मनोहर महाजन, मुंबई:
हिंदी फिल्म उद्योग में पचास से अधिक वर्षों की लंबी पारी के बाद अभिनेता त्रिलोक कपूर का 33 साल पहले आज ही के दिन 23 सितंबर, 1988 को निधन हो गया था। वह हिंदी सिनेमा के महान कलाकार पृथ्वीराज कपूर के छोटे भाई और प्रसिद्ध तिकड़ी राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर के चाचा थे.इस प्रकार वो प्रसिद्ध कपूर परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे.पर आज शायद ही कोई उन्हें याद करता है! या उनके बारे में बात भी करता है!! 18 साल की छोटी सी उम्र में 1933 में बनी फ़िल्म बेहद क़ामयाब पौराणिक फ़िल्म 'चार दरवेश' से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नायक के रूप में की.असंख्य फिल्मों में 'भगवान शिव' का किरदार निभाते हुए उन्होंने अपार लोकप्रियता हासिल की। उनकी फिल्म 'हर हर महादेव' (1950) जिसमें उन्होंने देवी पार्वती की भूमिका निभाने वाली निरूपा रॉय के साथ भगवान शिव की भूमिका निभाई थी, जो अपने समय की सुपरहिट फ़िल्म थी और जिसने उन्हें रातोंरात पौराणिक फिल्मों के सुपर स्टार में बदल दिया। इस फ़िल्म के बाद वे और निरूपा रॉय दोनों 'शिव-पार्वती' के रूप में घरेलू नाम बन गए. उनके पोस्टर और तस्वीरें जनता को बेची जाने लगीं. कहा जाता है कि उन्होंने निरूपा राय के साथ अठारह फिल्मों में अभिनय करने का रिकॉर्ड बनाया था।
पेशावर, पाकिस्तान में जन्मे त्रिलोक कपूर ने अपने प्रारंभिक वर्ष पेशावर में बिताए और उस युग के कई युवाओं की तरह हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना चाहते थे। लेकिन पिता बशेश्वरनाथ कपूर जो अपने छोटे बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, उन्होंने अपने बड़े बेटे पृथ्वीराज कपूर को मदद के लिए लिखा। पृथ्वीराज उस समय कलकत्ता (अब कोलकाता) में फिल्मों में एक अभिनेता के रूप स्थापित होने के लिए संघर्ष कर रहे थे। पिता के निर्देश पर त्रिलोक कपूर 1928 में अपने भाई पृथ्वीराज के पास चले गए और बाद में उनके साथ ही तीस के दशक के अंत में बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए। पृथ्वीराज कपूर ने अपने भाई को भी फिल्मों में आने में मदद की। परिणाम स्वरूप त्रिलोक को निर्देशक प्रफुल्ल घोष की फिल्म 'चार दरवेश' में कानन देवी के साथ 'नायक' के रूप में पहली फिल्म मिली। उनकी दूसरी फिल्म 'सीता' थी, जिसमें उन्होंने भगवान राम के जुड़वां बेटों में से एक 'लव' की भूमिका निभाई थी।जबकि पृथ्वीराज कपूर ने 'भगवान राम' और दुर्गा खोटे ने 'देवी सीता' की भूमिका निभाई थी। इसके बाद उन्होंने निर्देशक हेम चंदर को 'असिस्ट' करना शुरू किया और उनके अधीन पांच साल काम किया। इसके साथ साथ उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे-छोटे रोल भी किए।
1947 में लोकप्रिय प्रेम कहानी 'मिर्ज़ा साहिबां' में 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहां के साथ उनकी जोड़ी बड़ी हिट साबित हुई और फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सफल रही और इसके सभी गाने भी हिट हुए. इस फ़िल्म में त्रिलोक कपूर में उनके भतीजे राज कपूर की छवि नज़र आती है.यह आखिरी फिल्म थी जिसमें विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने से पहले नूरजहां ने अभिनय किया था। 