द फॉलोअप डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को उसके दूसरे पति से भरण-पोषण दिलाने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 125 का मकसद समाज में न्याय सुनिश्चित करना है, इसलिए इस मामले में महिला को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि दूसरी शादी के पति को इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जाता है, तो यह न सिर्फ कानून के उद्देश्यों को विफल करेगा बल्कि ऐसे मामलों को बढ़ावा देगा जहां व्यक्ति शादी के अधिकारों का लाभ उठाकर अपने कर्तव्यों से बच सकता है।
मामला क्या है?
महिला ने 2005 में अपने पहले पति से अलग होने का समझौता किया, लेकिन कानूनी रूप से तलाक नहीं हुआ। इसके बाद उसने अपने पड़ोसी से 27 नवंबर 2005 को शादी की। लेकिन कुछ समय बाद दोनों के बीच मतभेद हो गए और फरवरी 2006 में फैमिली कोर्ट ने उनकी शादी को रद्द कर दिया। बाद में दोनों ने सुलह कर ली और दोबारा शादी की, जिसे हैदराबाद में पंजीकृत कराया। उनकी बेटी का जन्म जनवरी 2008 में हुआ।
हालांकि, फिर से दोनों के बीच विवाद हुआ और महिला ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ दहेज प्रतिषेध कानून के तहत शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद उसने CrPC की धारा 125 के तहत अपने और बेटी के लिए भरण-पोषण की मांग की। फैमिली कोर्ट ने यह मांग स्वीकार कर ली, लेकिन महिला के दूसरे पति ने तेलंगाना हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी, जहां यह आदेश रद्द कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दूसरे पति का कहना था कि महिला कानूनी रूप से उसकी पत्नी नहीं है क्योंकि उसकी पहली शादी खत्म नहीं हुई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए महिला को भरण-पोषण देने का आदेश बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी महिला और उसके बच्चे को बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता, भले ही उसकी शादी की कानूनी स्थिति विवादित हो। यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत लेकर आया है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।