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झारखण्ड का एक ऐसा विद्यालय जहाँ से अबतक 3 हज़ार से अधिक निकल चुके हैं IAS-IPS

आज की भौतिकवादी दुनिया से दूर जंगल में बसा हुआ नेतरहाट आवासीय विद्यालय के बारे में आपने जरूर सुना होगा। हाँ, वही नेतरहाट जहाँ के छात्र मैट्रिक की परीक्षा में हर वर्ष स्टेट टॉपरों की सूची में होते हैं। इस वर्ष भी जैक बोर्ड के टॉप टेन में आठ छात्र नेतरहाट के ही हैं। टॉपर मनीष कटियार भी नेतरहाट का ही छात्र है। क्या आपने कभी सोचा है आज के आधुनिक युग में तमाम सुख सुविधाओं के बीच आखिर गुरुकुल परम्परा से पढ़ाई करने वाले नेतरहाट विद्यालय के छात्र कैसे हमेशा टॉप करते हैं?

द फॉलोअप टीम,  रांची : कहते हैं जिस अट्टालिका की नींव जितनी गहराई में होती है। उसका कंगूरा उतना ही अधिक गगंचुम्बी और अडोल होता है। नेतरहाट आवासीय विद्यालय के साथ भी ऐसा ही है। जंगलों की बीच बसे इस स्कूल से पढ़ने वाले 2 हज़ार से अधिक छात्र आईएएस-आईपीएस जैसे बड़े और नामचीन पदों पर आसीन हैं। यही नहीं देश के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण भी नेतरहाट आवासीय विद्यालय के ही छात्र रह चुके हैं। आज  द फॉलोअप में हम आपको बताएँगे कि आखिर नेतरहाट आवासीय विद्यालय में ऐसा क्या है कि वहां के छात्र टॉपर बनते हैं? कैसे पढ़ाई करते हैं वहां के छात्र? 

1954 में हुई थी स्कूल की स्थापना
नेतरहाट विद्यालय की स्थापना नवम्बर 1954 में हुई थी। चार्ल्स जेम्स नेपियर इसके पहले प्रिंसिपल बने थे। पहले सत्र में 60 बच्चों ने नामांकन लिया था। राज्य सरकार द्वारा स्थापित और गुरुकुल की तर्ज पर बने इस स्कूल में अभी भी प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर नामांकन होता है। इस विद्यालय में छठी से 12 वीं तक की पढ़ाई होती है। हर साल यहाँ सिर्फ 100 बच्चों का ही एडमिशन होता है।  छात्रों से फीस के नाम पर सिर्फ 200 रुपये प्रतिमाह लिया जाता है।  इसके अलावे एडमिशन के वक्त 10 हज़ार रुपये लिए जाते हैं। नेतरहाट के प्रिंसिपल डॉ संतोष कुमार सिंह ने कहा कि अब CBSE से स्कूल संबद्ध हो गया है। डॉ संतोष कुमार सिंह के अनुसार जैक बोर्ड से यह आखिरी मैट्रिक की परीक्षा थी।

गुरुकुल परंपरा से होती है पढ़ाई
नेतरहाट आवासीय विद्यालय में गुरुकुल परंपरा से पढ़ाई होती है।  यहाँ पढ़ने वाले छात्र  आश्रम शैली में ही जीवन जीते हैं। छात्र जहाँ रहते हैं उसे आश्रम कहा जाता है। विद्यालय के प्रिंसिपल संतोष कुमार सिंह के अनुसार यहाँ आश्रम के 7 सेट हैं। हर सेट में 3 आश्रम हैं। आश्रम में रसोइया के अलावे काम करने वाला कोई नहीं रहता है। छात्र खुद से सफाई करते हैं। अपने बर्तन धोते हैं और कपड़े भी साफ़ करते हैं।  विद्यालय के प्रिंसिपल संतोष कुमार सिंह के अनुसार छात्रों के बीच एकरूपता लाने के लिए ऐसा किया जाता है। छात्रों को सेल्फ स्टडी पर ज्यादा डिपेंड किया जाता है।

फिक्स होता है रूटीन
आश्रम में रहने वाले सभी छात्रों का रूटीन फिक्स होता है। सभी को रूटीन के अनुसार ही अपनी पूरी दिनचर्या बितानी पड़ती है। सबसे पहले सुबह 4 बजे उठकर छात्र पीटी करते हैं। उसके बाद साफ़- सफाई में जुट जाते हैं। उसके बाद ब्रेक फ़ास्ट करते हैं और फिर हर दिन आठ बजकर 15 मिनट में असेंबली में चले जाते हैं। आठ बजकर 35 मिनट से सभी कक्षा शुरू हो जाती है, जो एक बजकर 20 मिनट पर ख़त्म हो जाती है। उसके बाद छात्र आश्रम आते हैं, भोजन करते हैं, फिर सेल्फ स्टडी करते हैं। गर्मी में 4 बजकर 40 मिनट तक और ठण्ड में 4 बजे तक छात्र स्टडी करते हैं। शाम साढ़े बजे से रात साढ़े आठ बजे तक छात्र सेल्फ स्टडी करते हैं। 9 बजे रात को खाना खाते हैं। फिर सेल्फ स्टडी करने में जुटे जाते हैं। जूनियर 9 बजकर 50 मिनट पर सो जाते हैं और सीनियर 11 बजे तक पढ़ते हैं।

