मोहित/दुमका:
दुमका जिला का शिकारीपाड़ा स्थित पत्थर औद्योगिक क्षेत्र कभी इकोनॉमिक इंजन के रूप में विख्यात था लेकिन मौजूदा समय में यहां मंदी की नौबत आ गई है। स्थानीय लोगों का मानना है कि ईडी प्रकरण के बाद झारखंड में जिस प्रकार कोयला, बालू और पत्थर उद्योग पर प्रशासन ने सख्ती की है, उससे शिकारीपाड़ा के पत्थर उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा है। स्टोन माइंस संचालित नहीं होने की वजह से हजारों मजदूरों के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है। लोग काम मांग रहे हैं।
शिकारीपाड़ा में बुलाई गई अहम बैठक
शिकारीपाड़ा में आजीविका संकट को लेकर सरसडंगाल स्थित मकड़ा पहाड़ी में बेरोजगार मजदूर संघ के बैनर तले अहम बैठक बुलाई गई। बैठक में सैकड़ों की संख्या में मजदूरों, कई गांवों के ग्राम प्रधानों तथा जनप्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। शिकारीपाड़ा (मध्य) के जिला परिषद सदस्य अविनाश सोरेन ने कहा कि ये आदिवासी बहुल इलाका है। अधिकांश लोग यहां स्टोन माइंस में काम करते हैं।
बीते कई महीनों से माइंस का संचालन नहीं होने से मजदूरों के समक्ष आजीविका का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि यदि जल्द ही माइंस में उत्पादन शुरू नहीं हुआ तो संकट गहरा जायेगा।
50 हजार मजदूर बेरोजगार हुए
माले के सुभाष मंडल ने कहा कि लगभग 50 हजार मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। पूरे शिकारीपाड़ा क्षेत्र से लोग पलायन कर अन्य प्रदेशों में रोजगार की तलाश में जा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि पूर्व में यदि अवैध ढंग से पत्थर खदान एवं क्रेशर चल रहा थे तो किसकी छत्रछाया में चल रहा था यह जांच का विषय है। उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारियों को इंगित करते हुए कहा कि आज वही अधिकारी अवैध पत्थर खदान एवं क्रेशर को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं जबकि पहले शायद उनकी नजर में पूरा उद्योग वैध था।
संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग
इस पूरे प्रकरण में अधिकारियों को भी समान रूप से दोषी ठहराते हुए कार्रवाई की मांग की और कहा कि सिर्फ गरीब मजदूर , रैयतों एवं कुछ एक संचालकों पर दिखावे के लिए प्रशासन ने केस दर्ज किया है। उपस्थित ग्राम प्रधानों एवं अन्य ग्रामीणों ने एक स्वर से कहा कि यदि जल्द ही हमारी रोजगार की मांग के मुद्दे पर प्रशासन नहीं चेतती है तो हम लोग सड़क पर उतरेंगे और चक्का जाम करेंगे।