द फॉलोअप डेस्क
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने बड़ा फैसला लिया है। पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाते हुए भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। अब जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई नहीं करता, भारत न तो पानी देगा न ही पानी के बंटवारे को लेकर कोई सूचना देगा, न ही कोई सहयोग। इसे भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है। लेकिन जानकारों के मुताबिक, तकनीकी बाधाओं के चलते पाकिस्तान को तुरंत पानी से वंचित करना आसान नहीं होगा। सवाल उठ रहे हैं कि भारत पश्चिमी नदियों के पानी को किस हद तक और कितनी जल्दी रोक सकता है। हालांकि अब पाकिस्तान को सिंधु नदी सिस्टम की पश्चिमी नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — के पानी पर भारत की ओर से पूर्व की तरह सहयोग नहीं मिलेगा। नई दिल्ली के इस कदम को एक बड़ा रणनीतिक बदलाव माना जा रहा है, लेकिन इससे कुछ जटिल सवाल भी उठ खड़े हुए हैं: क्या भारत तुरंत पाकिस्तान का पानी रोक सकता है? और यदि हां, तो कैसे?
तकनीकी चुनौतियां और बुनियादी ढांचा
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के पास कानूनी और कूटनीतिक तौर पर पश्चिमी नदियों पर नियंत्रण बढ़ाने की गुंजाइश जरूर है, लेकिन फिलहाल मौजूदा बुनियादी ढांचा इतना सक्षम नहीं कि पानी का बहाव तुरंत मोड़ सके। पानी डायवर्ट करने के लिए बड़े जलाशय और स्टोरेज परियोजनाओं की कमी भारत की तात्कालिक क्षमताओं को सीमित करती है।
पाकिस्तान के लिए क्यों है ये संकट?
पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि सिंधु प्रणाली पर निर्भर है, और देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का बड़ा योगदान है। सिंधु जल संधि के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी प्रमुख बिलावल भुट्टो ने धमकी दी, "या तो हमारा पानी बहेगा या उनका खून।"
भारत का अब तक का उपयोग
अब तक भारत मुख्य रूप से पूर्वी नदियों — रावी, ब्यास और सतलुज — से अपने हिस्से का लगभग 95% पानी उपयोग कर रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भाखड़ा, पोंग और रंजीत सागर बांधों ने इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद की है। दूसरी ओर, पश्चिमी नदियों पर भारत का उपयोग सीमित रहा है — कुछ छोटे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स तक सिमटा हुआ, जैसे किशनगंगा और रतले परियोजनाएं।
अब क्या बदलेगा?
'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक, सिंधु जल मामलों के पूर्व भारतीय कमिश्नर पी.के. सक्सेना ने बताया कि संधि के निलंबन के बाद भारत को अब न पाकिस्तान को परियोजनाओं की सूचना देनी होगी, न दौरे आयोजित करने होंगे और न ही डेटा साझा करना पड़ेगा। किशनगंगा प्रोजेक्ट पर भारत अब फ्लशिंग जैसी तकनीकें भी इस्तेमाल कर सकेगा, जिससे बांधों की उम्र बढ़ाई जा सकेगी।
नई परियोजनाओं की तैयारी
भारत ने पहले से ही कई परियोजनाएं चिनाब और उसकी सहायक नदियों पर शुरू कर रखी हैं, जैसे पाकल दुल (1,000 मेगावाट), कीरू (624 मेगावाट) और रातले (850 मेगावाट)। जम्मू स्थित दैनिक एक्सेलसियर के अनुसार, उझ बहुउद्देशीय परियोजना पूरी होने पर 925 एमसीएम पानी स्टोर करने की क्षमता बनेगी, जबकि शाहपुरकंडी बांध से भारत को सिंचाई के लिए 1,150 क्यूसेक पानी मिलेगा, जो पहले पाकिस्तान में बह जाता था।
भारत किस रणनीति पर कर रहा काम
सरकार ने पश्चिमी नदियों पर दबाव बनाने के लिए तीन-चरणीय रणनीति तैयार की है — छोटी, मध्यम और दीर्घकालिक परियोजनाओं के जरिये स्टोरेज और डायवर्जन क्षमताओं का विकास। हालांकि सामरिक मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन के अनुसार, फिलहाल तुरंत पानी रोकना संभव नहीं है, लेकिन आने वाले वर्षों में निर्माणाधीन बांधों और नई परियोजनाओं से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
हालांकि पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि पर बड़ा फैसला लिया है, लेकिन पाकिस्तान को पानी के संकट में डालने के लिए अभी तकनीकी और समय संबंधी चुनौतियों से गुजरना पड़ेगा। फिर भी, यह तय है कि अब भारत किसी भी दबाव से मुक्त होकर अपनी जल-नीति पर काम कर सकता है — और पाकिस्तान के लिए पानी की हर बूंद अब अनिश्चितता से भरी होगी।