(लेखक हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।
डा जंग बहादुर पाण्डेय, रांची:
जय हो जग में जले जहां भी,
नमन पुनीत अनल को।
जिस नर में भी बसे हमारा,
नमन तेज को बल को।।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में,
पर नमस्य है फूल।
सुधी खोजते नहीं गुणों का, आदिशक्ति का मूल।।
रश्मिरथी प्रथम सर्ग- दिनकर
किसी को समय बड़ा बनाता है और कोई समय को बड़ा बना देता है, कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैं और कुछ लोग आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं। कुछ लोग अतीत को परत दर परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की ओर भाग जाते हैं। भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ऐसी ही युग नारी थीं, जिन्होंने अपनी उपलब्धियों और उपस्थिति से समय को बड़ा बना दिया और वर्तमान की समस्याओं से कभी मुंह नहीं मोड़ा,अपितु समस्याओं को कुचलकर उनपर कामयाबी का झंडा बुलंद किया। कहते हैं प्रतिभा कभी छिपाए नहीं छिपती। महान पुरुष के सदगुण मृग में बसी कस्तूरी के समान होते हैं जिसकी सुगंध बरबस अपनी ओर खींच लेती है। ऐसी ही युग नारी थी स्वतंत्र भारत की तीसरी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी। जिनकी सरलता, सहजता, तप, त्याग, बुद्धिमता एवं दूरदर्शिता को भारत में ही नहीं संपूर्ण संसार में सराहा गया।
जिस देश की नारी श्रावणी पूर्णिमा के शुभ दिन अपने भाई के हाथ में राखी बांधकर अपनी रक्षा के लिए आश्वस्त हो जाती हैं, जिस देश की नारी हर क्षण अपने पति को भगवान मानकर पूजन के पुष्प अर्पित करती है, उसी देश की सेवा परायण नारी शासन सूत्र संभाल कर करोड़ों नर-नारियों को अभय दान भी दे सकती है। इसका ज्वलंत उदाहरण थी - भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी। एक सुखद आश्चर्य की बात है कि जिस दिन 19 नवंबर 1917 को रूस में जार शाही के विरुद्ध क्रांति का तूर्य बजा, उसी दिन 19 नवम्बर1917 ई0 में तीर्थराज प्रयाग के राजनीतिक तीर्थस्थल आनंद भवन में इंदिरा जी का जन्म हुआ। सुकोमल स्निग्ध ज्योत्स्ना के समान शांत, मधुर व्यक्तित्व अंतस की गहराई में डूबी मुस्कान, भीतरी संवेदना दर्शाने वाली स्वच्छ दर्पण से भाव भंगी और जिज्ञासा जागृत करती हुई अपूर्व चेष्टा और सजग आस्था वाली कुशाग्र बुद्धि इंदिरा, पंडित नेहरू की लाडली बेटी तो थी ही, देश की तरुणाई की प्रतीक भी थी। संघर्ष के कांटे इन के पथ पर जरूर बिखरे रहे, पर इनसे छिद-बिंध कर भी इन्होंने साहस नहीं खोया। विपरीत परिस्थितियों में तूफान ने इन्हें झकझोरा अवश्य, फिर भी इनमें अदम्य आवेग था कि वे रुक नहीं पाई। पीड़ाओं को पीती, नए मार्ग बनाती, दृढ़ कदमों से आगे बढ़ती रहीं।
इंदिरा इतने समृद्ध परिवार में उत्पन्न हुई थीं कि वे चाहती तो अपना समय रंग रेलियों में अच्छी तरह बिता सकती थी, किंतु जब भारत माता विदेशियों के अत्याचार के कारण कराह रही हों, तब उसकी बेटी मौज-मजे में दिन क्यों काटे? दुर्गाबाई और लक्ष्मीबाई की कड़ी क्या टूट सकती थी? नहीं कदापि नहीं। इंदिरा जी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं, महज 22 वर्ष की इनकी आयु थी जब 1939 ई. में पहली बार 13 महीने के लिए इन्हें जेल की सजा दी गई। 26 मार्च 1942 के दिन इनका विवाह फिरोज गांधी के साथ हुआ। पं नेहरू और उनके परिवार के अन्य सदस्य इस अतंरजातीय विवाह के पक्ष में नहीं थे, किंतु इन्दिरा जी इतनी दृढ संकल्पी थी कि वे पीछे नहीं हटी और अंततः परिवार के नहीं चाहते हुए भी यह शादी हुई।