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हेल्थ : हमेशा मोबाइल पर रहता है ध्यान, NoMoPhobia के बारे में जानिए 

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डेस्क


हो सकता है कि आपके जीवन में नोमोफोबिया दस्तक दे रहा हो और इसका असर आपके कामकाज पर पड़ रहा हो, लेकिन आप उसे इग्नोर कर रहे हैं। ये सही है कि फोन के बिना अब जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन फोन आपकी जिंदगी में मनोवैज्ञानिक जहर भी घोल सकता है। 

क्या होता है NoMoPhobia?
नोमो यानी नो मोबाइल और फोबिया मतलब डर, नोमोफोबिया यानि ये डर कि कहीं मोबाइल छूट ना जाए, बैटरी खत्म ना हो जाए, नेटवर्क से बाहर ना हो जाएं। नोमोफोबिया एक मनोविकार है, जो जाने अनजाने मोबाइल पर हद से ज्यादा निर्भरता की वजह से पैदा होता है। मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग से आपका दिमाग इसका आदी हो जाता है, जैसाकि शराब या ड्रग्स की लत लगने पर होता है। फिर जैसे ही आप मोबाइल से अलग होते हैं, आपको दिक्कत महसूस होने लगती है। अगर मोबाइल की लत आपके दिमाग पर हावी हो जाए तो मोबाइल से अलग होने की कल्पना मात्र से आपको घबराहट होने लगेगी। आपके भीतर चिड़चिड़ापन आ जाएगा। इन लक्षणों पर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो एक स्टेज के बाद नोमोफोबिया हो सकता है।

2008 में ब्रिटेन के एक रिसर्च ग्रुप ने बीमारी के बारे में पता लगाया था। ये ग्रुप मोबाइल एडिक्शन और उससे पैदा होने वाली एंग्जायटी का अध्ययन कर रहा था। इस ग्रुप ने पाया कि एक मोबाइल एडिक्ट जब अपने मोबाइल से दूर होता है तो इससे एंग्जायटी पैदा होती है जो धीरे धीरे एक फोबिया का रूप ले सकती है। 

NoMoPhobia के लक्षण
मोबाइल फोन छूट जाए तो घबराहट महसूस होना, धड़कनें तेज हो जाना, कंपकपी छूटना, पसीना आ जाना, दिल बैठने लगना, भ्रम और बेचैनी का एहसास होना नोमोफोबिया के लक्षण होते हैं। परन्तु किसी को नोमोफिबिया है या नहीं, इसका निर्धारण एक मनोचिकित्सक ही कर सकता है।

नोमोफोबिया की शुरुआत
शुरुआत में NOMOPHOBICS कुछ अजीबोगरीब लक्षण दिखाते हैं, जैसे – वो सामाजिक मेलजोल से बचना चाहते हैं और इसके लिए मोबाइल में बिजी होने का झूठा दिखावा करते हैं। मोबाइल को एक पल के लिए भी छोड़ना नहीं चाहते। वर्चुअल दुनिया को ज्यादा पसंद करने लगते हैं। 

NoMoPhobia के प्रकार
नोमोफोबिया दो तरह का होता है। एक, मोबाइल की लत की वजह से पैदा होने वाला नोमोफोबिया। दूसरा, किसी दूसरे मानसिक दबाव की अभिव्क्ति के रूप में होने वाला नोमोफोबिया, जिसे सेकेंडरी नोमोफोबिया कहा जाता है। 
नोमोफोबिया के अलग-अलग स्टेज भी होते हैं। हर बढ़ते स्टेज में मरीज की तकलीफ बढ़ती जाती है और उसकी सामान्य दिनचर्या पर इसका ज्यादा असर होता है। बीमारी की गंभीरता का आकलन और इलाज मनोवैज्ञानिक करते हैं। इलाज के तरीकों में काउंसेलिंग से लेकर डिप्रेशन की हल्की दवाओं तक का इस्तेमाल हो सकता है। 

फैल रहा है NoMoPhobia?
ये बता पाना मुश्किल है कि दुनिया में कितने लोग नोमोफोबिया के शिकार हैं, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में ये चिंताजनक रूप ले चुका है। रिसर्चस के मुताबिक पश्चिमी देशों की 50% तक आबादी किसी ना किसी रूप में, कभी ना कभी नोमोफोबिया का शिकार हुई है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं और छोटी उम्र में मोबाइल का इस्तेमाल शुरू करने वाले टीनएजर्स इसका सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। भारत समेत दुनियाभर में नोमोफोबिया तेजी से एक मनोवैज्ञानिक समस्या के रुप में उभर रहा है, खासकर कोविड के बाद जिंदगी के न्यू नॉर्मल में। ज्यादातर लोगों को नोमोफोबिया या दूसरे टेक स्ट्रेस सिंड्रोम के बारे में कुछ भी पता नहीं है।

NoMoPhobia के नुकसान
मानसिक बीमारी का सीधा असर सामाजिक संबंधों पर पड़ता है। रोक टोक होने पर परिवार में तनाव बढ़ता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है। यही नहीं, इससे आर्थिक नुकसान भी होता है। मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से कोहनी, हाथ और गर्दन में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। डाटा यूज बेवजह बढ़ जाता है। शॉपिंग या गेमिंग ऐप्स पर फालतू खरीदारी होती है। अनाप शनाप ऐप और साइट आपको साइबर क्राइम का शिकार बना सकते हैं। 

NoMoPhobia से कैसे बचें?
मोबाइल को लत ना बनने दें। हमेशा ध्यान रखें कि असली दुनिया मोबाइल के बाहर है। असली दुनिया से कनेक्शन को ठीक रखें। लोगों के साथ समय बिताएं। कई देशों में मोबाइल के अधिकतम इस्तेमाल की सीमा निर्धारित की गई है और समय समय पर इसके लिए गाइडलाइंस जारी होती हैं। 

बच्चों का रखें खास ख्याल
बच्चे को जल्दी मोबाइल थमा देना समस्या को बुलावा देना है। नोमोफोबिया जैसी बीमारी कई वर्षों तक मोबाइल के बेजा इस्तेमाल से पैदा होती है। बच्चों को आउटडोर गेम्स, ईवेंट्स, सेलिब्रेशन, फेस्टिवल वगैरह में शामिल होने के लिए मोटिवेट करें। स्कूल में मोबाइल फोन को लेकर सख्ती अच्छी बात है। 


(ये लेख वरिष्ठ पत्रकार मनोज श्रीवास्तव के पॉडकास्ट ‘Pure जिंदगी’ से प्रेरित है)