द फ़ॉलोअप डेस्क, रांची:
पृथ्वी बहुत बड़ी है और हम आम तौर पर अपनी ज़िन्दगी में इतने मसरूफ़ रहते हैं कि धरती की अनेक जगह के बारे में हमें पता ही नहीं होता। ऐसी-ऐसी जगहे हैं जिसके बारे में आम तौर पर लोगों को जानकारी तक नहीं होती है। सूरज का प्रकाश पृथ्वी के कोने-कोने में पहुंचता है। पर कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां कई महीनों तक सूरज की रोशनी नहीं पड़ती। इटली के एक गांव में साल के तीन महीने सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती। जिसके बाद यहां रहने वाले लोगों ने अपना ही सूरज बना लिया। हैरान हो गए ना ये जानकर, लेकिन ये सच है। दरअसल यहां सूरज की रोशनी न पहुंचने पर लोगों ने जुगाड़ लगाकर अपना ही एक आर्टीफिशियल सूरज बना लिया। जी हां, आपने अब तक इंसान को साइंस एंड टेक्नोलॉजी की मदद से नकली आंख, हाथ पांव बनाते हुए सुना होगा, पर इटली के इस गांव के लोगों ने अपना सूरज ही बना लिया।
पहाड़ों से घिरा हुआ इटली का विगल्लेना गांव
इटली का विगल्लेना गांव चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है, जिसकी वजह से सूरज की रोशनी गांव के अंदर तक पहुंच नहीं पाती। यह गांव मिलान के उतरी भाग में करीब 130 किमी नीचे बसा है। यहां महज 200 लोग ही रहते हैं। यहां के लोगों को लम्बे समय तक सूरज का दर्शन करने नहीं मिलता है। लंबे समय तक सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाने की वजह से इस गांव में बीमारियां फैलने लगती थी. लोग रोशनी नहीं मिल पाने की वजह से नकारात्मक मानसिकता, नींद की कमी, मूड खराब रहने जैसी समस्याओं से जूझते थे और अपराध भी बढ़ जाता था। ऐसे में इस गांव के लोगों ने ठंड के मौसम में रोशनी के लिए जो व्यवस्था की उसे जानकर आप भी उनकी तारीफ करने लगेंगे। नवंबर से फरवरी तक तक यहां सूरज की रोशनी की एक किरण भी नहीं पहुंचती। जिसके बाद गांव के एक आर्किटेक्ट और इंजीनियर ने गांव वालों की इस परशानी को हल करने का एक रास्ता निकाला। उन्होंने गांव के मेयर की मदद से साल 2006 में 100000 यूरो की मदद से 8 मीटर लंबा और 5 मीटर चौड़ा स्टील के शीट का निर्माण किया जिस पर सूर्य की रोशनी पड़ते ही पूरे गांव में उजाला आ जाता है और विगल्लेना गांव का अपना आर्टिफीशियल सूरज बना दिया।
सूरज के लिए स्टील की चादर और दर्पण का प्रयोग
सूर्य के मार्ग का अनुसरण करने के लिए दर्पण को कंप्यूटर से जोड़ा गया है. इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर विगनेला के मेयर पियरफ्रेंको मिडाली ने कहा, "यह आसान यह आसान नहीं था, हमें इसके लिए उचित सामग्री ढूंढनी थी, तकनीक के बारे में सीखना था और विशेष रूप से पैसों का इंतजाम करना बड़ी चुनौती थी। ये दर्पण कुछ इस तरह लगाया गया जिससे सूरज की रोशनी सीधे शीशे पर पड़े और वह गांव पर घूप बनकर गिरे। ये शीशा दिन में 6 घंटे लाइट रिफ्लेक्ट करता है जिससे गांव में रोशनी रहती है। ये शीशा पहाड़ की दूसरी तरफ 1,100 मीटर की ऊंचाई पर लगाया गया है। शीशे का वजन तकरीबन 1.1 टन है। इसे कंप्यूटर के जरिए ऑपरेट किया जाता है। इस तरह से विगल्लेना गांव के लोगों ने अपने लिए खुद ही नया सूरज बना लिया है। शायद आपने भी पहली बार ऐसे सूरज के बारे में सुना होगा जो कुदरत ने नहीं बल्कि खुद इंसानों ने बनाया है। अपने दिमाग और लगन का सही इस्तेमाल करते हुए गांव वालों ने अपनी समस्या से निजात पाने का ये अनोखा तरीका अपनाया। मिडाली ने कहा, इस "परियोजना के पीछे के विचार का वैज्ञानिक आधार नहीं बल्कि मानवीय जरूरत है।