डॉ. अबरार मुल्तानी, भोपाल:
मेरे क्लिनिकल प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में मेरे पास एक युवा अपने जोड़ों के दर्द की समस्या लेकर आया। उसका दर्द जटिल था इसलिए उसे कई महीनों तक मेरे पास उपचार के लिए आना पड़ा था। पहले में आज जितना व्यस्त नहीं था, इसलिए रोगियों से बात करने का काफी समय होता था। मैंने उससे एक बार पूछा कि आप क्या करते हो? तो उसने कहा कि बहुत सारे काम करता हूं सर। मैंने कहा जैसे? उसने कहा कि मैं करतब दिखाता हूं। मैंने कहा कैसे करतब? उसने कहा कि मैं कई घंटों तक जमीन के भीतर समाधि बना कर रह सकता हूं, मैं कई घंटों या दिनों तक बिना रुके साइकिल चलाकर लोगों के सामने प्रदर्शन कर सकता हूं, मैं अपनी जीभ से लोहे की गर्म सुर्खलाल रॉड को बुझा सकता हूं, मैं जिंदा छिपकली को निगल सकता हूं और उसे फिर जिंदा ही वापस निकाल भी सकता हूं। मैंने आश्चर्य के साथ कहा की तुम यह सब कैसे कर लेते हो भाई! उसने कहा कि मैं लोगों को देख देख कर ही सीखा हूं, मेरा कोई गुरु नहीं है। मैंने कहा कि तुमने इन खतरनाक काम की कोई ट्रेनिंग नहीं ली तो फिर तुमने इन्हें करने की हिम्मत कैसे जुटाई? उसने कहा कि मुझे बस यह जानने की जरूरत थी कि लोग आखिर यह करतब करते कैसे हैं और मैं यह जानने के पहले ही पूरी तरह से तैयार था कि 'मैं यह कर सकता हूं, क्योंकि जब दूसरे लोग इसे कर सकते हैं तो मैं भी इस काम को ज़रूर कर सकता हूं।' और फिर मैंने इन करतबों के बारे में जानना शुरू किया तो पता चला कि- लोहे की रॉड को जीभ से बुझाना हो तो हमें कुछ घंटों पहले से अदरक को चबाना होता है। कुछ घंटे पहले से अदरक चबा लेने से हमारी जीभ उस रॉड की गर्मी को सहने के लिए तैयार हो जाती है फिर हम अपनी लार को जीभ की टिप पर लाकर उससे रॉड को ठंडा करते जाते हैं।
समाधि या क़ब्र के अंदर भी रहता है ऑक्सीजन!
समाधि के बारे में मुझे पता चला कि अगर जमीन में गड्ढा खोदकर जमीन के स्तर पर लकड़ी या फर्श रखकर मिट्टी डाल भी दी जाए तो भी उस समाधि या कब्र के अंदर हवा रहती है। मुझे उसमें इतनी ठंडी हवा के झोंकें आते हैं ऐसे ही जैसे कि कूलर से आते हैं। सांस लेने के लिए हवा की वहां कोई दिक्कत नहीं होती। जबकि आम लोग समझते हैं कि वहां सांस ले ही नहीं पाते होंगें। मैंने भी एक दिन की समाधि लेने का निर्णय लिया और उसमें सफल हुआ। फिर मैंने 36, 48 और 72 घंटे तक भी समाधि ली। मेरे इस समाधि वाले ज्ञान से एक बाबा ने भी लोगों को अपना भक्त बना लिया है। मैंने उससे पूछा की तुम जिंदा छिपकली कैसे निगलते थे और फिर उसे कुछ देर पेट (आहार नली) में रखने के बाद फिर से जिंदा मुंह से ही कैसे निकालते थे? उसने मुझे बताया कि 'सर हम छिपकली को एक डोरी से बांधते हैं और फिर उसे केरोसिन में कुछ देर के लिए डुबो देते हैं। ऐसा करने से छिपकली कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती है। उसे बेहोश करके हम उसे निगल लेते हैं और फिर कुछ देर बाद जब उसे होश आने वाला होता है तो हम उस डोरी की मदद से फिर बाहर निकाल ले लेते हैं।
हर वह चीज पा सकते हैं जो किसी और ने पाई हो
गरीबी के कारण वो युवा ज्यादा पढ़ नहीं पाया था लेकिन वह केरम के खेल में अपने संभाग का विजेता रह चुका था। उसमें अनंत संभावनाएं थीं, क्योंकि उसे जीवन में कुछ पाने का एक गुरुमंत्र मिल गया था और वह तो खुद ही उस गुरुमंत्र का एक जीता जागता नमूना था। वह मंत्र था कि- 'जो काम कोई और कर सकता है वह काम मैं भी कर सकता हूं।' यह प्रेरित होने का एक मूल नियम है कि हम कोई लक्ष्य बनाएं और यह सोचे कि जब इसे कोई दूसरा पा सकता है तो मैं क्यों नहीं? हम देखते हैं कि ओलंपिक हो या कोई और खेल स्पर्धा उसमें विश्व रिकॉर्ड बनता है वह फिर जल्दी ही टूट भी जाता है। क्योंकि दूसरे खिलाड़ियों को यह लगने लगता है कि जब वह खिलाड़ी यह कारनामा कर सकता है तो मैं क्यों नहीं? रिकॉर्ड होते ही टूटने के लिए हैं, क्योंकि विश्व रिकॉर्ड बनाने वाला व्यक्ति यह बात अपने बाद आने वालों को सिखा जाता है कि 'अगर मैं कर सकता हूं तो तुम क्यों नहीं?' जिंदगी में हमेशा याद रखें की हम हर वह चीज पा सकते हैं जो किसी और ने पाई हो। बस ज़रूरत है तो खुद पर भरोसा रखने की और मेहनत करने की। उतनी ही मेहनत जितनी की हमसे पहले वालों ने की थी, उस मुकाम तक पहुंचने के लिए या शायद उससे भी थोड़ी ज़्यादा...
(डॉ. अबरार मुल्तानी भोपाल में रहते हैं। आप आयुर्वेद और देशी स्वास्थ्य -चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ हैं। मनोवैैैैैैज्ञानिक भी हैं। क्यों अलग है स्त्री-पुरुष का प्रेम, मन के लिए अमृत की बूंदें, मन के रहस्य, 5 पिल्स समेत उनकी दर्जनों किताबें प्रकाशित हैं। आपके वीडियो भी बहुत देखे जाते हैं।)
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