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नई बयार : झारखंड के इस गांव को क्यों मिला थर्ड नेशनल वाटर अवार्ड, जानिये हौसले ने कैसे बदली तस्वीर 

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रांची:

'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों' कवि दुष्यंत की इन पंक्तियों को गुनी गांव के लोक प्रेरक दीदियों और ग्रामीणों ने चरितार्थ कर दिखाया है। झारखंड की राजधानी रांची से 30 कि.मी. दूर खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड में घुन्सुली पंचायत में यह गाँव है। इसमें कुल 70 घर हैं। यहाँ की कुल आबादी 400 है। हरे-भरे जंगलों में बसे ये गाँव कल तक एक उजड़े, असंगठित और शराब के नशे मे डूबे चरमराई अर्थव्यवस्था की तस्वीर दिखता था। लेकिन आज यह एक स्वावलंबी ग्राम के रूप में उभर कर सामने आया है। यही सबब है कि बेस्ट विलेज पंचायत कैटेगरी ईस्ट जोन में गांव को तीसरा स्थान मिला है। वहीं थर्ड नेशनल वाटर अवार्ड विनर भी गुनी गांव बना है।

बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व और ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के दिशा-निर्देश में अब राज्य के गांव आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। ग्रामीण विकास विभाग गांव के समग्र विकास के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लोगों को कृषि, और आजीविका से जोड़ने का काम कर रहा है। इसी कड़ी में प्रमुख तस्वीर मुंडा समाज बहुल आदिवासी गाँव गुनी की बदली है। जबकि पहले गाँव में शराब लोगों की दिनचर्या थी। महिलाएँ घरेलु हिंसा का शिकार थी। छोटे बच्चे और युवा भी शराब से प्रभावित थे। आलम ऐसा था कि पर्व-त्योहार में तो लोग 15-15 दिन तक नशे में ही डूबे रहते थे। जंगलों से लकड़ी काटना और उसे बाजार में बेचकर आधे पैसे शराब में गवाना और आधे पैसे से परिवार के जीवन व्यापन करना ही इनकी नियति बन चुकी थी। सरकारी कार्यक्रमों से उपेक्षित एवं आस-पास के गाँव के लोगों के बीच अस्तित्व विहीन गाँव केवल शराब बेच कर, जंगल काट कर तथा राँची में मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाने में लगा था। लेकिन जिस प्रकार दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति हो तो आने वाला भविष्य भी परिवर्तित होता है वैसे ही अभी की स्थिति इस गांव की अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उदाहरण बनकर सामने है।

स्वच्छ्ता से शुरुआत
अब कहानी की सत्य कुछ इस प्रकार प्रदर्शित होता है कि सुबह की घंटी बजी और वक्त हो चला है साफ-सफाई का, स्वच्छता सेनानी हाथों में झाड़ू लिए निकल पड़े हैं अपने गांव को स्वच्छ और सुंदर बनाने। इसके साथ ही होती है गांव के दिन की शुरुआत और यहीं से शुरू होता है इस गांव वासियों की स्वावलंबी बनने का सफर। सुबह उठते ही गांव की महिलाएं सबसे पहले अपनी सड़कों की सफाई और गली चौराहे पर उगी गंदी झाड़ियों  की कटाई कर गांव की गलियों को स्वच्छ और सुंदर बनाते हैं। झाड़ू करने के बाद इकट्ठा हुए कूड़े को सही जगह ठिकाने लगाने के लिए गांव वासियों ने बांस से बने कूड़ेदान को जगह जगह लगाया है ताकि कोई भी कूड़ा सड़क पर इधर-उधर ना फैले। सफाई को ले कर सजग गांव वालो में शौचालय के इस्तेमाल से लेकर खाने से पहले हाथ धोना एवं साफ-सफाई से रहना जैसी तमाम अच्छी आदतें इस गांव के बड़े-बुजूर्ग एवं हर बच्चे में देखी जा सकती है। गांव को स्वच्छ रखने के साथ-साथ पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए गांव के सड़को के किनारे वृक्ष लगाने की मुहिम की भी शुरुआत की गई है, क्योंकि साफ सफाई के साथ पर्यावरण को स्वच्छ रखना कितना जरूरी है इसे गांव वासियों भली-भांति जानते हैं। यह भी दर्शाता है कि यहाँ के लोग अपने स्वास्थ को ले कर भी गंभीर रहते है और यही कारण है कि यह गांव नशा मुक्त गांव की श्रेणी में भी आता है , जहाँ के लोगो ने अब लगभग नशा करना छोड़ ही दिया है, जिसका यह परिणाम है कि आज इस गांव के लोग स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी रहे है।

 

