logo

देश की बिंदी-2: विश्व का तोरण द्वार है हिंदी-राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा

12773news.jpg

डाॅ. जंग बहादुर पाण्डेय, रांची:

भारत एक महान एवं विशाल देश है। इसमें 29 राज्य हैं। विभिन्न राज्यों की विभिन्न भाषाएँ हैं - बंगाल की बांगला, असम की असमिया, उड़ीसा की उड़िया, महाराष्ट्र की मराठी, तमिलनाडु की तमिल, केरल की मलयालम, कर्नाटक की कन्नड़, छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ी, गुजरात की गुजराती, राजस्थान की राजस्थानी आदि; किन्तु जो भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है , वह तो हिंदी ही है। राष्ट्र में सम्पूर्णता के धरातल पर जिस भाषा में भाव और विचार की अभिव्यक्ति होती है उसे राष्ट्रभाषा की संज्ञा दी जाती है। भारतीय संविधान की अष्टम् अनुसूची में  22 भाषाएँ स्वीकृत हैं। राष्ट्रभाषा एक सामासिक पद है जिसका शाब्दिक अर्थ है राष्ट्र की भाषा। संविधान की अष्टम् अनुसूची में स्वीकृत सभी 22 भाषाएँ राष्ट्र भाषाएँ हैं और व्यापक अर्थ में भारतवर्ष में जितनी भाषाएँ बोली, समझी और लिखी  जाती हैं, वे सब राष्ट्रभाषा की गरिमा से युक्त हैं। लेकिन विशिष्ट अर्थ में अधिकाधिक लोगों द्वारा बोली समझी और लिखीजाने वाली हिंदी ही राष्ट्रभाषा है। 

राजभाषा भी एक सामासिक पद है, जिसका अर्थ है: राज काज की भाषा, राजा की भाषा अर्थात् राज्य का काज जिस भाषा में होता है उसे राजभाषा कहते हैं। प्राचीन काल में संस्कृत इस देश की राजभाषा थी मुगल काल में फारसी, ब्रिटिश काल में अंग्रेजी और स्वतंत्र भारत में हिन्दी इस देश की राजभाषा बनी।  आजादी मिलने के बाद संविधान निर्माताओं ने 14 सितम्बर 1949 में हिंदी को राजभाषा का पद संविधान द्वारा प्रदान किया। 26 जनवरी 1950 को जब हमारा संविधान लागू, तब से हिंदी इस देश की संवैधानिक तौर पर राजभाषा है।  संविधान के भाग 5, 6 एवं 17 के कुल 11 अनुच्छेदों  में राजभाषा हिंदी की चर्चा है। संविधान के अनुच्छेद 343  से 351 के अंतर्गत हिंदी को राजभाषा की मान्यता प्राप्त होती है। राजभाषा से हमारा तात्पर्य उस भाषा से है, जिसमें राज-काज का संचालन होता है। संविधान में राजभाषा हिंदी की भूमिका निम्नाकित रूप में निर्धारित है :-
1. संघ की राजभाषा के रूप में। 
2. दूसरे राज्यों और प्रदेशों के बीच संपर्क भाषा के रूप में, 
3. संघ और राज्यों के बीच तथा एक-दूसरे राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा अर्थात् संपर्क भाषा के रूप में। 

 

हमारा संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। उस समय कहा गया कि सिद्धांत रूप में हिंदी राजभाषा रहेगी परन्तु 15 वर्षों तक राजकाज का काम अंग्रेजी द्वारा ही किया जाएगा। राजभाषा हिंदी पोस्ट डेटेड चेक बना दी गई जिसका दुष्परिणाम आज तक हिंदी को भुगतना पड़ रहा है। संघ की भाषा के रूप में हिंदी को मात्र संवैधानिक मान्यता है। आज भी हिंदी भाषा नीति के अंतर्गत सत्ता और प्रशासन के कार्य हिंदी-अंग्रेजी के अनुवादित रूप में सम्पादित होते हैं। राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के लिए राजभाषा मंत्रालय, हिंदी निदेशालय, गृहमंत्रालय की हिंदी शिक्षण योजनाएँ प्रायोजित हैं। प्रत्येक विभाग में राजभाषा पदाधिकारी या हिंदी अधिकारी कार्यरत हैं। हिंदी प्राध्यापक, अहिन्दी भाषी कर्मचारी एवं अधिकारियों को हिंदी प्रशिक्षण देकर प्रवीणता प्राप्त कराने में सहयोग करते हैं किन्तु खेद है कि आज भी कार्यालयी भाषा हिंदी नहीं, अंग्रेजी है। प्रशासन की भाषा राजभाषा कहलाती है। राजभाषा का सामान्य अर्थ राजकाज चलाने की भाषा अर्थात् भाषा का वह रूप जिसके द्वारा राजकीय काज चलाने की सुविधा हो। राजभाषा से राजा की भाषा अथवा राज्य की भाषा दोनों अर्थ लिए जा सकते हैं। केंद्र की राजभाषा को संघ भाषा भी कहा जाता है। प्रशासन तथा न्याय की भाषा होने के कारण सरकारी दृष्टि से राजभाषा का बहुत महत्व होता है। राजभाषा का प्रयोग प्रमुख चार क्षेत्रों में किया जाता है - शासन, विधान, न्यायपालिका एवं विधायिका। 
 