महात्मा गांधी ने नेहरू परिवार को तैयार कराया। किंतु कुछ ही महीनों बाद 8अगस्त 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का आंदोलन शुरू हुआ। अभी ये विवाह की गुड़िया बहू ही थीं , कि कारागृह की काल कोठरी में बंद कर दी गई। इन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपने वैयक्तिक सुखों का होलिका दहन किया और इनका कोमल तन राष्ट्रोत्सर्ग की आग में कुंदन बनता रहा। जब देश स्वतंत्र हुआ तब त्यागी नेताओं ने राजभोग किया परंतु इंदिरा जी सब कुछ ठुकराती रही, पंडित जवाहरलाल नेहरू जो भारतीय जनता की आकांक्षाओं के मंगलदीप रहे- कि लौ को चिरकाल तक बुझने न देने के लिए: ये स्वयं स्नेह बन ढलती रहीं। पंडित नेहरू ने बहुत निश्चिंत होकर राष्ट्र हित के लिए जो किया उसकी आधारभूमि थी इंदिरा जी। इंदिरा जी पंडित जी के साथ विश्व भ्रमण में जाती रही। उनकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखती ही थी, साथ ही साथ संसार की राजनीतिक घटनाचक्र को भी ठिकाने से समझने की चेष्टा करती थी।
1959 ई. में इंदिरा गांधी देश की सबसे बड़े राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की अध्यक्षा नियुक्त हुई। 27 मई 1964 ई. में जब पंडित जवाहरलाल नेहरु का निधन हुआ ,तब लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने, तब लाल बहादुर शास्त्री के अनुरोध पर ये सूचना और प्रसारण मंत्री बनी। देशवासियों का मानस बल बढ़ाने तथा विश्व में भारतीय मर्यादा को फिर से प्रतिष्ठित करने के लिए इनका कार्य सराहनीय रहा। जब दुर्भाग्य से 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ तब 19 जनवरी 1966 को य भारत की प्रधानमंत्री चुनी गईं। इंदिरा ने जब शासन चलाया तब से वे एक से एक क्रांतिकारी कदम उठाती गईं। बड़े-बड़े दिग्गज विरोधियों के रहते हुए भी इन्होंने 20 अगस्त 1969 को वराहगिरि वेंकटगिरि को भारत के राष्ट्रपति चुनाव में विजयी बनाया। कांग्रेस भले ही दो दलों में विभक्त हो गई किंतु वह झुकी नहीं। इंदिरा गांधी का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है, जिनमें प्रमुख हैं-- बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कोलियारी का राष्ट्रीयकरण, राजस्थान के पोखरण में प्रथम परमाणु परीक्षण, 1971 में बांग्लादेश का निर्माण, गरीबी उन्मूलन, निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्री कार्यक्रम, गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अध्यक्षता और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आजीवन पेंशन आदि।
इतिहासकारों ने उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी भूल 26 जून 1975 में आपातकाल की घोषणा माना है।यदि उन्होंने आपातकाल नहीं लगाया होता तो,वे भारत की ही नहीं विश्व की अद्वितीय महिला के रूप में समादृत होंती और उनके व्यक्तित्व में कलंक का धब्बा नहीं लगता। फिर भी वे कुशल राज नेता,कुशल वक्ता,सफल कूटनीतिज्ञ,दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, अनुशासन प्रिय महिला, दृढ़संकल्पी शासक,महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री और साहसी महिला थीं।उन्होंने भारत के मान सम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया।उनके समय में भारत की प्रतिष्ठा वैश्विक फलक पर प्रतिष्ठित हुई।उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और दुर्गाबाई उनकी आदर्श थीं:
बुंदलों के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
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31 अक्टूबर1984 को प्रातः 9:40 में उनके अंग रक्षकों (बेअंत सिंह और सतवंत सिंह) ने ही उनको गोलियों से छलनी कर दिया और उनके प्राण पखेरू उड़ गए। इस महिला ने देश हित के लिए अपने शरीर की अंतिम बूंद तक अर्पित कर दी, किंतु भारत की अखंडता और धर्मनिरपेक्षता के विरोधी उग्र वादियों के समक्ष घुटने नहीं टेके। उनके अप्रत्याशित निधन से सारा भारतवर्ष ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व स्तंभित रह गया।उनके निधन पर हिन्दी उर्दू के प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी ने जो पंक्तियां लिखी हैं,आज मुझे सार्थक और मार्मिक लगती हैं:
तेरे गम ने ऐसा गम दिया है,
दिल दाग दाग है।
लाखों चिराग घर में हैं,
फिर भी घर बेचिराग है।
(लेखक हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।