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झारखंड में कुर्मी या कुड़मी जाति को ST का दर्जा देने की मांग गलत- बंधु तिर्की

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द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड में कुर्मी या कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने की मांग लम्बे अरसे से चल रही है। इस मांग को लेकर कई बार आंदोलन भी हुआ। सदन के बाहर और सड़क पर भी लोगों ने इस मांग के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की, लेकिन शायद ये पहली बार होगा जब किसी राजनेता ने इस मांग को गलत ठहराया है। 

कुर्मी की जनसंख्या अधिक
झारखंड में कुर्मी नेता दावा करते हैं कि उनकी जनसंख्या करीब 22 प्रतिशत है। इसे बहुत बड़े वोट बैंक के तौर पर देखा जाता है। राज्य की 81 विधानसभा और 12 लोक सभा की सीटों में से कई सीट ऐसी हैं,जहां कुर्मी या कुडमी निर्णायक भूमिका में हैं। शायद इसी वजह से आज तक किसी नेता ने इस मांग को सिरे से खारिज नहीं किया है, लेकिन बंधु तिर्की ने शुक्रवार को बात करते हुए कहा ये मांग उचित नहीं है। 

File Photo

रघुवर सरकार ने दिया था आश्वासन 
कुर्मी या कुड़मी समुदाय 1950 तक अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल था। बाद के समय में जनगणना के बाद इन्हें ओबीसी में शामिल कर लिया गया। झारखंड सरकार कुर्मी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करेगी। यह घोषणा तब के संसदीय कार्य मंत्री सह प्रभारी कार्मिक मंत्री सरयू राय ने 3 मार्च 2016 को विधानसभा में की थी। उन्होंने कहा था कि झारखंड जनजातीय कल्याण शोध संस्थान से अध्ययन करा कर केंद्र को रिपोर्ट भेजी जाएगी। वह दरअसल विधायक जगरनाथ महतो, जयप्रकाश भाई पटेल और नागेन्द्र महतो के ध्यानाकर्षण का जवाब दे रह थे। विधायकों ने ध्यानाकर्षण सूचना में कहा था कि झारखंड राज्य के कुर्मी जाति को संविधान की धारा 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में पुन: शामिल किया जाए।

बंधु ने कहा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सुदृढ़ हैं महतो
मांडर से कांग्रेसी विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि कई रिपोर्ट में कुर्मी जाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सुदृढ़ बताया गया है। इसलिए इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग गलत है। यदि यहमांग मानलीगई तो हरसमाज स्‍वयं को आदिवासी कहने लगेंगे। इसके साथ एसटी का दर्जा देने की मांग करने लगेंगे। ऐसे मामले में भावुक होकर राजनीति नहीं करनी चाहिए। वोट बैंक की सियासत से बचना चाहिए।

क्या कहना है कुर्मी नेताओं का
कुछ कुर्मी नेताओं का कहना है कि एचएच रिसले की मानव ग्राफिक रिसर्च रिपोर्ट के आधार पर छोटानागपुर और उड़ीसा की कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति माना गया है। यह रिपोर्ट 1891-92 में द ट्राईब्स एंड कास्ट ऑफ बेंगाल नामक पुस्तक में प्रकाशित की गई है। वर्ष 1913 में भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें 13 जातियों के साथ कुर्मी जाति को जनजाति माना गया है। हम पहले भी जनजाति न थे लेकिन कुछ नेताओं के षड़यंत्र से हम उस सूची से बाहर हो गए। आज भी हमारे घरों औऱ गांवों में सारी परंपरा जनजातियों की ही तरह की जाती है। सरकार चाहे तो पुन: शोध संस्थान से अध्ययन करा कर केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजे।