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रांची: 11 साल की थी जब दिल्ली में बेच दी गई, जानिए! 12 साल बाद झारखंड लौटी 'गुड़िया' की मर्मस्पर्शी कहानी

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द फॉलोअप टीम, रांची: 

अभी कुछ ही दिन पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बयान दिया था। उन्होंने मानव तस्करी को लेकर कड़ी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि झारखंड की बेटियों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जायेगा। तस्करी में लिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री के बयान के 1 सप्ताह बाद ही राजधानी रांची में ऐसा मामला आया जिसने झारखंड में मानव तस्करी और धोखाधड़ी की गंभीर समस्या को सामने लाकर खड़ा कर दिया है। इस मामले को जानने के बाद शायद आपको अंदाजा होगा कि स्थिति कितनी भयानक है। 


रांची के नामकुम की युवती के साथ धोखाधड़ी
रांची जिला के नामकुम थानाक्षेत्र अंतर्गत हुड़वा पंचायत के पारेद गांव की रहने वाली गुड़िया (बदला हुआ नाम) को राजधानी दिल्ली में 14 साल तक दिल्ली में बतौर घरेलु सहायिका काम करवाया गया। इन सालों में गुड़िया को किसी बंधक की तरह रखा गया। तय हुआ था कि गुड़िया को बतौर मेहनताना 10 हजार रुपया मिलेगा लेकिन फूटी कौड़ी तक नहीं दी गई। उसे ये बोलकर धोखे में रखा गया कि उसका वेतन झारखंड में उसके परिवार तक भिजवा दिया जा रहा है। इस दौरान गुड़िया को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में रखा गया। आखिरकार 21 जून को गुड़िया किसी तरह से भागकर रांची पहुंची। परिवार से मिलीं और अभी आशा संस्था के संरक्षण में रह रही है। इस पारा में जितनी बातें लिखी हैं, ये कहानी उतनी सिंपल भी नहीं है। इसके कई पहलु हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं। 

2006 में महज 11 साल की उम्र में ले गई थी दिल्ली
इस दुर्भाग्यपूर्ण वाकये की शुरुआत होती है साल 2006 में। रांची के जगन्नाथपुर की रहने वाली एक महिला जिसका नाम आशा देवी है, वो मुंशी मुंडा की दो बेटियों को काम दिलाने के बहाने दिल्ली ले गई। सितंबर 2007 में दोनों बहनें लौटीं। 3-4 दिन घर में रूकी और फिर आशा देवी उनको दिल्ली ले गई। इस बीच मुंशी मुंडा का अपनी बेटियों के कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था। पिता मुंशी मुंडा ने किसी तरह से आशा देवी से संपर्क साधा। आशा देवी ने भरोसा दिया को वो उन्हें उनकी बेटियों से मिलवाएंगी। मुंशी आशा के साथ दिल्ली के लिए निकले लेकिन उक्त महिला रास्ते में उन्हें झांसा देकर फरार हो गई। दिल्ली में मुंशी को कुछ समय तक मजदूरी करना पड़ा। वो 2 माह तक दिल्ली में रिक्शा चलाकर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का प्रयास करते रहे लेकिन कामयाबी नहीं मिली। 

पिता ने 2 माह रिक्शा चलाकर बेटी को ढूंढ़ा था
आखिरकार थक-हारकर वो वापस लौट आए। इस बीच उन्होंने पुलिस सहित समाजसेवी संस्थाओं से संपर्क साधा। साल 2015-16 में आशा संस्था और झारखंड पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुंची। टीम ने किसी तरह से गुड़िया की बहन को बरामद करने में सफलता पाई। गुड़िया का कुछ पता नहीं चला। उसकी खोजबीन जारी रही। पुलिस और संस्था की टीम लगातार उसको ढूंढ़ने का प्रयास करती लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला। आखिरकार साल 2018 में गुड़िया के पिता को किसी अनजान व्यक्ति ने एक मोबाइल नंबर दिया। उस पर संपर्क करने पर गुड़िया से बात हो पाई। मुंशी मुंडा ने जो थाने में जो आवेदन दिया था, उसके मुताबिक गुड़िया ने अपने पिता को बताया कि वो फरीदाबाद में है। किसी रजिया नाम की महिला ने उसको रखा हुआ है। गुड़िया ने अपने पिता से उसे वहां से ले जाने की गुहार लगाई। इसके 1 साल बाद तक फिर दोबारा गुडिया का पिता से संपर्क नहीं हो पाया। 

जून 2021 में किसी तरह झारखंड पहुंची गुड़िया! 
जून 2021। गुड़िया (बदला हुआ नाम) किसी तरह से भागकर आनंद-विहार स्टेशन पहुंची और फिर वहां से झारखंड। हटिया में कुछ दिन तक कमरा किराये पर लेकर रही क्योंकि वो अपने घर का पता भूल चुकी थी। किसी तरह से उसने अपने परिवार का पता लगाया। अब गुड़िया (बदला हुआ नाम) ने नामकुम थाने में आवेदन दिया है। इस आवेदन में गुड़िया ने बताया कि 2006 में आशा देवी नाम की महिला उसे काम दिलाने के बहाने दिल्ली ले गई। वहां जाकर रजिया नाम की महिला को बेच दिया। रजिया के साथ सुषमा नाम की भी एक महिला थी। रजिया ने दिल्ली के अलग-अलग घरों में उससे बतौर घरेलु सहायिका काम करवाया। बतौर मेहनताना उसको 10 हजार रुपया मिलना चाहिए था लेकिन 2006 से लेकर 2018 तक रजिया ने उसको फूटी कौड़ी भी नहीं दी। जब भी पैसा मांगा तो यही कहा कि झारखंड में उसके घर पैसा भिजवा दिया है। कुल मिलाकर 14 लाख रुपये रजिया ने अपने पास रख लिया। गुड़िया (बदला हुआ नाम) ने वो पैसा वापस दिलाने की मांग की है। 

