द फॉलोअप टीम, रांची
झारखंड हाईकोर्ट ने बेटियों को एक सौगात दी है। झारखंड हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि सेवानिवृत्ति से पहले मरनेवाले कर्मचारियों के माता-पिता और बहन को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पानेवाले आश्रितों की सूची से बाहर रखना अन्यायपूर्ण एवं इस नियुक्ति योजना के उद्देश्य के विपरीत है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एच सी मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की खंडपीठ ने यह व्यवस्था उस रिट याचिका पर विचार करते हुए दी जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट (एनसीडब्ल्यूए) के उपबंध 9-3-3 के तहत निर्दिष्ट आश्रितों की गैर-मौजूदगी में सेंट्रल कोलफिल्ड्स लिमिटेड के मृतक कामगार की मां या बहन को अनुकम्पा के आधार पर क्या नौकरी दी जा सकती है?
सीसीएल में क्या है प्रावधान ?
सीसीएल में सेवाकाल के दौरान मृत कामगारों के आश्रितों को नौकरी मुहैया कराने के प्रावधानों से संबंधित एनसीडब्ल्यूए का उपबंध 9-3-3 कहता है, "इस मामले में आश्रित का अर्थ पत्नी/पति, अविवाहित बेटी, बेटा और कानूनी रूप से गोद लिये गये पुत्र से है। यदि नौकरी के लिए इस तरह का कोई प्रत्यक्ष आश्रित न हो तो भाई, विधवा बहन/ विधवा पुत्र वधू या मृतक के साथ रह रहे तथा उनकी कमाई पर ही पूरी तरह आश्रित दामाद के नाम पर विचार किया जा सकता है।"
माता-पिता भी अनुकम्पा लाभ लेने के हकदार
खंडपीठ ने कहा कि संबंधित उपबंध के तहत मृतक कामगार की पत्नी/पति, अविवाहित बेटी, बेटा और दत्तक पुत्र न होने की स्थिति में अनुकम्पा के आधार पर नौकरी के लिए मृतक के भाई के नाम पर विचार किया जा सकता है, लेकिन आश्रितों की सूची से पिता, माता और बहन को बाहर रखा गया है, जबकि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि संभव है कम उम्र में मरनेवाले कामगार अपने पीछे माता, पिता जैसे आश्रित छोड़ गये हों और उनकी उम्र अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पाने लायक हो।
हाईकोर्ट का मत
इस प्रावधान का सीधा अर्थ है कि यदि कामगार अविवाहित अवस्था में मर जाता है तो उसके भाई को छोड़कर खून का कोई और रिश्ता अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पाने के दायरे में नहीं आयेगा, भले ही ऐसे परिजन मृतक कामगार की कमाई पर ही पूरी तरह आश्रित क्यों न हों। कोर्ट का कहना था कि हमारा सुविचारित मत है कि जहां तक मृतक के माता-पिता का संबंध है, तो वह अपने माता-पिता के गुजारे के लिए नैतिक और कानूनी तौर पर बाध्य था। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता तो उसके खिलाफ दंड विधान संहित (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत कार्रवाई की जा सकती थी। इस दृष्टि से ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि यदि अविवाहित कामगार सेवा के दौरान मर जाते हैं तो उनकी जगह अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पानेवाले आश्रितों की सूची में उनके माता-पिता को नहीं शामिल किया जाये, यदि वे इसके योग्य हों। ऐसे माता-पिता को आश्रितों की सूची से बाहर रखना किसी भी तरीके से न्यायोचित नहीं कहा जा सकता।"
बहन को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता
खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि उसे ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता कि क्यों विवाहित या अविवाहित बहन को इस लाभ से वंचित किया जाये। हाईकोर्ट ने जनरल क्लॉजेज एक्ट की धारा 13 का हवाला देते हुए कहा कि वैसे सभी शब्द जो पुल्लिंग हैं उनके स्त्रीलिंग शब्दों को भी ऐसे मामलों में जोड़ा जाना चाहिए। जैसे यदि एनसीडब्ल्यूए के उपबंध 9-3-3 के तहत आश्रितों की सूची में 'भाई' को रखा गया है तो उसमें 'बहन' को भी शामिल न करने का कोई कारण नहीं दिखता। "यदि बहन को केवल इस आधार पर अनुकम्पा पर मिलने वाले लाभ से वंचित रखा जायेगा कि वह एनसीडब्ल्यूए के उपबंध 9.3.3 के तहत आश्रितों की सूची में शामिल नहीं है, तो यह लिंगभेद का स्पष्ट मामला बनता है और इसे न तो कानून की नजर में उचित ठहराया जा सकता, न ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की कसौटी पर।"
आश्रितों की सूची से बाहर रखना तर्कसंगत नहीं
उसके बाद हाईकोर्ट ने एनसीब्डयूए के उपबंध 9.3.3 के तहत आश्रितों की सूची मं माता-पिता और बहन को शामिल करने के लिए कदम उठाने का सीसीएल को निर्देश दिया। "नौकरी में रहते मृत्यु को प्राप्त कामगार के माता-पिता एवं बहन को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी पानेवाले आश्रितों की सूची से बाहर रखने को तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता, उल्टे यह अनुचित और अन्यायपूर्ण है। यह किसी अन्य तरह की बोधगम्य समझ पर भी आधारित नहीं है और अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति की योजना के उद्देश्य को निष्फल करता है। ऐसे सीधे खून के रिश्तों को अनुकम्पा के आधार पर मिलने वाले लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि वे किसी भी तरह से उसके लिए योग्य हैं, क्योंकि वे कामगार मुआवजा अधिनियम की धारा 2(1) (डी) के तहत आश्रित की परिभाषा के दायरे में आते हैं और इस प्रकार वे अनुकम्पा लाभ लेने के हकदार हैं।