारे काम बाबूजी की मर्जी के खिलाफ ही करुँगा अगर बढ़िया लड़की मिल जाए तो मैं शादी भी बिना उनसे पूछे ही कर लूंगा। भाई मेरा मुझ से भी एक डिग्री उपर का खतम था उसका उठना बैठना तभी गोली-पिस्तौल वालों के साथ भी था। अब ऐसे में मेरे उस भाई ने पता नहीं कब मेरे कहे को गंभीरता से ले लिया।

मेरे सगे जुड़वाँ छोटे भाई पढ़ने में माशाअल्लाह ही थे। ऐसे में तय हुआ कि ये बेगूसराय से तो मैट्रिक फर्स्ट डिवीजन में पास कर नहीं पाएंगे सो पड़ोस के समस्तीपुर जिले के शाहपुर पटोरी के किसी स्कूल से इन्हें मैट्रिक परीक्षा दिलाई जाए ताकि परीक्षा में जमकर चलनेवाली चोरी के दम पर ये फर्स्ट डिवीजन से पास कर जाएँ तब ऐसा खूब होता था। सो पटोरी में ब्याही मेरे गांव के रिश्ते की बहन के द्वारा सब जुगाड़ सेट हो गया और मार्च अप्रैल के आसपास दोनों भाइयों को परीक्षा दिलाने के लिए डेरा वगैरह ले लिया गया और उन्हें परीक्षा दिलवाने की जिम्मेदारी मेरी थी। मेरे गाँव के बीसियों विद्यार्थी वहाँ से मैट्रिक परीक्षा में शामिल हो रहे थे सो मेरा हमउम्र गोतिया भाई भी अक्सर वहाँ मिलता था।

तब बीस पच्चीस दिन तक गैप दे दे कर मैट्रिक परीक्षा चलती थी। ऐसे में मैं भी पटोरी अपनी बुलेट लेकर चला गया था। पटोरी मुख्य चौक पर मेरे गाँव के रिश्ते में बहनोई की दवा दुकान पर मैं रोज बैठकी जमाता और पाँच-दस चेले मैंने वहाँ भी अपने पीछे लगा रखे थे। परीक्षा चलने के दौरान सात आठ दिन बीते की एक शुक्रवार को पता चला कि शनिवार-रविवार की बंदी रहेगी और अगली परीक्षा सोमवार को होगी। मैं हर गैप में बेगूसराय चला आता था ये सब जानते थे सो उस शुक्रवार भी मैं तैयार हो कर पटोरी चौक पर अपनी बैठकी में आया फिर जब बेगूसराय चलने के लिए दुकान के सामने खड़ी अपनी बुलेट के पास पँहुचा तो उसका पहिया पंक्चर पाया। गलियाते हुए शाम के पांच बजे के करीब पान दुकान पर खड़े होकर मैं जब सिगरेट धुक रहा था तभी मेरी नजर अपने हमउम्र उसी गोतिया भाई पर पड़ी.वो मेरे पास आया और सिगरेट पान के दौर के बीच उसने जब मेरी समस्या जानी तो कहा काहे परेशान होते हो मेरे पहचान का एक ठेकेदार मित्र अपनी एंबेसडर कार से बेगूसराय ही जा रहा है साथ ही चले चलो।

 

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मैं भी खुशी-खुशी उसके साथ लग लिया। शाम के करीब सात आठ बजे मैं मेरा गोतिया भाई और उसके दोनों ठेकेदार मित्र पटोरी से कार द्वारा बेगूसराय चले। रास्ते भर पान सिगरेट के बीच हम नौ बजे रात के करीब जीरोमाइल पँहुचे वहाँ से बेगूसराय के लिए बाएँ मुड़ने के बजाय कार सीधे बढ़ी तो मैंने पूछा इधर कहाँ? तो कहा गया मीरा मोटेल में खाना खा कर चल देंगे। गाड़ी होटल पर लगी मेरे भाई ने मुझसे पूछा मुर्गा खाओगे तो क्या तुम बियर भी पियोगे मैंने काबिलियत बघारते पूर्ण हरामीपने से मुस्कियाते हुए कहा "इ चूतिया बेगूसराय पँहुचाने के साथ खिला पिला भी रहा है तो होने दो।"