2018 में किसी तरह रजिया के चंगुल से भागीं गुड़िया
दरअसल अगस्त 2018 में गुड़िया (बदला हुआ नाम) रजिया के चंगुल से भाग गई। इसके बाद गुड़गांव के अलग-अलग मकानों में बतौर घरेलु सहायिका काम करती रही। इससे मिले पैसों से ही वो घर लौट पाई। इस बीच, गुड़िया (बदला हुआ नाम) और उनकी छोटी बहन को परिवार से मिलवाने में आशा संस्था के अजय कुमार और उनकी टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। द फॉलोअप ने इस स्टोरी के सिलसिले में आशा संस्था से जुड़े अजय से बातचीत की। उन्होंने मानव तस्करी और गुड़िया से संबंधित कई हैरान करने वाली बातें बताई। इससे पता चलता है कि वाकया कितना भयावह है। हालांकि ये जानना राहत की बात है कि आशा संस्था गुड़िया के भाई-बहनों को अपने संरक्षण में रखकर पढ़ा रही है। गुड़िया भी इसी संस्था की निगरानी में है। उसकी काउंसिलिंग जारी है। 

आशा संस्था की निगरानी में रह रही है "गुड़िया"
अजय ने बताया कि गुड़िया (बदला हुआ नाम) को उस वक्त दिल्ली ले जाया गया था जब वो महज 11 साल की थी। ये मामला ना केवल धोखाधड़ी का है बल्कि बाल तस्करी से जुड़ा है। बीते कई वर्षों से हम लगातार उसे ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे थे। तकरीबन पांच साल पहले हमने गुड़िया की छोटी बहन को ढूंढ़ पाने में सफलता हासिल की थी लेकिन गुड़िया का पता नहीं चला था। दो साल पहले मामले में रजिया और सुषमा नाम की महिला को गिरफ्तार किया गया था। दोनों ही फिलहाल रांची में जेल में बंद है। अजय बताते हैं कि इसी साल मार्च महीने में गुडिया के पिता मुंशी मुंडा का निधन हो गया। वो आजीवन अपनी बेटी को ढूंढ़ने का प्रयास करते रहे। दिल्ली में मजदूरी तक की। अलग-अलग लोगों से गुहार लगाई। हमने भी हरसंभव सहायता करने का प्रयास किया। अजय ने बताया कि फिलहाल गुड़िया (बदला हुआ नाम) और उसके छोटे भाई-बहन आशा संस्था के संरक्षण में हैं। गुड़िया की काउंसिलिंग करवाई जा रही है। क्या गुड़िया (बदला हुआ नाम) का यौन शोषण किया गया। इस सवाल के जवाब में अजय कहते हैं कि इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल उसकी काउंसिलिंग चल रही है। अभी वो सहज नहीं है। हो सकता है कि स्थिति सामान्य होने पर वो कुछ बताए। 

मेहनत के पैसे वापस दिलवाना पहली प्राथमिकता है
अजय बताते हैं कि फिलहाल पहले गुड़िया (बदला हुआ नाम) का कोविड टेस्ट होगा। 164 के तहत उसका बयान दर्ज करवाया जायेगा। इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि रजिया नाम की महिला ने गुड़िया का सारा मेहनताना अपने पास रख लिया। गुड़िया ने रजिया पर शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया है। इन तमाम बिंदुओं पर पुलिस जांच करेगी। कोर्ट में भी सारी बातें रखी जायेंगी। पहली प्राथमिकता फिलहाल यही है कि उसे उसकी मेहनत की कमाई वापस दिलाई जाये। बाकी कानून और कोर्ट को मामले में कार्रवाई करनी है। 

झारखंड में मानव तस्करी में कब लगेगा लगाम
उपरोक्त मामले को जानकर आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि झारखंड में मानव तस्करी की स्थिति कितनी भयावह है। ना जाने ऐसी कितनी गुड़िया मानव तस्करों के चंगुल में फंस जाती है। ये गुड़िया तो लौट आई। परिवार के साथ है। संस्था का सहयोग मिला लेकिन ना जाने ऐसी कितनी बच्चियां और युवतियां हैं जो राजधानी दिल्ली सहित देश के अलग-अलग शहरों में बंधुआ मजदूर की तरह काम करने को विवश होगी। कितनी बच्चियों को देह-व्यापार के दलदल में धकेल दिया गया होगा। वैसे भी झारखंड मानव तस्करी के मामले में सर्वाधिक पीड़ित प्रदेश है। मुख्यमंत्री ने हाल के दिनों में मानव तस्करी रोकने को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है। उम्मीद है कि उस दिशा में काम भी होगा।