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आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ SC जाएंगी जी कृष्णैया की पत्नी, कहा- मेरे पति का हत्यारा...

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द फॉलोअप डेस्क
आनंद मोहन की जेल से रिहाई का मामला अब तुल पकड़ता जा रहा है। विपक्षी पार्टियों के बाद अब डीएम जी कृष्णैया की पत्नी ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल करते हुए पूछा है कि एक दलित और ईमानदार अफसर के हत्यारे को जेल से छोड़ा रहा है,क्या यही इंसाफ है? इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात भी कही है। जी कृष्णैया की पत्नी टी उमा देवी ने कहा है कि वह बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार कर रहे हैं। वहीं बिहार सरकार के इस फैसले पर नई दिल्ली में सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन ने भी निराशा जताई है।

यह बहुत ही गलत बात 
उमा देवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मेरे पति के हत्यारे को फांसी होनी चाहिए या उसको जिंदगी भर जेल में रहना चाहिए। नीतीश कुमार केवल अपनी राजनीति के बारे में सोच रहे हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। सीएम उन्हें पब्लिक के बारे में भी सोचना चाहिए। अपनी सरकार को बनाने के लिए अब वह अपराधियों को जेल से छोड़ रहे हैं। क्या आपको अच्छे लोग नहीं मिले? इसलिए आप आनंद मोहन को रिहा करवा रहे हैं। वहीं उनकी बेटी ने कहा कि नीतीश कुमार ऐसा करेंगे यह हमने कभी सोचा नहीं था यह बहुत ही गलत बात है मेरे पिता इतना अच्छा काम कर रहे थे कि लोग आज भी उनके चर्चा करते हैं उनका मर्डर करने वाले को क्यों जेल जेल से छोड़ा जा रहा है।


राजपूत समाज का वोट के लिए ऐसा कर रहे सीएम
उमा देवी ने कहा कि ऐसा आदमी अगर जेल से छूट गया तो अपराधियों को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही उमा देवी ने कहा कि राजपूत समाज का वोट लेने के लिए सीएम आनंद मोहन को छोड़ा रहे हैं। मैं राजपूत समाज से पूछना चाहती हूं कि क्या उन्हें अपने समाज में अच्छे लोगों के बजाय बुरे लोगों को समर्थन में आगे आना चाहिए। 


IAS एसोसिएशन ने जताई नराजगी
IAS एसोसिएशन ने जी कृष्णैया के हत्या के मामले में सजा काट रहे दोषी को रिहा करने के लिए नियमों में बदलाव किया गया है, जो कि काफी दुखद है। उन्होंने राज्य सरकार से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की। ड्यूटी पर तैनात गोपालगंज के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट की हत्या कर दी गई थी। उनके हत्यारे को रिहा करने के लिए नियमों में बदलाव कया जाना और रिहाई का आदेश देना उनको न्याय से वंचित करने के समान है। बिहार सरकार का इस तरह का फैसला सार्वजनिक व्यवस्था को कमजोर बनाता है। यह न्याय प्रशासन का उपहास है। नीतीश सरकार का ये फैसला लोक सेवकों का मनोबल कमजोर करने वाला है।

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