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झारखंड सरकार बना रही ट्राइबल डेवलपमेंट एटलस, जानिये क्या है इसका मकसद और किसे होगा फायदा

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द फॉलोअप डेस्क 

हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए ट्राइबल डेवलपमेंट डिजिटल एटलस तैयार करने का निर्णय लिया है। आदिवासी कल्याण आयुक्त की निगरानी में इस योजना को शुरू कर दिया गया है। योजना के कई चरण होंगे। पहले चरण में पीवीजीटी आदिवासी यानी अति कमजोर श्रेणी के आदिवासियों का बुनियादी सर्वे और उनकी मैपिंग का निर्णय लिया गया है। इसके तहत आदिवासी गांवों में उपलब्ध रोजगार, आय, कौशल क्षमता, शिक्षा और अन्य आधारभूत सुविधाओं की सूची तैयार की जायेगी। 

गांवों को किया गया लिस्टेड 

इसके बाद गांवों के लिए अलग से योजना बनाने पर विचार किया जायेगा। मिली जानकारी के अनुसार इन आदिवासी गांवों के लिए बड़े स्तर की योजनाएं मिशन मोड में लायी जायेंगी। बता दें कि अगस्त 2023 तक झारखंड में लिस्टेड किये गये 31 हजार पीवीजीटी गांवों में लगभग 68 हजार परिवारों चिह्नित किया जा चुका है। सरकार की योजना इन गांवों व सामान्य गांवों के बीच विकास की बड़ी लकीर खींचना है। 

क्या होगा योजना के तहत 

अति पिछड़ी श्रेणी के आदिवासियों के सामाजिक और बुनियादी सुविधाओं पर फोकस होगा। साथ ही इन गांवों में रोजगार के जो भी पारंपरिक साधन हैं, उनको विकसित किया जायेगा। इस दिशा में एसएचजी और दूसरे महिला समहों की मदद सरकार लेगी। साथ ही गांव के उत्पाद औऱ उपज को सही कीमत मिले, इसके लिए ग्रामीणों की सीधी पहुंच बाजार तक बनायी जायेगी। उदाहरण के लिए वनोपज उत्पाद के लिए सिद्धो-कान्हो वनोपज फेडेऱशन की मदद ली जायेगी। संबंधित गांवों में कुपोषण की दर घटाने के लिए खाद्य सुरक्षा की डाकिया योजना को मजबूती प्रदान की जायेगी। 

अबतक सरकार ने ये कदम उठाये हैं 
सीएम हेमंत सोरेन के आदेश पर जिन अति पिछड़े आदिवासी समुदाय पर डेटाबेस को फोकस किया गया है वे हैं, असुर, कोरबा, माल पहाड़िया, बिरोहर, सबर, बिरजिया सौर पहाड़िया आदि। इन समुदायों के युवक-युवतियों के लिए इसी साल मुफ्त आवासीय कोचिंग की व्यवस्था की गयी है। इन कोचिंग संस्थानों में 150 आदिवासी युवाओं को विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए तैयार किया जा रहा है। यह कार्यक्रम देश के आदिवासियों के लिए अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है। जिसे सीएम हेमंत की देखरेख में तैयार किया गया है।