द फॉलोअप डेस्क
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास सक्रिय राजनीति में वापसी कर रहे हैं। इसी कड़ी में आज गुरूवार को वो झारखंड वापसी कर चुके हैं। रघुवर दास के इस्तीफे के बाद अब झारखंड की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। पॉलिटिक्स में दोबारा एक्टिव होने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका लंबा सांगठनिक और प्रशासनिक अनुभव पार्टी के लिए हितकर होगा। तो आइए जानते हैं कि आखिर कैसे रघुवर दास ने एक मजदूर से लेकर राजनेता बनने तक का सफर तय किया...
ऐसे बने झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री
झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास का जन्म 3 मई 1955 को जमशेदपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम स्व चमन राम और माता का नाम स्व सोनवती देवी है। उनकी स्कूली शिक्षा भालूबासा हरिजन विद्यालय में हुई, जहां से रघुवर दास ने मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद पूर्व सीएम ने जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज से Bsc और law की परीक्षा पास की। बता दें कि रघुवर दास के परिवार में उनकी पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री हैं ।
रघुवर दास ने अपना बचपन बहुत मुश्किलों में गुजारा है, यही कारण था कि बचपन में उन्होंने जमशेदपुर की टाटा स्टील रोलिंग मिल में मजदूर के रूप में काम कर अपना सफर शुरू किया। हालांकि, टाटा स्टील में मजदूरी करने से लेकर झारखंड की राजनीति में प्रमुख नेता के तौर पर स्थापित होने तक का उनका सफर बेहद दिलचस्प रहा है। जानकारी हो कि रघुवर दास को भाजपा के प्रमुख और वरिष्ठ नेताओं में से एक माना जाता है। झारखंड की राजनीति में वो एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित हैं। रघुवर दास झारखंड के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने साल 1995 में पहली बार भाजपा की टिकट पर जमशेदपुर (पूर्व) से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। 5 बार भाजपा के विधायक रह चुके रघुवर दास ने 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010 तक झारखंड के उपमुख्यमंत्री का पद भी संभाला है। साथ ही NDA की सरकार में ये विभिन्न मंत्री पदों पर भी रहे हैं।
ऐसा माना जाता है कि बतौर भाजपा संगठनकर्ता रघुवर दास ने कई प्रदेशों में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, भाजपा के कद्दावर नेताओं में गिने जाने के बावजूद उनका आरएसएस या अन्य सहयोगी संगठनों से कोई सीधा संबंध नहीं रहा है। रघुवर दास साल 1974 में हुए छात्र आंदोलन के समय से ही समाजवादी छात्र संगठनों के संपर्क में थे। भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी की ओर से कई जिम्मेदारियां दी गईं, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। साल 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में रघुवर दास ने 'जमशेदपुर पूर्व' सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी आनन्द बिहारी दुबे को 70157 वोटों के अंतर से हराते हुए, वो झारखंड के छठे मुख्यमंत्री बने थे। इस दौरान बीजेपी के नेतृत्व में बनी NDA की सरकार में रघुवर दास ने पूरे 5 सालों तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।
बहू की जीत के साथ मजबूत हुई राजनीतिक स्थिति
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में रघुवर दास की परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी से उनकी बहू और भाजपा नेता पूर्णिमा दास साहू ने जीत हासिल की है। पूर्णिमा ने कांग्रेस प्रत्याशी अजय कुमार को 42,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की है। बहू की इस जीत ने रघुवर दास के राजनीतिक परिवार की मजबूत स्थिति को और पुख्ता कर दिया है।रघुवर दास का राजनीतिक सफर
मिली जानकारी के अनुसार, रघुवर दास ने अपना राजनीतिक सफर साल 1977 में जनता पार्टी के साथ शुरू किया था। इसके बाद 1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ ही वो सक्रिय राजनीति का हिस्सा बन गए। उन्होंने साल 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्व से विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने। उसके बाद से रघुवर दास ने लगातार 5 बार इसी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीता। बताया जाता है कि साल 1995 में बीजेपी के प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने तत्कालीन बिहार के जमशेदपुर पूर्व सीट से उनका टिकट तय किया था। इसके बाद रघुवर दास 15 नवंबर, 2000 से 17 मार्च, 2003 तक राज्य के श्रम मंत्री रहे थे। फिर मार्च 2003 से 14 जुलाई, 2004 तक उन्हें भवन निर्माण और 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर, 2006 तक झारखंड के वित्त, वाणिज्य और नगर विकास मंत्री पद का दायित्व भी संभाला था।
इसके अलावा बता दें कि रघुवर दास साल 2009 से 30 मई, 2010 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ बनी बीजेपी की गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री, वित्त, वाणिज्य, कर, ऊर्जा, नगर विकास, आवास और संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। साल 2014 से 2019 तक NDA सरकार में वो झारखंड के सीएम पद पर आसीन रहे। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट से अपने ही मंत्रिमंडल के सरयू राय से हार का सामना करना पड़ा था। सरयू राय ने साल 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भाजपा उम्मीदवार रघुवर दास को हराकर सभी को चौंका दिया था।
इसके कुछ ही महीने बाद रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया था। जिसके बाद रघुवर दास ने बीजेपी के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया था।
हालांकि, ओडिशा का राज्यपाल बनाए जाने पर रघुवर दास को करीब 14 महीने पहले तात्कालिक वजहों से राज्य की राजनीति से दूर होना पड़ा था। माना जाता है कि ऐसा करने का उद्देश्य बाबूलाल मरांडी को फ्री हैंड देना था। चूंकि, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद थी कि बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी राज्य की सत्ता में वापसी कर सकती है। बहरहाल, ऐसा हो नहीं पाया और विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी। इस कारण राज्य में भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई। ऐसे में हो सकता है कि रघुवर दास बतौर प्रदेश अध्यक्ष बेहतर विकल्प साबित हो।
बीजेपी में मिल सकता है बड़ा पद
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा भी है कि रघुवर दास को बीजेपी केंद्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। क्योंकि उनकी गिनती केंद्रीय मंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी नेताओं में होती है। वो भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं और अभी जेपी नड्डा का कार्यकाल समाप्त भी होने जा रहा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि रघुवर दास को बीजेपी में कोई बड़ा पद मिल सकता है।