द फॉलोअप टीम, रांची
जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन कहा करते थे कि बीडीओ-सीओ राज को खत्म करना है। मौजूदा हेमंत सरकार ने सीओ सहित राजस्व से जुड़े कर्मचारियों को तो 'अभयदान' देने में जुटी हुई है। झारखंड लैंड म्यूटेशन एक्ट-2020’ के तहत हेमंत सरकार तो इसी काम को अंजाम देना चाह रही है। नए प्रावधान के अनुसार राज्य में अब सीओ राज के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं होगी। इस बिल को कैबिनेट की सहमति भी मिल चुकी है। अब विधानसभा के मॉनसून सत्र में इस बिल पर मुहर लगने की देर है।
फिर पूर्व की सरकार ने खारिज क्यों किया था?
यहां बता दें कि झारखंड लैंड म्यूटेशन एक्ट-2020’ के लिए तैयार बिल में जोड़े गये इस प्रावधान को वर्ष 2019 में ‘रेवेन्यू प्रोटेक्शन एक्ट’ के रूप में पारित कराने का प्रयास हुआ था। राजस्व अधिकारियों की सुरक्षा के नाम पर तैयार इस एक्ट को कैबिनेट में दो बार पेश किया गया था। पिछली सरकार की कैबिनेट ने ये तर्क देकर इस प्रावधान को खारिज कर दिया था कि इससे आम आदमी के अधिकारों का हनन होगा।
बिहार की तर्ज बन रहा है बिल
उल्लेखनीय है कि सुभद्रा देवी बनाम झारखंड सरकार व अन्य के मामले में म्यूटेशन और जमाबंदी के मामले में उभरे विवाद के मद्देनजर राज्य सरकार ने बिहार की तर्ज पर म्यूटेशन एक्ट बनाने का फैसला किया था। बिहार सरकार ने ‘बिहार लैंड म्यूटेशन एक्ट-2011’ लागू है। प्रावधान में म्यूटेशन, जमाबंदी रद्द करने और किसानों की खाता पुस्तिका आदि का उल्लेख है। माना जाता है कि इसी तर्ज पर राज्य सरकार ने ‘झारखंड लैंड म्यूटेशन एक्ट-2020’ बनाने के लिए यह बिल तैयार किया गया है।
बिहार में आम आदमी का अधिकार कायम है
यहां हमें समझना होगा कि ‘झारखंड लैंड म्यूटेशन एक्ट-2020’ और ‘बिहार लैंड म्यूटेशन एक्ट-2011’ में म्यूटेशन, जमाबंदी रद्द करने और खाता पुस्तिका से संबंधित किये गये प्रावधान आदि एक समान है। बिहार के कानून में जमीन के मामले में किसी तरह की गड़बड़ी होने की स्थिति में आम नागरिक को सीओ सहित अन्य अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने या न्यायालय में कंप्लेन केस दर्ज करने का अधिकार है। यानी बिहार सरकार ने आम आदमी के अधिकार को सुरक्षित रखा है, जबकि बिहार के मुकाबले एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ कर झारखंड में आम आदमी के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है।
रसूखदारों को होगा फायदा
दरअसल, इस एक्ट की धारा-22 में किये गये प्रावधान के तहत अब कोई अंचलाधिकारी व अन्य द्वारा जमीन से संबंधित मामलों के निबटारे के दौरान किये गये किसी काम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। कोई न्यायालय इन अधिकारियों के खिलाफ किसी तरह का सिविल या क्रिमिनल केस दर्ज नहीं कर सकेगा। अगर किसी न्यायालय में किसी अधिकारी के खिलाफ जमीन से संबंधित सिविल या क्रिमिनल मुकदमा चल रहा हो, तो उसे समाप्त कर दिया जायेगा। इस तरह से बहुत सी जमीन रसूखदारों को आसानी से मुहैया करा दी जाएगी।
आदिवासी समाज का भला नहीं होगा
पूर्व की सरकार ने इस बिल को लेकर दो बार कैबिनेट की बैठक में यह तर्क देकर खारिज कर दिया था कि इससे आम आदमी के अधिकार का हनन होगा। इसके बावजूद हेमंत सरकार इस बिल पर सीओ राज को क्यों बढ़ावा देना चाहती है? आदिवासी जमीन को लेकर राज्य सरकार के मुखिया कई भूमि कानूनों को लेकर सख्त दिखते हैं, फिर सीओ राज पर वे नरम रवैया क्यों अपनाना चाहते हैं? इससे सबसे अधिक प्रभावित तो गरीब आदिवासी ही होंगे। सबसे अधिक जमीन तो सीओ राज में उन्हीं की लूटी गई है। इसके बावजूद आम आदमी के अधिकार को क्यों छीनने का प्रयास हो रहा है, यह समझ से परे है। अब देखना है कि विपक्ष इस बिल को लेकर क्या रुख अपनाता है, अभी हमें इसका इंतजार करना होगा।