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बेरोजगारी समेत JPSC-JSSC की उदासीन कार्यशैली पर एकजुट हुए सामाजिक- राजनीतिक संगठन, कहा सरकार ले संज्ञान

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द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड में बढ़ती बेरोजगारी एवं जेपीएससी-जेएसएससी की उदासीन कार्यशैली पर विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने वर्चुअल मीटिंग की। अध्यक्षता करते हुए मोहम्मद शाहिद अय्यूबी ने कहा कि झारखंड गठन के 20 वर्ष गुजर गए हैं, बावजूद यहां के स्थानीय एवं मूल निवासियों को आवश्यकता के अनुसार नौकरी नहीं मिल सकी है। जीने के विकल्प तलाश रहे हैं। भरण पोषण के लिए उनके पास ऐसा कोई रोजगार नहीं है।

भ्रष्टाचार का अड्डा बनी जेपीएससी: एस अली
झारखंड छात्र संघ के केंद्रीय अध्यक्ष सह जेपीएससी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले एस अली ने कहा कि झारखंड में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। लेकिन इसका जेपीएससी और जेएसएससी से सीधा संपर्क नहीं है। यह सारा कार्य सरकार के जिम्मे में आता है। सरकार आदेश करती है तभी इन संस्थाओं में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होती है। यह झारखंड का दुर्भाग्य रहा है कि अब तक जितने भी सरकार द्वारा नोटिफिकेशन इन दोनों संस्थाओं को दी गई, उसमें कहीं ना कहीं किसी न किसी प्रकार से त्रुटि ही रही जिसके कारण सभी नियुक्तियां विवादित रही और यहां के लोगों को रोजगार नहीं मिल सका। जेपीएससी गठन के बाद से ही इसमें भ्रष्टाचार हावी रहा और मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

स्थानीय नीति का नहीं बनना प्रमुख कारण: निरंजन
झारखंड अनुबंध सहायक प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ निरंजन महतो ने कहा कि राज्य में बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण स्थानीय नीति का नहीं बनना है। इसके कारण यहां के स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल सकी और इस पर बाहरी लोगों का कब्जा होता चला गया। जो स्थानीय नीति बनी थी, उसमें भी कई प्रकार की त्रुटियां थी, जिसका लाभ राज्य के बाहरी लोगों ने उठाया।

लॉक डाउन बेरोजगार हुए लोगों पर ध्यान दे सरकार: आलोका
सक्रिय सोशल एक्टिविस्ट व कवयित्री आलोका कुजूर ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान लाखों लोगों की नौकरी चली गई है, उनके समक्ष जीने और भरण पोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है, निजी संस्थाएं लगभग सभी बंद है। नतीजा लोग पहले से भी ज्यादा बेरोजगार हो गए हैं। सरकार को इस पर मंथन करना चाहिए और एक ठोस नीति लानी चाहिए ताकि लोगों को रोजगार मिले और वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें।

अब तक करोड़ों खर्च के बावजूद जेपीएससी- जेएसएससी का आउटपुट शून्य :मुजफ्फर हुसैन
पत्रकार डॉ मुजफ्फर हुसैन ने कहा कि जेपीएससी और जेएसएससी में सरकार अब तक करोड़ों रुपया फूंक चुकी है जबकि इसका आउटपुट शून्य है। जेपीएससी की वेबसाइट में जाएं तो अब तक केवल 2016-17 का ऑडिट रिपोर्ट ही ऑनलाइन है। इसके बाद का ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। 2016-17 की ऑडिट रिपोर्ट को ही माने तो जेपीएससी में इस वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किये गए जबकि उपलब्धि शून्य रही। यह संस्था प्रतिवर्ष 3 करोड़ के आसपास खर्च करती है। सिर्फ बिजली बिल में इन्होंने साढ़े 8 लाख रुपये खर्च किया है। इसी प्रकार मेहमान नवाजी, जनरेटर के ईंधन, मशीन उपकरण, छपाई, प्रकाशन, प्रचार आदि में लाखों रुपए बिना सोचे समझे फूंक दिए गए जबकि अब तक यह संस्था एक भी सफल परीक्षा आयोजित नहीं कर सकी है और ना ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सका है। यही हाल जेएसएससी का है। जब यह दोनों संस्थाएं यहां के स्थानीय आदिवासी मूलवासी को नौकरी नहीं दे सकती हैं तो सरकार करोड़ों रुपये इन संस्थाओं के रख-रखाव पर क्यों खर्च कर रही है।

मनरेगा पर समुचित ध्यान दे सरकार: शिशिर लकड़ा
मजलिस के दक्षिण छोटानागपुर प्रभारी शिशिर लकड़ा ने कहा कि सरकार मनरेगा को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करें तो काफी हद तक बेरोजगारी की खाई को पाटा जा सकता है। पिछली बार हम लोगों ने वर्चुअल मीटिंग कर सरकार का ध्यान मनरेगा में लंबित राशि निर्गत करने को लेकर कराया था जिस पर सरकार ने पहल करते हुए यह राशि जारी कर दी है इससे मजदूरों को लाभ मिलेगा लेकिन इतने से ही काम नहीं खत्म हो जाना चाहिए सरकार मजदूरों और किसानों को ध्यान में रखकर नीति बनाए।

संघर्षरत हैं आदिवासी-मूलवासी: कुंदरेसी
अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की जिलाध्यक्ष कुंदरेसी मुंडा ने कहा, यहां के आदिवासियों एवं मूलवासियों को बाहरियों के आने से काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। स्थानीय नीति में भी भारी गड़बड़ी है। इसे सुधारा जाना चाहिए। स्थानीय को ध्यान में रखकर सरकार कोई ऐसी नीति बनाएं जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिले।

मुख्यमंत्री से मिलेगा प्रतिनिधिमंडल
शाहिद ने कहा कि जल्द ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर समस्याओं को रखा जाएगा। मीटिंग में सहायक प्राध्यापक डॉ अजीत मुंडा, युवा समाजिक चिंतक संजय मेहता समेत दर्जनों वक्ताओं ने अपना पक्ष रखा।