प्रत्येक बृहस्पतिवार ग्राम सभा का आयोजन
इस गांव में हर बृहस्पतिवार को ग्रामसभा बुलाई जाती है जिसकी शुरुआत दीनदयाल ग्राम स्वालंबन योजना के तहत सरकार द्वारा खूंटी के 760 गांव में ग्राम वासियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से की गई थी, जो आज इस गांव के विकास की आधारशिला बन गई है, जहां गांव और गांव वासियों के हित के लिए तमाम बड़े फैसले गांव वासियों द्वारा ही लिए जाते हैं। गांव के इस सभा की खासियत यह है कि इसमें सिर्फ गांव के पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे भी अपनी भागीदारी निभाते हैं और सब मिलकर जटिल से जटिल समस्या का आपसी विचार-विमर्श कर समाधान निकालते हैं, बात किसी सरकारी योजना के उपयोग से गांव की विकास की गति तेज करने की हो या श्रमदान के माध्यम से बड़ी से बड़ी परेशानियों का समाधान खोजने की। गुनी गांव के लोग मिलजुलकर इस सभा में अपनी सहमति से सभी मुद्दों पर फैसले लेते हैं और उन पर अमल करते हैं। साथ ही हर सप्ताह ग्रामसभा में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि पिछले सभा में लिए गए फैसले सजगता से गांव वालों द्वारा अमल में लाए जा रहे हैं या नहीं और अमल हो रहे इन योजनाओं का गांव को कितना लाभ मिल रहा है।

 

महिला सशक्तिकरण और महिला सभा

वैसे बात सशक्तिकरण की हो और महिलाओं की चर्चा ना हो यह मुमकिन नहीं, महिला सशक्तिकरण और आत्मनिभर्र गांव के विकास में महिलाओं की भागीदारी बराबर की रहे यह सुनिश्चित करने हेतु यहां की महिलाओं द्वारा महिला सभा का आयोजन किया जाता है जो यहां दीदी मीटिंग के नाम से प्रसिद्ध है, इस मीटिंग के द्वारा ग्राम की महिलाओं का आत्मविश्वास और बढ़ाने का कार्य किया जाता है, नतीजतन आज ग्राम की हर एक महिला अपने विचारों को सभी के सामने रखने तथा अपने और समाज के लिए फैसले लेने में सक्षम है तथा साक्षरता की और कदम बढ़ाते हुए आज गांव की लगभग सभी महिलाएं दस्तावेजों पर अंगूठा लगाना छोड़ हस्ताक्षर करना सीख गई है। अपने गांव को पूर्णतः साक्षर बनाने हेतु केवल महिलाओं की ही नहीं बल्कि गांव के बच्चों के पढ़ाई लिखाई पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। कोरोना जैसी वैश्विक आपदा के इस दौर ने जब सारे स्कूल और कॉलेजों के दरवाजे पर ताले लटके थे तब इस ग्राम के कुछ युवा आगे आए और अपने गांव के बच्चों के भविष्य को अंधकार में जाने से बचाने का निर्णय लिया, तथा गावं में ही बच्चों की क्लास शुरू की गई। इस सराहनीय कदम के कारण आज गांव के हर बच्चे को अपने हिस्से की संपूर्ण शिक्षा प्राप्त हो रही है।

 

स्वावलंबी राह
शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बाद अब बारी थी आर्थिक रूप से स्वालंबी होने की जिसके लिए ग्राम
वासियों ने पशुपालन तथा खेती के मार्ग को चुना। अमूमन पशुपालन के नाम से गाय और बकरियों का ही
ध्यान आता है किंतु यहां भी गुनी गांव वासियों ने कुछ अलग कर दिखाते हुए बत्तख और मधुमक्खी पालन जैसे
नए क्षेत्रों का उपयोग करना शुरू किया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने के उद्देश्य से झारखंड सरकार द्वारा मनरेगा योजना के तहत महत्वपूर्ण एवं महत्वाकांक्षी योजनाएं जैसे नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना आदि की शुरुआत की गयी है। मनरेगा के तहत संचालित इन योजनाओं का उद्देश्य जल का संचय कर भूमि के जल स्तर में बढ़ोतरी कराना, मिट्टी के कटाव को कम करना, खेती की सिंचाई के लिए उपयुक्त पानी को संग्रह कर रखना आदि है। इन योजना का लाभ और खुद गांव वालों के श्रमदान के बदौलत इस गांव ने सबसे बड़ी उपलब्धि हांसिल की है और वो है इनके द्वारा 300 एकड़ में की गयी धान की खेती। मनरेगा से प्रेरणा लेते हुए गांव वालों ने जल संरक्षण के प्रति अपने कर्तव्य को भी बखूबी समझा है तथा खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में रोकने का संकल्प ले खुद से श्रमदान कर लगभग 300 से ज्यादा एकड़ में मेड़बन्दी और ट्रेंज सह बंड का कार्य किया, परिणाम स्वरूप इन्होंने अपने बंजर पड़े खेतो में वर्षा का जल रोक उन्हें पुनः उपजाऊ बना लगभग 300 एकड़ से भी ज्यादा की खेतो में फसलों की हरी चादर बिछा दी है। हरे भरे लहराते खेत और खेतों के बीच श्रमदान द्वारा की गई टीसीबी और मेड़बंदी गुनी ग्राम वासियों के अपने गांव के प्रति समर्पण को दर्शाता है। गांव वालों की मेहनत से आज भूमिगत जल में बढ़ोतरी हुई और आज के समय गांव में शायद ही कोई ऐसा कुआं होगा जो पूरा भरा न हो,
साथ ही खेतों का पानी खेतों में ही रुक जाने से आज गावं की मिट्टी इतनी उपजाऊ हो गई है कि जहां पहले किसान एक से दो फसल ही लगा पाते थे वही आज तीन फसल उगाने की तैयारी कर रहे हैं।

