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ICU में है झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था ! कहीं बेड की कमी तो कहीं गर्भवती ने इलाज के अभाव में रास्ते में तोड़ा दम

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द फॉलोअप टीम, रांची: 
झारखंड में स्वास्थ्य विभाग खुद आईसीयू में है। प्रदेश के सुदूरवर्ती जिलों, प्रखंडों, कस्बों और गांवों को छोड़िये, राजधानी में ही स्वास्थ्य महकमे की सांसें फूली हुई हैं। राजधानी रांची में मौजूद राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस और एमजीएम हॉस्पिटल जमशेदपुर की हालत किससे छिपी है। कभी आईसीयू की कमी तो कभी मरीजों को खराब खाना, कभी ब्लैड बैंक में खून की कमी तो कभी किसी मरीज को जमीन पर खाना परोस दिया जाना, जैसे इन दोनों अस्पतालों की नियती और आदत दोनों में शामिल है। अब तो झारखंड हाईकोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणी कर दी है। 

हेल्थ को लेकर झारखंड हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि रिम्स की जो हालत है इसे कोई नहीं बचा सकता। सरकार इसकी दशा सुधारने के लिये कोई भी गंभीर प्रयास करती नहीं दिख रही। कोरोना काल में पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पटरी से उतर गयी। मरीज दर-दर भटकते रहे और सरकार कुंभकर्णी नींद सोती रही। अब तो ये भी सवाल उठने लगा है कि स्वास्थ्य विभाग जब खुद ही गंभीर रूप से बीमार है तो मरीजों का इलाज कैसे करेगा। 



स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव के बीच तनातनी!
झारखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेदारी जिस स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव पर टिकी है उनके बीच तानातनी चलती रहती है। इस तनातनी का नकारात्मक असर स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य व्यवस्था दोनों में ही दिखा है। अस्पताल बेड की कमी से जूझ रहे हैं लेकिन विभाग के लिये ये मुद्दा है ही नहीं। पीपीई किट हो, मास्क हो, दवाईयां हो या फिर वेंटिलेटर, सबकी खरीद में गड़बड़ी और धांधली का आरोप लग चुका है। खुद स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने ही पत्र लिखकर उपकरणों की खरीद प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिये हैं। 

कोरोना काल में ऐसे बरती गयी घोर लापरवाही
कोरोना काल में झारखंड के निजी लैब्स में महीनों तक जांच शुल्कर 4500 रुपया ही रखा गया जबकि बाकी राज्यों में ये जांच आधे से भी कम पैसों में की जा रही थी। कोरोना काल में हॉस्पिटल में बेइंतजामी और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा दिखी। जिस बेड पर एक कोरोना मरीज की मौत हुई, उसी बेड का चादर बदले बिना दूसरे मरीज को भर्ती कर लिया गया। दूसरा मरीज भी कोरोना पॉजिटिव हो गया। गढ़वा के एक कोरोना मरीज की मौत केवल इसलिये हो गयी क्योंकि उसे समय पर एंबुलेंस नहीं मिला। 

कहीं गलती तो कहीं बेरुखी ने ली मरीज की जान
स्वास्थ्य विभाग पर लापरवाही के भी कई आरोप लगे हैं। पहला आरोप ये है कि ईचाक में एक गर्भवती महिला को कहा गया कि उसके बच्चे की मौत हो चुकी है इसलिये गर्भपात करवाना होगा जबकि नवजात जीवित था। डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से उसकी मौत हो गयी। लापरवाही का एक और आरोप चान्हो की घटना को लेकर भी था। मई 2020 में एक युवक को करंट लगा गया। युवक चान्हो का रहने वाला था। उसे मरा बताकर पोस्टमॉर्टम के लिये भेज दिया गया। कागजी कार्रवाई में चार से पांच घंटे बीत गये और इस बीच युवक की मौत हो गयी। बरियातु में एक युवक बीमार हुआ। हॉस्पिटल ने एंबुलेंस भेजी लेकिन बिना किसी जरूरी उपकरण के। 
युवक हॉस्पिटल पहुंचता इससे पहले ही उसकी मौत हो गयी। सरकारी हॉस्पिटल डॉक्टरों की कमी का हवाला देते हैं। 120 डॉक्टरों का पीजी का परिणाम आ गया लेकिन उनकी नियुक्ति में काफी विलंब किया गया। आरोप ये भी है कि क्वारंटीन सेंटर में भर्ती तबलीगी जमात की तीन कोरोना मरीज गर्भवती हो गयी। 



गिरिडीह में इलाज के अभाव में गर्भवती की मौत
फरवरी महीने में गिरिडीह में एक गर्भवती महिला और उसके नवजात बच्चे की मौत इलाज के अभाव में हो गयी। महिला सुरजी मरांडी को प्रसव पीड़ा हुई लेकिन उसे अस्पताल पहुंचाने के लिये एंबुलेंस नहीं मिला। सुरजी ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया। इलाज नहीं मिला और बच्चे की मौत हो गयी। बाद में हॉस्पिटल के गेट पर सुरजी ने भी दम तोड़ दिया। मौत के बाद भी दुश्वारियां खत्म नहीं हुई। सुरजी और उसके बच्चे के शव को गांव तक ले जाने के लिये हॉस्पिटल ने वाहन उपलब्ध नहीं कराया। परिजन खाट में ही उनका शव ले गये। 
सुरजी को उसके परिजन जैसे-तैसे खटिया में लादकर हॉस्पिटल ले गये थे लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोई चिकित्सक मौजूद नहीं था। सुरजी की मौत ने जता दिया कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था बैसाखी पर है।