द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड के सरकारी स्कूल के शिक्षक सुपरहीरोज हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। मतदान पहचान पत्र बना सकते हैं। जनगणना कर सकते हैं। पशुगणना भी। कोरोना काल में वे घर-घर जाकर लोगों का तापमान भी जांच चुके हैं। अब सरकार ने सोचा सरकारी स्कूल के हमारे सुपरहीरोज शिक्षकों ने इतना सब कुछ कर ही लिया है तो इतने पर ही क्यों रूकना। लेट्स ट्राई समथिंग न्यू। तो अब सरकारी स्कूल के शिक्षक बोरा बेचेंगे और सरकारी खजाना भरेंगे। एकदम गलत न्यूज नहीं है भाई। शिक्षा विभाग रियली में चाहता है कि शिक्षक बाजार में बैठकर बोरा बेचें।
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने जारी की चिट्ठी
दरअसल, झारखंड के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने एक चिट्ठी जारी किया है। चिट्ठी राज्य के सभी जिला शिक्षा अधीक्षकों के नाम जारी किया गया। चिट्ठी में लिखा है कि मध्याह्न भोजन के तहत जो खाद्यान्न आता है, उसका बोरा बेचकर लेखा संधारण करना है। बोरा बेचकर जो भी पैसा मिलता है उसका पूरा रिकॉर्ड तैयार करना है। राशि को सरकारी खजाने में जमा करना है। चिट्ठी की भाषा इतना सीरियस है कि लगता है इससे जरूरी और कोई काम हो ही नहीं सकता। आप भी सोचने पर मजबूर होंगे कि कहां शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जरूरी है। कहां जरूरी है कि आधारभूत संरचना मजबूत हो। जरूरी तो बोरा बेचना है। कितना डाउन टू अर्थ वाला काम तो है।
राज्य कार्यसमिति की बैठक में लिया गया था फैसला
चिट्ठी में लिखा है कि 10 दिसंबर 2020 को राज्य कार्यकारिणी समिति की बैठक हुई थी। फैसला किया गया था कि प्रत्येक सरकारी स्कूल में विभिन्न वर्षों के दौरान मध्याह्न भोजन योजना के लिए जिन बोरों में खाद्यान्न लाया जाता था, उनको इकट्ठा करना है। उनका लेखा निर्धारण करना है। बेचना है और बोरा बेचने से मिली राशि को सरस्वती वाहिनी संचालन समिति के खाते में जमा करवाना है। इसका लेखा निर्धारण रोकड़ पंजी में किया जायेगा।
आगामी 15 दिनों में आदेश के अनुपालन का दिया निर्देश
गौरतलब है कि ये आदेश दिसंबर 2020 में ही जारी किया गया था। चिट्ठी में कहा गया है कि अब तक आदेश का पालन नहीं किया गया है। निर्देश दिया गया है कि 15 दिनों के भीतर आदेश का अनुपालन करना है। गौरतलब है कि राज्य खाद्य आयोग ने शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर पूछा कि नवंबर 2020 से मिड डे मील कुकिंग कॉस्ट का भुगतान क्यों नहीं किया गया।