 

जेएसएलपीएस की मदद से लगभग 24 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती


इसके साथ ही जेएसएलपीएस की मदद से लगभग 24 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती की भी शुरुआत की गई
है, साथ ही यहाँ के ग्रामीण मडुआ की खेती तथा आम बागानी पर भी जोर दे रहे है। क्षेत्र चाहे शिक्षा का हो या रोजगार का, चाहे बात जागरूकता की हो या गांव के सौंदर्यकरण की। आज गुनी ग्राम के वासी हर क्षेत्र में स्वालंबी बनकर विकास के पथ पर अग्रसर है। और यह सब मुमकिन हो पाया है लोक प्रेरक दीदियों के कारण जिन्होंने घर-घर जाकर इन ग्राम वासियों को उनके आत्मबल का एहसास दिला यह समझाया है कि प्रगति के लिए परिवर्तन कितना जरूरी है और यह परिवर्तन हम ला सकते हैं आत्मनिर्भर बनकर। दुनिया में सबसे कीमती गहना हमारा परिश्रम है और जिंदगी में सबसे अच्छा साथी हमारा आत्मविश्वास, और इसी परिश्रम और आत्मविश्वास की जुगलबंदी से बनाया खूबसूरत और खील खिलाता चेहरा है आज के बदलते झारखंड के स्वावलंबी होते गुनी गांव का। गाँव के लोगों ने भी अब बढ़-चढ़कर ग्राम-सभा की बैठकों को नियमित किया और सामूहिक निर्णय के आधर पर योजनाओं का चयन प्रारम्भ हुआ।

 

गाँव के विकास के लिए छः नियम बनाये गए 

1. ग्राम सभा के माध्यम से गाँव में एकता
2. घर, सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों की सफाई, झाड़ियों को काटने और कूड़ेदान का उपयोग
3. दीदी की बैठक और उनके फैसले (बच्चों का सही और उचित आहार, अँगूठा मुक्त गाँव, ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी)
4. नशा मुक्ति
5. ग्राम सभा के माध्यम से शिक्षा
6. मनरेगा और श्रमदान के माध्यम से जल संरक्षण।
7. समूह खेती (लेमनग्रास और मारुआ)
8. वृक्षारोपण व अन्य आजीविका गतिविधियाँ।

योजनाओं को सामूहिक श्रमदान से पूर्ण किया। जिसके परिणाम स्वरूप गाँव में अब भू-गर्भ जल स्तर ठीक हो चुका है और हर कुआँ व खेत तक पानी की उपलब्ध्ता प्रयाप्त है। तथा आम के पेड़ की बागवानी से भी लोगों को लाभान्वित किया गया है। गाँव के लोगों ने स्वच्छता कार्यक्रम को भी अपनाया और कचड़ा से कम्पोस्ट खाद एवं नाडेप गड्ढे व बायोगैस प्लांट का भी निर्माण कराया। गाँव के सड़क व गली की नियमित सफाई श्रमदान के माध्यम से अनवरत चालू हुई तथा कचड़े के भंडारण हेतु जगह-जगह बाँस से बने कूड़ादान निर्माण कर लगाया गया। जिससे गाँव अब पूर्ण रूपेण स्वच्छ व साफ दिखाई देता है। इसका एक बड़ा फायदा गाँव वालों को यह मिला कि गाँव के लोग अब बीमार नहीं पड़ते हैं और सभी स्वस्थ दिखने लगे हैं। गाँव वालों की आजीविका के साधन अब बदल चुके हैं। गाय, बकरी, मुर्गी, मछली, सुअर और बत्तख पालन अब मुख्य पेशा बन चुका है। जिसमें सभी लोगों को अच्छी आय प्राप्त हो रही है। जो गाँव वालों के आर्थिक समृद्धि का सूचक है। इन्हें स्कूल के अलावे ट्यूशन पढ़ाने के लिए गाँव के ही दो स्नातक पास युवा हैं। 
गुनी गाँव में रहने वाले लोग कहते हैं कि आज गाँव की सूरत बदल गयी है। पहले ऐसा नहीं था। ग्रामीणों की मेहनत और लगन देखकर मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी जी ने उन्हें आरा- केरम ले जाकर भ्रमण कराया। जहां उन्होंने सीखा की गाँव को आगे बढ़ाना है तो पागल बनना पड़ेगा। लोग कुछ भी कहें, काम करते रहना होगा। इससे उन्हें काफी प्रेरणा मिली और परिणाम सबको चकित कर रहा है।

दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना
योजना की जमीनी हकीकत देखना हो तो आप खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के गुनी गांव आ सकते हैं, जहां लॉकडाउन के मात्र पांच माह में ग्रामीणों ने गांव की तस्वीर बदल डाली। जब पूरा देश कोरोना संक्रमण में अपने-अपने घरों में कैद था तब पूर्ण एहतियात बरतते हुए गुनी गांव के लोगों ने ग्रामसभा के माध्यम से बदलाव का संकल्प लिया। दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की लोक प्रेरक दीदियों का भी साथ मिला और 50-60 परिवारों के सामूहिक प्रयास से गुनी गांव स्वावलंबन की राह पर निकल पड़ा। ग्रामसभा में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी विकास का खाका खींचा, शुरुवात हुई शराबबंदी से। गांव की अंजलि तिर्की दीदी ने बताया कि कैसे पूरा गांव शराब के चंगुल में गोते लगा रहा था। हर दिन गांव की कोई न कोई महिला शराबी पति या पुरुष परिजनों के शोषण का शिकार होती थी। महिलाओं की इज्जत अपने ही घर गांव में तार-तार हो जाती थी। शराब ने गांव के छोटे बच्चों के जीवन को भी अपनी राह से मानो भटका ही दिया था। तब दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की लोक प्रेरक दीदियों के सहयोग से शराब बंदी का निर्णय लिया और ग्रामसभा ने भी शराब बंदी पर अपनी मौखिक मुहर लगाई। देखते ही देखते गांव शराबबंदी की राह पर चल पड़ा। स्थितियां बदलने लगी। गांव में झगड़े-झंझट कमते गए और धीरे-धीरे दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन के तहत मनरेगा योजना धरातल पर शत प्रतिशत उतारने लगी। एक साथ गुनी गांव के लोगों ने साढ़े तीन सौ एकड़ भूमि में जल संरक्षण की विभिन्न संरचनाओं का निर्माण कर डाला। टीसीबी, मेढ़बंदी, एलबीएस, सोखता गड्ढा एवं नाला जीर्णोद्धार व फलदार वृक्षारोपण को धरातल पर उतारा गया। वर्षा जल के संचयन से अब पूरे गुनी गांव की जमीन में नमी की मात्रा बढ़ गयी है। ग्रामीणों ने बताया कि इस बार खेत के साथ-साथ अतिरिक्त खाली पड़े 50 एकड़ टांड़ भूमि में विभिन्न फसलों की खेती की गई। धान, उरद, मडुवा के साथ- साथ 18 एकड़ बंजर भूमि में लेमनग्रास की भी खेती की गई है ।

बदलाव तब दिखा जब शुरुआत में गांव के विकास का विरोध करने वाले ग्रामीण अब दीनदयाल स्वावलंबन योजना में नेतृत्व कर गांव को विकास के रास्ते आगे बढ़ाने का दायित्व संभाल रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल मे जब गांव, शहरों और कस्बों में लोग बीमारी से दूर रहने के लिए डॉक्टरों और मेडिकल स्टोर का चक्कर लगा रहे हैं तब गांव के लोगों के सामूहिक निर्णय ने पूरे गांव में स्वच्छता की ऐसी मुहिम चलायी कि कोरोना संक्रमण के काल मे भी अब तक कोई ग्रामीण संक्रमित नहीं हुआ साथ ही प्रत्येक वर्ष मलेरिया, डायरिया जैसे बीमारियों से अस्पताल का चक्कर लगाने वाला गांव इस बार दवा और दारू दोनों से मुक्त है। अब राज्यस्तरीय अधिकारी भी मानने लगे हैं कि खूंटी जिले के ग्रामीणों में देश के लिए उदाहरण बनने की क्षमता है। कोरोना संक्रमण काल के पांच माह में गांव की मेहनत ने स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास की राह पर कदम बढ़ाया है।