logo

95 वीं सालगिरह: जब नूरजहां ने कहा हाय रब्‍बा न-ना करते भी सोलह आशिक़ हो गए न !

13052news.jpg

मनोहर महाजन, मुंबई:

सात दशकों तक अपनी जादुई आवाज़ से दर्शकों और संगीत-प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाली हरदिल अज़ीज़ सिंगिंग-स्टार 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहां (21 सिंतबर1926-23 दिसंबर 2000) की आज 95 वीं सालगिरह है। इस अवसर पर उनके जीवन की कुछ ख़ास घटनाओं का मैं यहां ज़िक्र करना चाहूंगा, जो 1971 के आसपास उनका इंटरव्यू करते हुए मुझे ज्ञात हुईं थीं और जिनसे बहुत कम लोग वाकिफ़ हैं। नूरजहां ने अपने जीवन में जो भी किया पूरे दिल से किया। गाना रिकॉर्ड करते समय नूरजहां उसमें अपना दिल और जज़्बात लगा देती थीं। वो ज़्यादातर दोपहर डेढ़ बजे के आसपास गाने की रिकॉर्डिंग शुरू करती थीं। उनके बदन में एक अजीब सी तासीर थी। रिकॉर्डिंग के दौरान उन्हें पीठ पर पसीना बहुत आता था। घंटे भर की रिकॉर्डिंग के अंदर उनकी पीठ पर पसीने की बूंदें दिखनी शुरू हो जाती थीं। रिकॉर्डिंग ख़त्म होते होते वो पूरी तरह से पसीने से सराबोर हो जाती थीं। यही वजह है कि वो 'डीप गले' का ब्लॉउज़ पहनती थीं। रिकॉर्डिंग के बाद वो खूब सारी आइसक्रीम खाती थीं।

 


एक बार पाकिस्तान की एक नामी शख़्सियत राजा तजम्मुल हुसैन ने उनसे हिम्मत कर पूछा कि आपके कितने आशिक रहे हैं अब तक? "सच ही बता दीजिए"-उन्होंने गिनाना शुरू किया..कुछ मिनटों बाद उन्होंने तजम्मुल से पूछा- "कितने हुए अब तक?" तजम्मुल ने उंगलियों पर गिनते हुए,बिना पलक झपकाए जवाब दिया- "अब तक सोलह!"..
नूरजहां ने ठेठ पंजाबी में कहा-
"हाय रब्ब! ना-ना करदेयां वी 16 हो गए ने!"

 

रेडियो सिलोन के स्टूडियो में (1971) नूरजहाँ।

1998 में जब नूरजहां को पहली बार दिल का दौरा पड़ा, तो उनके एक चाहने वाले और नामी पाकिस्तानी पत्रकार ख़ालिद हसन ने लिखा था-"दिल का दौरा तो उन्हें पड़ना ही था. पता नहीं कितने दावेदार थे उनके!..और पता नहीं कितनी बार वह धड़का था उन लोगों के लिए जिन पर मुस्कराने की इनायत की थी उन्होंने !!." नूरजहाँ के बारे में एक और कहानी भी मशहूर है. तीस के दशक में एक बार लाहौर में एक स्थानीय पीर के भक्तों ने उनके सम्मान में 'सूफ़ी-संगीत' की एक ख़ास शाम का आयोजन किया। एक लड़की ने वहाँ पर कुछ नात सुनाए। पीर ने उस लड़की से कहा, "बेटी कुछ पंजाबी में भी हमको सुनाओ." उस लड़की ने तुरंत पंजाबी में तान ली, जिसका आशय कुछ इस तरह का था..."इस पाँच नदियों की धरती की पतंग आसमान तक पहुँचे!.." जब वह लड़की यह गीत गा रही थी, तो पीर को हाल आ गए (अवचेतन की अवस्था में चले गए)। थोड़ी देर बाद जब वो होश में आये तो लड़की के सिर पर हाथ रख कर बोले- "लड़की तेरी पतंग भी एक दिन आसमान को छुएगी." ये लड़की नूरजहाँ थीं।

नूरजहाँ मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का बेहद सम्मान करती थीं। एक बार एक समारोह में मलिका पुखराज ने कहा कि "फ़ैज़ मेरे भाई की तरह हैं।" जब नूरजहाँ की बारी आई तो वो बोलीं कि "मैं फ़ैज़ को भाई नहीं महबूब समझती हूँ।" एक बार फ़ैज़ से एक मुशायरे में उनकी मशहूर नज़्म '..मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग'.. सुनाने के लिए कहा गया, तो वो बोले 'भाई वो नज़्म तो अब नूरजहाँ की हो गई है। वही उसकी मालिक है! अब उस पर मेरा कोई हक़ नहीं रहा!' एक बार किसी ने उनसे पूछा कि आप कब से गा रही हैं? नूरजहाँ का जवाब था, "मैं शायद पैदा होते समय भी गा ही रही थी!" सन 2000 में जब उनकी मौत हुई, तो उनकी एक बुज़ुर्ग चाची ने कहा था-"जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके पिता से कहा था- यह लड़की तो रोती भी सुर में है!"

L to R: लेखक मनोहर महाजन, इंदिरा हीरानंद, दलवीर सिंह परमार, नूरजहाँ, विजयलक्ष्मी और जमालदीन।

 

कुछ और जरूरी बातें 
◆उनकी फ़ेवरिट डिश थी 'मसूर की दाल' जिसमें खूब सारी इमली और मिर्चें डाली हों।
◆गहनों और अच्छी साड़ियों का उन्हें बेहद शौक़ था.उन्हें चटकीले रंग पसंद थे।
◆1945 में नूरजहां ने फिल्म 'बड़ी मां' में कंठकोकिला लता मंगेशकर व आशा भोंसले के साथ एक्टिंग की।
◆1945 में नूरजहां की आवाज़ में दक्षिण एशिया में पहली बार किसी महिला की आवाज़ में क़व्वाली रिकॉर्ड की गई। '..आहें न भरे, शिकवे न किए..' यह कव्वाली उन्होंने जोहराबाई अंबालेवाली और कल्याणी के साथ गाई।
◆नूरजहां ने 12 मूक फ़िल्मों में भी काम किया था।
◆नूरजहां ने हिन्दी,उर्दू,सिंधी, पंजाबी जैसी भाषाओं में 10 हजार से ज्यादा गाने गाए।
◆नूरजहाँ को लोगों की फ़रमाइश पर गाना सख़्त नापसंद था।
◆23 दिसम्बर 2000 में 74 वर्ष की आयु में वो इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गईं।
◆अगर आज वह ज़िंदा होतीं तो हमारे साथ 95 सालगिरह मना रही होतीं.।
 

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।