logo

हस्तक्षेप: -भीमा कोरेगांव मामला सुधा भारद्वाज की जमानत, जनसंघर्ष की कहानी

15628news.jpg

सुसंस्कृति परिहार, भोपाल:

भीमा कोरेगांव कांड में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच एकमात्र महिला सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया था पिछले तीन साल बाद उन्हें मुंबई हाईकोर्ट ने जमानत दी है। कौन हैं सुधा और उन्होंने ऐसा क्या किया जिसकी वजह से उन्हें गिरफ़्तार होना पड़ा। सुधा का जन्म अमरीका के मैसाच्युसेट्स में हुआ था, उनके माता-पिता के भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने भी अपना अमरीकी पासपोर्ट छोड़ दिया। वे भारत आ गई और आगे चलकर वो एक प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता बनीं और ट्रेड यूनियन में भी शामिल रहीं। वे खनिजों से समृद्ध छत्तीसगढ़ में हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों के अधिकारों के लिए लड़ती रहीं हैं। छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य हैं, जहां देश के कुछ सबसे ग़रीब और शोषित लोग रहते हैं। सुधा देश की एक यूनिवर्सिटी में लॉ पढ़ाती रही हैं। उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था। छत्तीसगढ़ में तीस सालों तक ग़रीबों के लिए काम करने वाली सुधा, न्याय के लिए लड़ रहे कई लोगों की उम्मीद बन गईं। उन्होंने 2015 में एक पत्रकार से कहा था, "मैं जानती हूं कि कई लोग मेरे दुश्मन बन जाएंगे, इसके बावजूद मैं अपना संघर्ष जारी रखूंगी।" वे निरंतर उत्पीड़न दूर करने गरीबों, शोषितों के साथ संघर्ष करती रहीं। नक्सलियों के बीच काम करने के कारण उन्हें भी माओवादी समझा गया।

 

Bhima-Koregaon case: Supreme Court lets Maharashtra police probe 'urban  Naxals'

 

मगर उन पर कहर बरपाया गया पुणे के भीमा कोरेगांव की घटना से। इसलिए उसकी पृष्ठभूमि जाने बिना इस घटना को नहीं समझा जा सकता। विदित हो कि पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता है भीमा कोरेगांव। एक जनवरी 2018 को इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी। बात यह हुई कि मराठा सेना यह युद्ध हार गई थी और कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से जीत हासिल हुई थी। बाद में भीमराव आंबेडकर यहां हर साल आते रहे। यह जगह पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई, जहां हर साल उत्सव मनाया जाने लगा।

एक जनवरी 2018 का दिन था। इस गांव में "शौर्य दिन प्रेरणा अभियान" के बैनर तले कई संगठनों ने मिलकर एक रैली आयोजित की, जिसका नाम यलगार परिषद रखा गया। शनिवार वाड़ा के मैदान पर हुई इस रैली में 'लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने' की बात कही गई थी। दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला ने रैली का उद्घाटन किया, इसमें कई नामी हस्तियां मसलन- प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद, आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी आदि मौजूद रहे। इनके भाषणों के साथ कबीर कला मंच ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए। अगले दिन जब भीमा कोरेगांव में उत्सव मनाया जा रहा था, आस-पास के इलाक़ों- मसलन संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी। कुछ देर तक पत्थरबाज़ी कुछ चली, कई वाहनों को नुकसान हुआ और एक नौजवान की जान चली गई।

Bhima Koregaon case: Chorus demanding release of activists grows |  SabrangIndia

 

इस मामले में दक्षिणपंथी संस्था समस्त हिंद अघाड़ी के नेता मिलिंद एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई। पुणे की ग्रामीण पुलिस ने ऐलगार परिषद से जुड़ी दो और एफ़आईआर पुणे शहर के विश्रामबाग पुलिस थाने में दर्ज की गईं। पहली एफ़आईआर में जिग्नेश मेवानी और उमर ख़ालिद पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था। दूसरी एफ़आईआर तुषार दमगुडे की शिकायत पर यलगार परिषद से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज की गई। इस एफ़आईआर के संबंध में जून में सुधीर धवले समेत पांच एक्टिविस्ट गिरफ़्तार किए गए। इसके बाद 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा और वरनॉन गोन्ज़ाल्विस को गिरफ़्तार कर लिया।

पुलिस ने कहा कि दलितों को भ्रमित करना और असंवैधानिक और हिंसक विचारों को फैलाना प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) की नीति है और इसी के तहत सुधीर धवले आदि कई महीनों से पूरे महाराष्ट्र में भड़काऊ भाषण दे रहे थे और अपने नुक्कड़ नाटकों और गीतों आदि में इतिहास को ग़लत रूप में पेश कर रहे थे. पुलिस ने कहा है कि इसी वजह से भीमा कोरेगांव में पत्थरबाज़ी और हिंसा शुरू हुई। यलगार परिषद में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज बीजी कोलसे पाटिल भी शामिल थे। उन्होंने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यलगार परिषद को 300 से ज़्यादा संगठनों का समर्थन हासिल था।

याद करें कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी फादर स्टेन स्वामी की मौत हो गई है। वो लंबे समय से बीमार थे। स्टेन स्वामी की मौत के बाद अन्य आरोपियों को रिहा करने की मांग तेज हो गई। इस केस में एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज व अन्य ने जमानत के लिए याचिका लगाई थी।बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को एल्गार परिषद में एक कथित आरोपी सुधा भारद्वाज डिफॉल्ट जमानत दे दी। अधिवक्ता-कार्यकर्ता भारद्वाज को अदालत ने तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दी है लेकिन समान आधार पर दायर की गई आठ अन्य लोगों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

 

यह भी ज्ञात हुआ है कि विल्सन के वकील के निवेदन पर लैपटॉप की जो इलेक्ट्रॉनिक कॉपी मिली है इसके बाद फर्म आर्सेनल ने इसका विश्लेषण किया। बुधवार को विल्सन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में इस रिपोर्ट को शामिल किया और निवेदन किया कि उनके क्लाइंट के खिलाफ मामलों को निरस्त किया जाए। सुदीप पासबोला ने वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में कहा कि आर्सेनल की रिपोर्ट से साबित होता है कि उनके क्लाइंट निर्दोष हैं।

कुल मिलाकर ये मामला गरीब शोषितों को जीवन जीने का अधिकार सिखाने वालों और उनके हक के लिए संघर्षरत लोगों के खिलाफ है। वे नहीं चाहते कि दलित और गरीब तबका अपने संवैधानिक अधिकारों को जाने। इसलिए उन पर आंदोलन भड़काने की तथाकथित कहानियां गढ़ी गई। कम्प्यूटर में जो अनर्गल मेटर प्रविष्ट कराया गया उसकी भी पोल खुल ही गईं है। वह दिन दूर नहीं जब हमारे तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सिर्फ़ जमानत ही नहीं मिलेगी बल्कि वे बाइज्जत बेदाग बाहर आयेंगे। जिन्हें तीन साल से अधिक समय से निबद्ध कर रखा गया है। वे संविधान, लोकतंत्र और देश बचाने की बात करते रहे हैं। यह आज बड़ा गुनाह है। धीरे धीरे अंधेरा छट रहा है। नई सुबह आने को है।सुधा जी और तमाम साथियों को क्रांतिकारी सलाम। 

 

 

( सुसंस्कृति परिहार वरिष्ठ लेखिका हैं। संप्रति मध्यप्रदेश के दमोह में रहकर स्वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।