द फॉलोअप डेस्क
एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि दुर्घटना मामलों में मुआवजा, चाहे कितना भी अधिक हो, चोट के कारण खोई हुई ज़िंदगी और अवसरों को वास्तव में वापस नहीं ला सकता। अदालत ने दुर्घटना पीड़ित के.एस. मुरलीधर को दिया गया मुआवजा बढ़ाकर ₹1,02,29,241 कर दिया, जिससे न्याय के उन सिद्धांतों पर जोर दिया गया जो केवल मौद्रिक मूल्यांकन से परे हैं। न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने यह फैसला 22 नवंबर 2024 को केएस मुरलीधर बनाम आर सुब्बुलक्ष्मी एवं अन्य में दिया।
यह मामला 22 अगस्त 2008 को हुई एक दुखद सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जब के.एस. मुरलीधर, जो एल.एम. ग्लासफाइबर (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी थे, एक लापरवाही से चलाई जा रही कंटेनर लॉरी से टकरा गए। इस दुर्घटना में मुरलीधर को 90% स्थायी विकलांगता हो गई, जिसमें गर्दन के नीचे के हिस्से का नियंत्रण खोना, मल-मूत्र असंयमिता, और दैनिक गतिविधियों के लिए पूरी तरह दूसरों पर निर्भरता शामिल है।
मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) ने 2015 में ₹58,09,930 का मुआवजा दिया था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2020 में इसे संशोधित कर ₹78,16,390 कर दिया। इस राशि से असंतुष्ट मुरलीधर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी शारीरिक और मानसिक पीड़ा के लिए न्यायोचित मुआवजे की मांग की।
क्या कहा फैसले में
अदालत ने कहा कि मुआवजा केवल कुछ हद तक राहत प्रदान कर सकता है, लेकिन यह कभी भी अपरिवर्तनीय रूप से खोई हुई चीज़ों को वापस नहीं ला सकता। न्यायमूर्ति संजय करोल ने कहा:
“न्यायपूर्ण मुआवजे की अवधारणा रेस्टिट्यूटियो एड इंटेग्रम के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका उद्देश्य पीड़ित को यथासंभव उसकी मूल स्थिति में वापस लाना है। हालांकि, कोई भी मुआवजा खोई हुई चीज़ें वापस नहीं ला सकता। यह केवल आवश्यक सुविधाओं को सुरक्षित करने का बोझ कम कर सकता है।”
“दर्द और पीड़ा” के मुद्दे पर, अदालत ने अमूर्त नुकसानों के परिमाण का आकलन करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए, मुरलीधर के जीवन पर इस दुर्घटना के दीर्घकालिक प्रभाव पर विचार किया।