बहरहाल जीरोमाइल में कार्यक्रम के बाद जब हम गाड़ी में बैठे तो बैठने की व्यवस्था में थोड़ा बदलाव हुआ.मतलब पीछे की सीट पर बीच में मैं और मेरे अगल बगल मेरे भाई के मित्र और अगली सीट पर मेरा गोतिया भाई और ड्राइवर.अब फिर मैंने पूछा सीधे काहे जा रहे हो तो कहा गया बीहट के पास से बाएँ मुड़कर रिफाइनरी के पीछे गुप्ता बाँध के बगल वाली सड़क से बेगूसराय चलेंगे इस बीच ग्यारह बज चुके थे। खैर बीहट से मुड़कर हम उस सड़क पर चल रहे थे कि एकाएक गाड़ी दाहिने बाँध पर चढ़ा दी गई मैं कुछ कुछ गलत होने को अब भांप गया था.ऐसे में मैंने जैसे ही अपने बगल वाले को ठेलकर गेट खोलने की कोशिश की तो मुझे अपने पेट पर बाईं तरफ कुछ चुभता सा महसूस हुआ नीचे सर झुका कर देखा तो एक प्यारा सा चमचमाता थ्रीनट्टा रिवाल्वर (कट्टा) मेरी पेट पर अड़ा था साथ ही एक भारी झापड़ कान पर और सुनाई दिया "बरगाही चुप बैठल रह नहीं तो मार के फेंक देंगे।"

मैंने अपने आप को बिल्कुल ढ़ीला छोड़ दिया और गाड़ी के अंदर सुईपटक सन्नाटे के बीच अगले एकाध घंटों तक अंंधेरे में गाड़ी ऊबड़खाबड़ बाँध पर चलती रही। करीब डेढ घंटे बाद गाड़ी बाँध पर रुकी हम सब उतरे नीचे घुप्प अंधेरे में लिपटा कोई गांव नजर आया। तब बाँध से उतर कर पैदल चलते हम चारों एक दालान टाइप जगह पर पँहुचे इस दौरान लगातार कट्टा मेरी पसली को चूमता रहा। दालान पर मैंने कपड़े जूते खोले और उनके द्वारा दी गई लुंगी पहन ली मुझे एक कमरे में बंद कर पता नहीं बाकी सब कहाँ गए। मुफ्त की बीयर का सुरुर भी उतर गया था सो रात के बारह बजे लुंगी-गंजी में बंद कमरे में चौकी पर अकेले बैठा लालटेन को घूरता हुआ मैं अपनी मुफ्तखोरी के नफे-नुकसान का हिसाब लगाता हुआ यही सोचते हुए पता नहीं कब सो गया कि मेरा फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया है।

सुबह पांच बजे के आसपास मुझे उठा कर दो तीन लोग अपने साथ खेतों में ले कर चलने लगे करीब बीस पच्चीस मिनट चलने के बाद चारों तरफ खाली खेत के बीच बनी एक झोपड़ी के पास पँहुच कर हम रुके. मुझे झोंपड़ी के अंदर ठेलकर बाँस के बने गेट को सटा कर बाकी के तीन लोग बाहर रह गए अब मेरे गोतिया भाई का कहीं अतापता नहीं था। आधे पौन घंटे बाद हल्की रोशनी होने पर मैंने देखा कि मेरे सामने एक टोकरी भर कर गोली और पाँच सात कट्टे रिवाल्वर जमीन पर पड़े थे। एक खाली खटिया पड़ी थी सो मैं चट से उठ कर खटिया पर बैठ गया। दस बीस मिनट बाद एक आदमी अंदर आया उसने कहा तुम्हारी शादी करने के लिए ही उठाया है और हम अच्छे परिवार में अच्छी लड़की से तुम्हारी शादी कराएंगे चूंकि तुम्हारा बाप पैसेवाला आदमी है सो वैसे जाते तो दहेज बहुत माँगता और खूब नखरा भी करता इसलिए तुम्हें उठाया है।


मैंने जैसे ही कहा मुझे ब्याह नहीं करना बस अगला इंसान शुरू हो गया दु चार लात दे कर पहले तो ससुर खटिया से नीचे गिराया फिर पाँच सात घूँसे लप्पड़ मार कर बेज्जती खराब अलग किया। इस छोटे से सेशन के बाद वो भलेमानस बाहर चला गया करीब एक डेढ घंटे बाद फिर दूसरा व्यक्ति अंदर आया.उसने बड़े प्यार से कहना शुरु किया देख आज शनिवार है सो आज तो ब्याह होगा नहीं तुम तैयार हो जाओ तब आज तुमको पटना ले चलेंगे जो कहोगे खरीद देंगे और ब्याह में खूब सामानो देंगे। इ देखो दु गो लड़की के फोटु है तुम जिसको पसंद करोगे उसी से कल तुम्हारा बियाह कर देंगे और दो फोटो खटिया पर मेरे सामने रख दिया। मेरे जैसा रसिक आदमी भी तब लड़कियों की फोटु देखने की बजाय गिड़गिड़ाने लगा "हे गोर पड़य छियौ हमरा छोयर दै(पैर पकड़ता हूँ मुझे छोड़ दो)।"

 


