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समाजवादी-ललक-5: लोहिया और गांधी के वैचारिक रिश्ते के मायने

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भारतीय समाज, राजनीति और धर्म को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले अहम व्यक्तित्व से फॉलोअप रुबरू कराना चाहता है। साबरमती का संत नाम से 50 क़िस्त के मार्फत महात्मा गांधी को समझने की कोशिश की गई थी। वहीं सदी के महाचिंतक स्वामी विवेकानंद पर केंद्रित करीब 20 क़िस्त भी आपने पढ़े होंगे। धुर समाजवादी लीडर डॉ .राममनोहर लोहिया के बारे में आप तीन किस्त पढ़ चुके हैं। गांधीवादी वरिष्ठ लेखक कनक तिवारी की क़लम से नियमित आपको पढ़ना मयस्सर होगा। आज पढ़िये पांचवीं क़िस्त-संपादक

कनक तिवारी, रायपुर:

लोहिया गांधी नहीं थे। वे किसी की अनुकृति हो भी नहीं सकते थे। उन्होंने लिखा भी था- ‘मैं मानता हूं कि गांधीवादी या मार्क्सवादी होना हास्यास्पद है और उतना ही हास्यास्पद है गांधी-विरोधी, या मार्क्स-विरोधी होना। गांधी और मार्क्स के पास सीखने के लिये बहुमूल्य धरोहर है, किन्तु सीखा तभी जा सकता है जब सीख का ढांचा किसी एक युग, एक व्यक्ति से नहीं पनपा हो।‘ (गणेश मंत्री)
      
लोहिया के अनुयायी और जीवनीकार ओमप्रक दीपक के अनुसार लोहिया जर्मनी में ही थे तो गांधी जी का प्रसिद्ध दांडी मार्च हुआ। फिर धरसाना का ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह जिसमें बेहोश हो जाने तक बिना पीछे कदम हटाये मार खाने वालों में लोहिया के पिता हीरालाल जी भी थे। सारे देश में असंतोष की लहरें उठ रही थीं उन्हीं दिनों जेनेवा में राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशन्स) की बैठक हुई तो लोहिया भी वहां पहुंचे, और जब भारतीय प्रतिनिधि के रूप में बीकानेर के माहराजा गंगा सिंह बोलने को खड़े हुए तो लोहिया ने दर्शक दीर्घा से जोर की सीटी बजायी और व्यंग्य भरी आवाजें कसीं। कुछ देर भवन में हलचल हुई।फिर पहरेदारों ने लोहिया को वहां से हटा दिया, लेकिन उस घटना के बहाने हिंदुस्तान की आज़ादी का सवाल एक बार फिर यूरोप के अखबारों में उठा।

 अंगरेजी में लिखे अपने एक महत्वपूर्ण लेख में लोहिया के निकटतम सहयोगी रहे मधु लिमये ने संक्षेप में लोहिया और गांधी के वैचारिक रिश्ते के शुरूआती लक्षणों को लेकर लिखा हैः Dr. Rammanohar Lohia’s contribution to the socialism movement was outstanding. He was the first socialist thinker in India who refused to have his mental horizon limited or dominated by the ideas drawn from the West or the Soviet Union. He took into account the special condition prevailing in the two-thirds of the retarded regions of the world, and especially, India and sought to work out his ideas in consonance with these conditions. Although profounding influenced by Gandhiji’s ideals, he was no slavish follower of Mahatma Gandhi. He was a great votary of the principle of decentralization in all the aspects, but he was sensible enough to say that the solution of India’s problems cannot be acheieved at the technological level of Charkha. He was in favour of an innovative technology involving application of power and small machines which would avoid the pitfalls of centralized prohibition such as concentrarion of wealth, pollution, unemployment, income disparities and so on, and, at the same time, lower costs and raise the productivity and income of ordinary workers, whether working in the fields or in small, family workshops. 

 

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अपने सैद्धांतिक एका और कभी कभी मतभेद या अलग।अलग समझ की लाक्षणिकताओं और संदर्भों के बावजूद लोहिया महात्मा गांधी के बहुत अधिक विश्वास पात्रों में थे। उनका रिश्ता बेहद आत्मीय था। उस स्फुरण में लोहिया ने खुद लिखा है ”गांधी जी के सामने कितनी आज़ादी से बात कही जा सकती थी। कोई संकोच नहीं, किसी व्यक्ति का डर नहीं, पूरी आज़ादी। मैं ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जानता जिसका इस विषय में भिन्न अनुभव हो। किसी और से बातें करने में मैं सतर्कतापूर्वक शिष्ट बना रहता था, परंतु गांधी जी से बातें करते समय मैं लापरवाह हो जाता था, क्योंकि वे मेरे भीतर जो कुछ रहता था उसे उगलवा लेते थे, यहां तक कि तीखी और स्पष्ट भाषा थी। यही मेरी उपलब्धि थी, चाहे अच्छी या बुरी। मेरा ऐसा व्यवहार हर दशा में भयरहित होता, क्योंकि वे भारत के संतरी थे और हमारी हरकत पर नज़र रखते थे। काश कि हर राष्ट्र में एक ऐसा ही संतरी होता, निश्चय ही उस योग्यता का नहीं, क्योंकि ऐसा पुरुष तो कई शताब्दियों में एक होता है, लेकिन एक ऐसा संतरी जिसे सभी आदर दें ताकि वह अपने लोगों के कामों में अंकुश बन सके।”

( जारी)

 

(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं।  छत्‍तीसगढ़ के महाधिवक्‍ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।