द फॉलोअप डेस्क
तमिलनाडु में अन्ना विश्वविद्यालय की 19 वर्षीय छात्रा के साथ हुए यौन उत्पीड़न का मामला इन दिनों सुर्खियों में है, और इस मुद्दे पर मद्रास हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस घटना की निष्पक्ष और विस्तृत जांच के लिए SIT (विशेष जांच टीम) गठित करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने पुलिस द्वारा पीड़िता का विवरण सार्वजनिक करने और FIR में की गई गंभीर लापरवाही पर राज्य पुलिस को फटकार लगाई, और पीड़िता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश भी दिया। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने पीड़िता और उसके परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पुलिस को भी आदेश दिए।
कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायण शामिल थे, ने इस मामले में कई गंभीर चूकें उजागर कीं। खासतौर पर, FIR में दर्ज की गई निंदनीय भाषा पर अदालत ने चिंता जताई, जिसमें पीड़िता को दोषी ठहराया गया था। सुनवाई के दौरान जस्टिस सुब्रमण्यम ने राज्य के महाधिवक्ता से तीखे सवाल किए, यह कहते हुए कि FIR में पीड़िता को दोषी ठहराने का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर और शर्मनाक माना, यह कहते हुए कि FIR के लीक होने से पीड़िता को मानसिक पीड़ा और अपमान का सामना करना पड़ा। कोर्ट ने इस घटना को महिला विरोधी बताया और कहा कि समाज का कर्तव्य है कि वह महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। आगे अदालत ने सवाल उठाया कि क्यों एक महिला स्वतंत्रता से कहीं भी जा सकती है, अपनी इच्छानुसार कपड़े पहन सकती है, और बिना किसी आलोचना के पुरुषों से बात कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज को महिलाओं के खिलाफ कलंक की भावना को समाप्त करना होगा, क्योंकि यह कभी उनकी गलती नहीं होती, बल्कि समाज ने ही उन्हें ऐसे आंका है।