द फॉलोअप टीम, रांची:
साहिबगंज महिला थाना प्रभारी रूपा तिर्की के संदेहास्पद स्थिति में मौत हुई। शुरुआती दौर में मौत को आत्महत्या कहा गया। शव जिन परिस्थितियों में मिला वो हत्या की ओर इशारा करता है। साथ ही, परिवार के सदस्यों की बातों से यह भी स्पष्ट है कि रूपा तिर्की स्थानीय स्तर पर व्यवस्थागत गैर-आदिवासी शोषण का शिकार भी थी। परिवार के अनुसार शोषण में उनके साथ काम करने वाली दो पुलिस कर्मी व झामुमो के स्थानीय नेता आरोपित हैं। आदिवासी जनाधिकारी महासंघ ने उक्त बातें कहीं।
रूपा तिर्की मामले में राज्य सरकार की चुप्पी अस्वीकार्य
झारखंड जनाधिकार महासंघ ने कहा कि अभी तक इस मसले पर राज्य सरकार की चुप्पी अस्वीकार्य है। सरकार तुरंत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व में रूपा तिर्की के मौत की न्यायिक जांच गठन करे। महासंघ ने मांग की है कि जांच दल में महिला संगठनों, मानवाधिकार संगठनों आदि के प्रतिनिधि भी शामिल हो। साथ ही, आरोपियों को तत्काल सभी पदों से हटाया जाय।
आदिवासी संरक्षण के लिए महागठबंधन को स्पष्ट जीत
महासंघन ने कहा कि विधान सभा चुनाव में झारखंडी-विरोधी भाजपा के विरुद्ध लोगों ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया। अभी भी प्रशासन और पुलिस में मनुवादी सोच के संरक्षण की घटना बार-बार देखने को मिल रही है। हाल के कुछ उदाहरण – दिसम्बर 2020 में बोकारों के आदिवासी बंशी हंसदा को स्थानीय गैर-आदिवासी पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया। आज तक न आरोपी पर प्राथमिकी दर्ज हुई और न ही बंशी को मुआवज़ा मिला। कुछ दिनों पहले हजारीबाग के चौपारण में दलित छक्कन भुइयां की पुलिस की पिटाई से मौत हो गयी लेकिन अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई। अब रूपा तिर्की की संदिग्ध मौत हो गयी।
रूपा तिर्की संदिग्ध मौत मामले की न्यायिक जांच की जाये
आदिवासी जनाधिकार महासंघ ने कहा कि झारखंडी अपेक्षाओं पर बने इस सरकार से आशा है कि प्रशासन और पुलिस में मनुवादी सोच को किसी प्रकार का संरक्षण न मिले एवं सबके लिए आदिवासी-दलित अधिकारों का संरक्षण स्पष्ट प्राथमिकता हो। महासंघ ने घटना की न्यायिक जांच की मांग की।