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जब इंदिरा गांधी ने आंखों से आंख मिलाकर निक्सन से कहा था, भारत का अमेरिका बॉस नहीं!

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संकट जैन, दिल्‍ली:
इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता। साल था 1971 और महीना नवंबर। अमेरिका के तत्‍कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पूर्वी पाकिस्‍तान (अब बांगलादेश) मामले पर कहा था, 'अगर भारत पाकिस्तान के मामले में उसकी नाक में उंगली करेगा तो अमेरिका अपनी आंख नहीं फेर लेगा,भारत को सबक सिखाया जाएगा।"  उसके बाद तत्‍कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने  व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बैठकर, आंखों से आंख मिलाकर बिना पलक झपकाए बोला था, 'भारत अमेरिका को दोस्त मानता है। बॉस नहीं। भारत अपनी किस्मत खुद लिखने में सक्षम है। हम जानते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार करना है?"



हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा में किया दर्ज
अपनी आत्मकथा में हेनरी किसिंजर जो उस समय अमरीका के NSA और सेक्रेटरी आफ स्टेट थे, ने इस ब्योरे को दर्ज़ किया है। वह दिन था जब भारत-यू.एस संयुक्त मीडिया संबोधन को इंदिरा गांधी ने रद्द कर दिया था, जो अपने ही अनोखे अंदाज में व्हाइट हाउस से चली गईं थीं। किसिंजर ने इंदिरा गांधी को उनकी कार में छोड़ते हुए कहा था, "मैडम प्रधानमंत्री, आप को नहीं लगता है कि आप को राष्ट्रपति के साथ थोड़ा और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था ।" इंदिरा गांधी ने उत्तर दिया, "धन्यवाद, श्रीमान सचिव, आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए,एक विकासशील देश होने के नाते, हमारी रीढ़ सीधी है - और सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं। हम साबित करेंगे कि वे दिन लद गए जब हजारों मील दूर बैठी कोई "शक्ति" किसी भी राष्ट्र पर शासन कर सकती है और अक्सर उसे नियंत्रित कर सकती है।"

भारत लौटते इंदिरा ने अटल बिहारी से की बात
जैसे ही उनका एयर इंडिया बोइंग वापसी में दिल्ली के पालम रनवे पर उतरा , इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को तुरंत अपने आवास पर बुलाया। बंद दरवाजों के पीछे एक घंटे की चर्चा के बाद वाजपेयी जल्दी-जल्दी लौटते दिखे। इसके बाद यह ज्ञात हुआ कि वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। बीबीसी के डोनाल्ड पॉल ने वाजपेयी से सवाल पूछा, "इंदिरा जी आपको एक कट्टर आलोचक के रूप में मानती हैं। इसके बावजूद, क्या आप को नहीं लगता की आप संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए मौजूदा सरकार के रुख़ के पक्ष में होंगे?"



वाजपेयी भी रहे अटल,कहा भारत का लोकतंत्र है
वाजपेयी ने प्रतिक्रिया दी थी कि  "एक गुलाब एक बगीचे को सजाता है, और बगीचे को सजाने का काम लिली भी करती है । सभी इस विचार से घिरे हुए हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से सबसे सुंदर हैं। जब उद्यान संकट में पड़ता है, तो सभी को उसकी रक्षा करनी होती है । मैं आज बगीचे को बचाने आया हूं। इसे भारतीय लोकतंत्र कहा जाता है।" परिणामी इतिहास हम सभी जानते हैं।

अमेरिका ने पाकिस्तान को दिए 270 टैंक
अमेरिका ने पाकिस्तान को 270 प्रसिद्ध पैटन टैंक भेजे। उन्होंने विश्व मीडिया को यह दिखाने के लिए बुलाया कि ये टैंक विशेष तकनीक के तहत बनाए गए थे, और इस प्रकार अविनाशी हैं। इरादा बहुत साफ था। यह बाकी दुनिया के लिए एक चेतावनी संकेत था कि कोई भी भारत की मदद न करे। अमेरिका यहीं नहीं रुका। भारत को तेल की आपूर्ति करने वाली एकमात्र अमेरिकी कंपनी बर्मा-शेल को बंद करने के लिए कहा गया । उन्हें अमेरिका द्वारा भारत के साथ अब और व्यापार बंद करने के लिए सख्ती से कहा गया था।

भारत ने सभी अमेरिकी टैंक को नष्ट कर दिया
उसके बाद भारत का इतिहास केवल वापस लड़ने के बारे में है। इंदिरा गांधी की तीक्ष्ण कूटनीति ने सुनिश्चित किया कि तेल यूक्रेन से आए। सिर्फ एक दिन तक चली एक लड़ाई ने इन 270 पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया। नष्ट किए गए टैंकों को प्रदर्शन के लिए भारत लाया गया था जो राजस्थान के गर्म रेगिस्तान आज भी एक गवाह के रूप में खड़े हैं जहां यू.एस का गौरव नष्ट हो गया था। इसके बाद अठारह दिनों तक चले युद्ध की परिणति में पाकिस्तान से 1.0 लाख युद्धबंदी बनाये गए। मुजीबर रहमान लाहौर जेल से रिहा हुए।



और विश्‍व मानचित्र पर उभरा स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश 
मार्च का महीना था - इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को 'मां दुर्गा' कहकर संबोधित किया ।
इन घटनाओं के नतीजे इस प्रकार हैं। भारत की अपनी तेल कंपनी, अर्थात इंडियन ऑयल अस्तित्व में आया। भारत ने दुनिया की नजरों में खुद को ताकतवर राष्ट्र के रूप में सिद्ध किया। भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का नेतृत्व  किया। इसका नेतृत्व निर्विवाद था। हालांकि ये सारी घटनाएं लोग भूल गए हैं। मगर इतिहास आज भी बुलंद खड़ा है जिसको आगे वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाना चाहिए।

(लेखक स्‍वतंत्र लेखन करते हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।