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सोने, चाँदी से नहीं बल्कि शिक्षक और बच्चे से होता है देश महान: राज्‍यपाल

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द फॉलोअप टीम, रांची:

डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व में जहां एक ओर धार्मिकता थी, वहीं दूसरी ओर शास्त्रों के स्वाध्याय में गहरी रुचि थी। उनका मत था कि उचित शिक्षा से ही समाज में मौजूद, समस्याओं का समाधान हो सकता है जिसके लिए अपनी शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षक संसार के रचनाकार हैं। उन पर ही समाज को दिशा प्रदान करने का अहम दायित्व है। युवाओं को गढ़ने में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है। ठीक ही कहा गया है कि कोई भी देश सोने, चाँदी अथवा वहाँ पाये जाने वाले बहुमूल्य सम्पदा के आधार से महान नहीं बनता, बल्कि जिस देश के बच्चे महान होंगे, वही देश महान होगा। निश्चय ही बच्चे और युवा राष्ट्र की संपत्ति हैं और भावी भारत के कर्णधार हैं। आज के इन युवा और बच्चों की नैतिक और चारित्रिक आधारशिला मजबूत बनाई जाए तो यही बच्चे आने वाले वर्षों में स्वर्णिम भारत के सपने को साकार करेंगे। उक्‍त बातें राज्यपाल-सह-झारखण्ड राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति रमेश बैस ने कही हैं। वह शिक्षक दिवस के अवसर पर राँची विश्वविद्यालय द्वारा आर्यभट्ट सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बहैसियत मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे।

शिक्षक का काम ज्ञान को प्राप्त करना और बांटना

राज्‍यपाल ने कहा कि शिक्षक का काम ज्ञान को प्राप्त करना और उसे बांटना है। शिक्षा का लक्ष्य ना सिर्फ ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना होना चाहिये बल्कि निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति भी होनी चाहिये। शिक्षक का जीवन समाज के समक्ष आदर्श रूप में होना चाहिये जिससे वह अपने चरित्र से विद्यार्थियों को प्रेरणा दे सके। महान् दार्शनिक अरस्तू ने कहा है कि जन्म देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए क्योंकि जन्म देने वाले ने तो बस जन्म दिया है, पर शिक्षकों ने जीना सिखाया है। शिक्षक समाज तथा राष्ट्रनिर्माण के महान सारथि हैं। समाज में आपका स्थान बहुत ऊँचा है। शिक्षा को महादान के रूप में स्वीकार किया गया है, शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए परमावश्यक है। आपके असली सम्मान ये गौरवमयी विद्यार्थी ही हैं। 

झारखंड में बने उच्च शिक्षा का ऐसा वातावरण

शिक्षक का असली सम्मान तब होता है जब कोई विद्यार्थी यह कहता है कि उसकी सफलता के पीछे उसके शिक्षक का विशेष हाथ है तथा उनका मार्गदर्शन मिल रहा है। मेरा यह मानना है कि वर्तमान शिक्षा में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर विद्यार्थियों को अच्छी तरह से सुसंस्कारित करने की आवश्यकता है। शिक्षा का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना नहीं होना चाहिये।  मुझे यह कहते हुए हर्ष हो रहा है कि करोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में भी हमारे शिक्षकों ने नई तकनीक के माध्यम से ऑनलाईन कक्षा लेकर विद्यार्थियों का ज्ञानवर्द्धन किया है, उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य किया है। कुलाधिपति के रूप में, आपके इन प्रयासों की सराहना करता हूँ। राज्य में उच्च शिक्षा का ऐसा वातावरण बने कि अन्य राज्यों के विद्यार्थी भी यहाँ आने की मंशा रखे। यह राज्य एक एजूकेशन हब बने। इस कार्य में आप शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।