जवाबी हमला शुरू हुआ इस बार एगो प्यारे से छोटे बाँस के टुकड़े और लात घूँसों द्वारा मेरी उस भलेमानस ने नन्हे-नन्हे दो तीन ब्रेक लेकर करीब बीस बाईस मिनट खातिरदारी की और फिर बाहर चला गया। मैंने फिर अपने आपको खटिया से नीचे पाया दोनों फोटु खटिया पर रखी नजर आ रही थी पर हा दैव मैं उससे बेजार रोने सिसकने में उलझा हुआ था। एक डेढ घंटे बाद फिर तीसरा आदमी आया और जैसे ही मैंने अपना नकार राग शुरु किया वो फिर चालू हो गया इस दौरान मुझे बताया जा चुका था तुम सिंहमा गांव में हो। मैंने मार खाने के बीच ही टाइम लेकर अपने जान पहचान के हमउम्र उसी गांव के दो तीन खतम टाइप दोस्तों के नाम लिए तो ये कहते हुए कि उन सबको देख लेंगे मेरी सुताई चालू रही।  बीस पच्चीस मिनट बाद वो भी बाहर चला गया. अब तक तीन राउंड भरपूर लात खाने के बाद मैंने अपने शरीर का मुआयना किया तो थोड़े नीले लाल निशानों के साथ पसलियों के साथ कई भिन्न भिन्न जगह अच्छा खासा दर्द भी महसूस किया।

 

अब मैं फुल्ल स्पीड में दिमाग दौड़ा रहा था और एक आइडिया आ भी गया। इस बार जैसे ही दो लोग अंदर आए मैंने छूटते ही उसी गांव के एक दबंग टाइप दारु के कारोबारी आदमी का नाम लिया और कहा उनको बुला दीजिए अगर वो कह देंगे तो मैं शादी कर लूँगा।  चूंकि मेरे पिता आबकारी अधिकारी थे तो उन दबंग सज्जन को कई बार बाबूजी के पास आते जाते देखा था।  आइडिए ने असर डाला वो बाहर चले गए। बाहर से गिटरपिटर की आवाज थोड़ी देर आई फिर शांति का लंबा दौर रहा। इस बीच दिन के दस ग्यारह  बज चुके थे। करीब एक डेढ घंटे बाद फिर दरवाजा खुला और वही दबंग सज्जन नमूदार हुए जिनका मैंने नाम लिया था। वो आए मुझे प्यार से थोड़ा झाड़ा पोंछा और सारी बात जानने के बाद मुझसे कहा अगर जरा भी मन हो तो शादी कर लो लड़की अच्छी है चीज सामान भी खूब देगा। मैंने तुरंत हाथ जोड़ कर बस इतना ही कहा "नय हो चाचा बचाय लै(नहीं हो चाचा बचा लीजिए)।"

इसके बाद वो बाहर गए बातचीत के दौर के बीच मैंने उनको कहते सुना,"इसके बाप को मैं खूब नजदीक से जानता हूँ बहुत झंझटिया आदमी है उपर से दरोगा पुलिस में है बड़का झंझट हो जाएगा सो हम तो कहेंगे मारपीट पर नय तैयार हो तो छोड़ दो बाकी तुम लोग जानो।" फिर थोड़ी देर की शांति के बाद तीनों साथ अंदर आए लात घूँसों का एक और दौर चला जमीन पर रखे कट्टों से धमकाया भी गया पर मैं समझ चुका था ये अब जान से तो नहीं ही मारेंगे सो लगातार नकार राग में नय नय (नहीं, नहीं) करता रहा। अंततः एक डेढ़ बजे  दोपहर के आसपास उन्होंने मुझे झोपड़ी से बाहर धक्का देकर गां.. पर लात मारते हुए कुछ दूर एक पगडंडी की तरफ खदेड़ दिया और पीछे से चिल्लाए भाग जाओ मादर...।

मैं उनकी ही लुंगी गंजी पहने खाली पैर कुँहड़ता हुआ सीधे पगडण्डी पर बढ़ता गया थोड़ी दूर पर देखता हूँ मेरा गोतिया भाई इंतजार कर रहा है जब मैं उसके पास पँहुचा तो उसने अपने हाथ में पकड़े छोटे से बैग का चेन खोलकर अंदर पड़े एक थ्रीनट्टा (कट्टे) और चार पांच गोलियां दिखाते हुए कहा "कुछ होलव नय नै तोरा कुछ होयलै भी नय देतियौ रै (कुछ हुआ तो नहीं तुमको कुछ होने भी नहीं देते)।" मैंने सिसकते हुए कहा "भों....वाले ओजा एक छिट्टा गोली रहय तों झां.. उखाड़तीं रै"(वहाँ एक टोकरी गोली रखी थी तुम इतने से क्या उखाड़ लेते)। बहरहाल हमदोनों चुप्पे चलते हुए मटिहानी ढ़ाला पँहुचे और वहाँ से टमटम पकड़ कर तीन बजे बेगूसराय घर। अगले एक दो सप्ताह खातिरदारी के निशान शरीर पर सहलाते अच्छे तो नहीं ही बीते पर आजतक भूला भी कुछ नहीं मैं।

(प्रेम कुमार बिहार के बेगूसराय में रहते हैं। स्‍वतंत्र लेखन करते हैं।)

 

  • नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।