1951 में त्रिलोक कपूर फ़िल्म 'प्यार की बातें' में नरगिस के साथ नायक के रूप में आये। फिल्म में उनके अन्य सह-कलाकार प्राण और कुक्कू थे। फिल्म का निर्देशन अख्तर हुसैन ने किया था। सुपर-हिट "हर हर महादेव" के बाद, यह निर्देशक विजय भट्ट के साथ उनका जुड़ाव बना रहा, जो 1954 में निर्मित फिल्म 'रामायण' में भगवान शिव की भूमिका में ढला। त्रिलोक कपूर को कई तरह की 'पौराणिक फिल्मों' में अभिनय करने को मिला। 'हर हर महादेव' के बाद उन्होंने फ़िल्म 'वामन अवतार' (1955) में 'भगवान विष्णु' के बौने अवतार- 'वामन' की भूमिका निभाई, जहां अभिनेता सप्रू ने राजा बाली की भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1948 में फिल्म राम भक्त हनुमान में भगवान राम की भूमिका निभाई। उन्होंने 1954 में फ़िल्म 'चक्रधारी' में भगवान विट्ठल की भूमिका निभाई। 1970 की फिल्म भगवान परशुराम में, जहां अभि भट्टाचार्य ने मुख्य भूमिका निभाई थी एक बार फिर त्रिलोक कपूर ने 'भगवान शिव' की भूमिका निभाई और इस बार अभिनेत्री तबस्सुम 'पार्वती बनी।उनकी कुछ अन्य फिल्मों में 'शिव शक्ति', 'शिव कन्या', 'जय महादेव', 'गणेश जन्म', 'गणेश महिमा', 'अली बाबा','अमर राज', 'अलख निरंजन', 'वीर भीमसेन', 'दसावतार, 'माया मछिन्द्र', 'श्री विष्णु भगवान', 'ईश्वर भक्ति' आदि शामिल हैं।
उन्होंने अपने स्वयं के बैनर 'टीके फिल्म्स' के तहत प्रोडक्शन में क़दम रखा और 1962 में फ़िल्म 'शिव पार्वती' का लेखन और निर्माण किया। उनके बड़े बेटे विजय कपूर फिल्म में सहायक निर्देशक थे, जबकि उनके दूसरे बेटे विक्की कपूर सहयोगी निर्माता थे। फिल्म में अभिनेत्री रागिनी ने पार्वती का किरदार निभाया था. फिल्म का निर्देशन एस एन त्रिपाठी ने किया था जो इसमें एक अभिनेता और संगीतकार भी थे। त्रिलोक कपूर ने कई फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी कीं। उन्होंने जज, प्रोफेसर,डॉक्टर, ग्रामीण जैसी नगण्य भूमिकाएँ भी निभाईं। 1985 में रिलीज़ हुई आर.के.फिल्म्स की फ़िल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में भी उन्हें देखा गया था। जब वह पौराणिक फिल्मों में अभिनय कर रहे थे तो उन्हें हमेशा किसी भगवान के रूप में तैयार किया जाता था। इसलिए उनके असली चेहरे की विशेषताएं दर्शकों को कभी दिखाई नहीं दीं। जब मैंने उनकी फ़िल्मोग्राफ़ी देखी, तो जानकर आश्चर्य हुआ कि वह इतने सालों में इतनी सारी फिल्मों का हिस्सा रहे हैं और मैंने उन्हें देखा है, फिर भी मैं उन्हें तुरंत पहचान नहीं पाया। अब जब मुझे पता है कि वह कैसे दिखते हैं, तो मैंने उसकी कुछ फिल्में देखीं और उसके द्वारा निभाए गए किरदारों का पता लगाने की कोशिश की। मुझे वो 'जय संतोषी मां', 'दोस्ताना', 'सौदागर', 'सरगम', 'रास्ते का पत्थर', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'प्रेम कहानी', 'दो चोर', जैसी कई फिल्मों का हिस्सा नज़र आये। इस प्रकार त्रिलोक कपूर आधी सदी से अधिक समय से इस उद्योग का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने सिनेमा के विकास में अपने तरीके से योगदान दिया है।
मुम्बई महानगर पालिका ने मुंबई के एक उपनगर 'चैंबूर' में उनके नाम पर एक सड़क का नाम "त्रिलोक कपूर मार्ग" रखकर फिल्मों में उनके योगदान पर मोहर लगाई ह।. "मिर्ज़ा साहिबां' के 'मिर्ज़ा' और 'हर हर महादेव' कर 'भगवान शिव' के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
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