स्कूल में 50 हजार किताबों की लाइब्रेरी
नेतरहाट आवासीय विद्यालय में 50 हज़ार किताबों की एक लाइब्रेरी है। जिसमें सभी तरह की किताबे हैं। यहाँ सातवीं क्लास से ही लैब की पढ़ाई भी अनिवार्य रूप से शुरू हो जाती है। नेतरहाट विद्यालय इकलौता ऐसा विद्यालय है जिसके पास अपना 10 से अधिक मैदान है। विद्यालय में रूरल इकोनॉमी का ध्यान रखा जाता है। कृषि से लेकर हर काम में छात्रों को पारंगत बनाया जाता है। विद्यार्थियों के लिए कुदाल चलाने से लेकर मेटल वर्क, वुड वर्क सहित सभी काम करना जरुरी है। विद्यालय की तरफ से जो ड्रेस दिए जाते हैं। सिर्फ वहीँ छात्र पहन सकते हैं। ठण्ड में दिन में छात्र टोपी भी नहीं पहनते हैं। ताकि छात्र अलग-अलग टोपी न पहन लें। सभी को एक समान रखकर पढ़ाने के लिए ऐसा निर्णय लिया गया है।

ऑटोनोमस बॉडी है नेतरहाट 
स्कूलनेतरहाट आवासीय विद्यालय एक ऑटोनोमस बॉडी है। सामान्य और कार्यकारिणी बॉडी मिलकर इसे चलाते हैं।  विद्यालय को चलाने में लगभग 10 करोड़ रुपये सलाना खर्च होते हैं। जिसमें शिक्षकों के वेतन में ही करीब 4 से 5 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।  जब 1954 में विद्यालय की स्थापना हुई तो शिक्षकों की नियुक्ति BPSC से होती थी। अब शिक्षकों की नियुक्ति कमिटी करती है। कुल 47 पद में सिर्फ 29 शिक्षक ही हैं। जिसमें से कुछ इसी साल रिटायर होने वाले हैं।

पुराने छात्रों का अलुमिनी है NOBA
नेतरहाट आवासीय विद्यालय के पुराने छात्रों का अलुमिनी है NOBA (नेतरहाट ओल्ड बॉय एसोसिएशन)। जिससे सभी पुराने छात्र जुड़े हैं। नोबा का फायदा छात्रों को भी बहुत मिलता है जो समय-समय पर छात्रों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। NOBA के रांची अध्यक्ष सुनील चंद्र के अनुसार महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण के साथ-साथ सैकड़ों आईएएस-आईपीएस अधिकारी सहित कई बड़े पद पर नेतरहाट के छात्र हैं। डॉ त्रिनाथ मिश्र और डॉ राकेश अस्थाना जो सीबीआई के डायरेक्टर रह चुके हैं, वे भी नेतरहाट के ही छात्र रहे हैं। इसके अलावे जापान के राजदूत मनोज जी भी नेतरहाट के पास आउट हैं। झारखण्ड में फ़िलहाल नेतरहाट से पढ़े मनीष रंजन, अजयनाथ झा, शैलेश सिंह, जेबी तुबिद, अंजनी अंजन के साथ - साथ कई अधिकारी हैं। झारखण्ड सिविल सेवा में तो नेतरहाट आवासीय विद्यालय के सैकड़ों छात्र हैं।1992 से 1996 तक नेतरहाट में पढ़ाई करने वाले आशीष आनंद जो आईआईटीयन हैं। उनके अनुसार  भौतिकवादी दुनिया से दूर गुरुकुल परम्परा डेली रूटीन और सेल्फ स्टडी ही नेतरहाट विद्यालय की सफलता का मूलमंत्र है। विद्यालय में कविता लिखने से लेकर नाटक करने से लेकर सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाता है।

कैसे नाम पड़ा नेतरहाट ?
नेतरहाट आवासीय विद्यालय झारखण्ड के लातेहार जिला के नेतरहाट में है। नेतरहाट का नाम वहां के नेचर को देखकर ही पड़ा। माना यह भी जाता है कि नेतरहाट शब्द की उत्पत्ति नेतुर (बांस) और हातु (हाट) से मिलकर हुआ है। नेतरहाट पठार के निकट की पहाडिय़ां सात पाट कहलाती है। यहां बिरहोर, उरांव और बिरजिया जाति के लोग निवास करते हैं। इस जगह को छोटानागपुर की रानी भी कहा जाता है।  नेतरहाट को प्रकृति ने बेहद ही खूबसूरत तरीके से सजाया है। यह जगह झारखंड राज्य में स्थित एक पहाड़ी पर्यटन स्थल है। यहां लोग सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए आते हैं। समुद्र से 3622 फीट ऊंचाई पर बसी इस खूबसूरत जगह का मौसम साल भर खुशनुमा रहता है। ऐसे में इस अनुपम जगह को निहारने के लिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। यहां आने वाले पर्यटक प्रकृति के इस खूबसूरत स्थल को नेचर हाट भी कहते हैं।