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लिंचिंग भी आतंकवाद का ही दूसरा रूप, रोक लगाने को ठोस कानून बनाए सरकार: काशिफ रजा सिद्दीकी

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द फॉलोअप टीम, रांची: 

झारखंड में लगातार हो रही मॉब लिंचिंग की कड़ी निंदा करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता काशिफ रज़ा सिद्दीकी ने इस विधानसभा सत्र में मोब लीनचिंग के लिए सख्त कानून बनाने की मांग की है।  काशिफ़ रज़ा सिद्दीकी ने कहा कि मृतक आदिवासी हो, दलित हो या मुस्लिम, भीड़ तंत्र द्वारा किसी की हत्या करना इंसानियत की हत्या है। दुर्भाग्यपूर्ण है। 

लींचिंग के खिलाफ साथ आएं सभी समुदाय
उन्होंने कहा कि मोब लींचिंग के विरोध में हर समुदाय को आगे आना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार भीड़ के द्वारा किसी को जान से मार देना एक अलग प्रकार के सोच को जन्म दे रहा है। आने वाले समय में केवल आदिवासी, दलित और मुसलमान ही नहीं बल्कि हर धर्म और समाज के लोगों को इस अमानवीय घटना को झेलना पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा की इस प्रकार की अमानवीय घटनाओं से अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को भी ठेस पहुंच रही है, जिसका लंबे समय में दुष्परिणाम देखने को मिलेगा।

जाति और धर्म के आधार पर हत्याएं गलत हैं!
काशिफ सिद्दकी ने कहा कि जो लोग इस प्रकार से किसी भी समुदाय और जाति विशेष को अपनी नफरत का निशाना बना कर उसकी हत्या करते है उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती और यह सब कुछ सुनियोजित किया जाता है ताकि एक भय का माहौल पैदा किया जाए और ध्रुवीकरण हो। उन्होंने बताया कि एक अध्ययन में इंडिया स्पेंड का कहना है कि 2010 से 2017 के बीच लिंचिंग में मारे गए लोगों में 84 प्रतिशत मुसलमान थे। ऐसा मामला भारत के सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यकों में दहशत का भाव पैदा करता है। मोब लिंचिगं की घटना का रूकना जरूरी है। 

गोरक्षा के नाम पर उन्मादी भीड़ का आतंक है! 
किसी मुसलमान को गायों का तस्कर करार देना या उस पर गोमांस रखने का आरोप लगाना और फिर उनकी लिंचिंग करना आम बात हो गई है। सिद्दकी ने कहा कि सोशल मीडिया पर आपको बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो गोरक्षा के नाम पर हिंदुओं की उन्मादी भीड़ के कानून हाथ में लेने का समर्थन करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में स्वयं कहा था, ‘70-80 प्रतिशत लोग ऐसे होंगे जो असामाजिक गतिविधियों में शामिल होते हैं और गोरक्षक होने का बहाना कर अपने अपराध को छुपाने की कोशिश करते हैं। सरकार को जल्दी ही कानून लाना चाहिए। 

मोब लिंचिंग भी एक तरह का आतंकवाद ही है! 
उन्होंने कहा कि स्थिति आतंकवाद के समान है। आतंकवाद में सड़क दुर्घटनाओं के मुकाबले कहीं कम मौतें होती हैं पर हमारे यहां आतंकवाद के खिलाफ़ सर्वाधिक कठोर कानून हैं क्योंकि ये सिर्फ मौत ही नहीं लाता है। आतंकवाद लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दहशत पैदा करता है, शहरी जन-जीवन को ठप कर देता है। आतंक समाज के लिए अच्छा नहीं है। काशिफ रजा सिद्दकी ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लिंचिंग का भय सताता रहता है।

मुसलमानों को नाम बताने से डर लगता है! 
उन्होंने कहा कि जब वे ट्रेन में सफर कर रहे हों। कोई यदि उनका नाम पूछ दे तो उन्हें बताने में डर लगता है। वो मामला ट्रेन पर लिंचिंग का ही तो था जिसमें सीट को लेकर हुई नोंक-झोंक के बाद एक मुसलमान लड़के की हत्या कर दी गई थी। लिंचिंग पर उतारू हमलावरों ने मुस्लिम युवकों को पहले तो ‘गोमांस खाने वाला’ और ‘राष्ट्र विरोधी’ करार दिया था, और फिर उनमें से एक को छुरा घोंप कर मार डाला था। ऐसे बहुत से मामलों में, पीड़ितों की धार्मिक पहचान ही हत्या की असल वजह नज़र आती है। पिछले कुछ वर्षों में लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि के मद्देनजर इस अपराध के खिलाफ तत्काल कानून बनाए जाने की ज़रूरत आ पड़ी है।

सुप्रीम कोर्ट ने मोब लिंचिंग पर कानून बनाने को कहा
भारतीय सुप्रीम कोर्ट तक ने सरकार को इस तरह का कानून बनाने को कहा है, पर केंद्र सरकार और अधिकतर राज्य सरकारें इस बारे में कोर्ट के निर्देशों का पालन करने को उत्सुक नहीं दिख रही हैं। काशिफ रजा सिद्दकी ने आरोप लगाया है कि लिंचिंग की अधिकांश घटनाएं भाजपा-शासित राज्यों में हो रही हैं। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार को उन्मादी भीड़ को बढ़ावा देने वाली अपनी छवि सुधारने में कोई दिलचस्पी नहीं है। आरोपियों का स्वागत किया जाता है। 

मणिपुर विधानसभा में भीड़ की हिंसा के खिलाफ बिल
दिसंबर 2018 में, मणिपुर विधानसभा ने भीड़ की हिंसा के खिलाफ एक विधेयक पारित किया था। इसके कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रपति की अनुमति की दरकार है क्योंकि इसमें केंद्रीय कानूनों के मुकाबले कहीं अधिक कड़ी सज़ा का प्रावधान है। गत महीने, इसी तरह का एक विधेयक राजस्थान विधानसभा ने भी पारित किया था। राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक 2019 स्वीकृति के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष लंबित है। पश्चिम बंगाल विधानसभा ने भी इस संबंध में एक विधेयक पारित किया है, जिसमें दोषियों को सज़ा-ए-मौत तक के दंड का प्रावधान रखा गया है।

लिंचिंग के खिलाफ कानून लाए केंद्र की मोदी सरकार! 
वास्तव में, केंद्र को राजस्थान के कानून का अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि इसमें कानून के अमल पर भी ध्यान दिया गया है। इसमें लिंचिंग मामलों में पुलिस और अभियोजन पक्ष के लिए एक विशेष प्रक्रिया निर्धारित की गई है। जो दोषियों को सज़ा दिलाने पर लक्षित है, मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की तरह झारखंड सरकार को भी मोब लींचिंग के खिलाफ कठोर कानून बनाना चाहिए, ताकि प्रदेश में किसी विशेष समूह या धर्म के खिलाफ नफरत का माहौल न फैले।