द फॉलोअप टीम,नई दिल्ली
दिल्ली की पिघलती सड़कें। दूसरी ओर हुक्का की गुड़गुड़ाहट। ट्रैक्टर, खाट और लंगर। इसके बीच लाखों की तादाद में कंधे से कंधे जोड़कर बैठे किसान। उनकी मौजूदगी सर्दी को तपिश दे रही है। देशभर के किसानों में उनके ही नाम पर बने तीन नए कानून को लेकर नाराजगी है। उसके निरस्त करने की उनकी जिद हटने के मूड में नहीं दिखती। करीब 32 साल पहले भी देश की राजधानी में ऐसी ही गरमाहट भरा प्रदर्शन दिखा था। तब गन्ना मूल्य, बिजली आदि के सवाल पर मशहूर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 5 लाख किसानों ने वोट क्लब के पास रैली की थी। तब महज एक सप्ता्ह के भीतर ही तत्कालीन पीएम राजीव गांधी से सकारात्माक बातचीत के बाद किसान घर लौटने को राजी हुए थे। इधर, कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन को एक पखवाड़ा से अधिक होने को आए। नारे का शोर थमने को तैयार नहीं। जानते हैं कि आखिर माजरा क्या है।
पहले जानिये ये तीन नए क़ानून
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020
इसके तेहत किसान अपनी उपज एपीएमसी यानी एग्रीक्लचर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी की ओर से अधिसूचित मंडियों से बाहर बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं।
2. कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020
इसके मुताबिक किसान खेती के लिए अनुबंध कर सकते हैं। बेच सकते हैं।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020
इस कानून में जमाखोरी पर पूरी तरह छूट दी गई है, असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर। उपज का भंडारण किया जा सकता है। अनाज, दाल, खाने का तेल, प्याज आदि की बिक्री को नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है।
ये भी पढ़ें......
क्यों किसान हैं आक्रोशित, कहते क्या हैं
* किसानों का कहना है कि बिना उनकी राय लिए कानून बना दिए गए हैं। तीन कानून किसान की कमर तोड़कर कॉरपोरेट को मजबूत करते हैं। पहले कृषि को लेकर हर राज्य में अलग-अलग कानून थे। कॉरपोरेट को दिक्कतें आ रही थीं। इसलिए केंद्र ने उनके हित के लिए नए कानून बना दिए, ताकि किसानों से फसल खरीदने और उसे जमा कर अपने मुताबिक उसे बेचने में सुविधा हो।
* जमाखोरी में आवश्यक वस्तु अधिनियम आड़े आ रहा था, जो कोई भी खाद्यान्न अधिक मात्रा में लंबे समय तक स्टोर जमाखोरी करने पर रोक लगाता है। इससे खाद्यान्नों के दाम बाज़ार में बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। अब छूट मिल गई है। कॉरपोरेट पूरे देश के किसानों से खाद्यान्न खरीदेंगे और स्टोर करेंगे।
* किसान अबतक फसल अपने हिसाब से और अपनी मर्जी से उगाते रहे हैं। इसलिए ये बड़ा मुश्किल है कि किस प्रकार की फसल किसान उगाएगा। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक्ट से किसान को अब कॉन्ट्रेक्ट में बांध दिया गया है। कॉरपोरेट निर्देशित करेगा कि कौन से फसल किसान को उगानी है।
* आशंका है कि कॉरपोरेट किसान को धोखा देंगे। पेमेंट समय पर नहीं करेंगे। उल्टे सीधे नियम-कायदे थोपेंगे। किसान कोर्ट में नहीं जा सकेंगे। वे केवल एसडीएम या डीसी के पास जा सकेंगे। जाहिर है इन अधिकारयिों पर कॉरपोरेट और नेताओं के इशारे पर चलने के आरोप लगते रहे हैं।