स्वतंत्र भारत में नए संविधान की रचना तथा भारत के गणराज्य बन जाने पर भारतीय संविधान के लागू होने से पूर्व राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग उसी अर्थ में होता था - जिस अर्थ में आज राजभाषा शब्द का प्रयोग होता है। वस्तुत: हिंदी राष्ट्रभाषा है, राजभाषा की क्षमता से पूर्ण है और अन्य भारतीय भाषाएँ राष्ट्रीय भाषाएँ हैं। क्योंकि हिंदी ही सम्पूर्णता के साथ भारत की जातीय गरिमा, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उच्चता, जीवन मूल्य और मानवता, अस्मिता, स्वतंत्रता, एकता, अखंडता को वाणी प्रदान करने में सक्षम है। आज हिंदी ही शैक्षिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, सामाजिक उपलब्धियों के मूल्यांकन और संरक्षण की भाषा है। डॉ राकेश चतुर्वेदी के शब्दों में - हिंदी जातीयता, क्षेत्रीयता, प्रांतीयता, धर्मार्थता एवं संकीर्णता के दायरे तोड़कर विश्व भाषाओं के साहचर्य में वैज्ञानिक संस्कृति की निर्भ्रान्त नियोजिका है। इसे नहीं बनना है राजभाषा अंग्रेजी की अधिकारिणी यह तो जन भाषा है। संघर्ष और संस्कार, भारतीयता और अस्मिता की भाषा है अतः इसकी शाश्वतता सर्वकालिक और सार्वभौमिक  है। इसी लिए राष्ट्रकवि गोपाल सिंह नेपाली ने हिंदी को भारत की बोली कहते हुए लिखा है कि -
यह दुखड़ो का जंजाल नहीं, लाखों मुखड़ों की भाषा है। 
थी अमर शहीदों की आशा, अब जिंदो की अभिलाषा है।।
मेवा है इसकी सेवा में, नैनों को कभी न झपने दो। 
हिंदी है भारत की बोली तो अपने आप पनपने दो।। 

 

राष्ट्रभाषा हिंदी की उन्नति राष्ट्र की सार्वत्रिक, सर्वव्यापी उन्नति का मूल है। हिंदी अब राष्ट्रीय ही नहीं एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा भी है,क्योंकि अब यह सात समुद्र पार भी बोली और समझी जाने लगी है। हिंदी को विधिवत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय  प्रतिष्ठा दिलाने के लिए अब तक 11 विश्व हिंदी सम्मेलन हो चुके हैं। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10-12जनवरी1975 में नागपुर (भारत)में  और एकादश विश्व हिंदी सम्मेलन मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में 18 से 20 अगस्त 2018 में सम्पन्न हुआ।हम प्रयत्न करें कि यह अपने देश में ही नहीं फूले-फले अपितु  संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थान पाकर विश्व में अपनी ज्योति फ़ैलाए। हिंदी संस्कृति और संस्कार लिए हुई विश्व का तोरण द्वार है:

केश है कंघा है, कच्छा कड़ा,
सिख धर्म के हाथ कटार है हिंदी।
बात करो दिन रात जहाँ मन,
चाहे बेतार का तार है हिंदी।
पूजा से पूर्व पुरोहित हाथ,
सजायी हुई थार है हिंदी।
संस्कृति और संस्कार लिए हुई,
विश्व का तोरण द्वार है हिंदी

 
जय हिन्द, जय हिन्दी!

यह भी पढ़ें

देश की बिंदी-1: माँ और गाँव की तरह हिन्दी को लेकर होना भावुक

कल पढ़िये देश की बिंदी-3

 

(लेखक हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।