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कुंती और द्रौपदी से कैसे जुड़ी है छठ पूजा, जानिए कब शुरू हुआ था लोक आस्था का महापर्व

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द फॉलोअप टीम, रांची:  
छठ शब्द षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की पष्ठी को मनाए जाने के कारण इसे छठ पर्व कहा गया। कुछ दंतकथाओं में सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है। बिहार में प्रचलित कथाओं में सूर्य और छठी मैया का संबंध मां-बेटे का है। सूर्य को शंकर और पार्वती का पुत्र माना जाता है। एक बार सूर्य पर बड़े राक्षस का संकट आ गया था। 

गंगा ने सूर्य को राक्षसों से बचाया था
किवदंती के मुताबिक शंकर और पार्वती ने गंगा नदी से विनती की कि वह सूर्य की रक्षा करे। राक्षस से बचाने के लिए गंगा ने सूर्य को अपनी गोद में समेट लिया, फिर भी वह बचा नहीं पाई और सूर्य को राक्षस उठा ले गया। इसके बाद गंगा को सूर्य से पुत्रमोह हो गया और वह सूर्य को अपना बेटा बनाने की कामना से भर उठी। गंगा का सूर्य के प्रति इतना मोह पार्वती को पसंद नहीं आता है, लेकिन सूरज के मोह के कारण गंगा मां के रूप में पूजी जाने लगती है। 

गंगा जल में खड़े होकर अर्घ्य
गंगा नदी में खड़े होकर उसके बेटे को अर्घ्य दिया जाता है। गंगा के साथ ही दूसरी नदियों और जल के अन्य स्रोतों में भी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई। सूर्य की दो पत्नियां उषा और प्रत्यूषा उनकी दो शक्तियां मानी गई हैं। इसलिए शाम की आखिरी किरण से उषा और सुबह की पहली किरण से प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है। यह साल में दो बार - एक बार चैत्र और दूसरी बार कार्तिक में - मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक वाले छठ को मनाने वालों की संख्या बड़ी है।

भागलपुर से छठ पर्व का क्या है संबंध
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, सूर्यवंशी श्रीराम जब लंका विजय के बाद लौटे तो उन्होंने अपने कुलदेवता सूर्य की आराधना की। अयोध्या में सरयू नदी के तट पर उपवास रखने के बाद अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत मनाने की परंपरा शुरू हुई। सप्तमी को सूर्योदय के बाद राम-सीता ने फिर से सूर्योपासना की। 

महाभारत से भी जुड़ा है महापर्व छठ
वहीं छठ पर्व को महाभारत के साथ भी जोड़ा जाता है। दुर्योधन ने कर्ण को अंगप्रदेश (वर्तमान भागलपुर) का राजा बनाया था। कर्ण प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे जिसके बाद उनकी प्रजा भी इसे करने लगी। कुंती से लेकर द्रौपदी तक के छठ पर्व करने का उल्लेख मिलता है। राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी के भी संतान प्राप्ति के लिए छठ करने का पौराणिक जिक्र है। संतान की कामना से जुड़ा छठ का यह पर्व आज सर्वकामना की पूर्ति के लिए मनाया जाता है।