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शिड्युल एरिया के नगर निकायों में स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसा अब बाध्यकारी नहीं होंगी

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द फॉलोअप डेस्क
केंद्र सरकार ने 2001 में (द प्रोविजन ऑफ द म्युनिसिप्लिटीज (एक्सटेंशन टू द शिड्युल एरियाज) बिल में शिड्युल एरिया के निकायों में स्टैंडिंग कमेटी के गठन का प्रावधान किया था। इस बिल को संसद में पेश किया गया था, जिसे संसद के नगरीय एवं ग्रामीण विभाग के लिए बनी स्टैंडिंग कमेटी को सौंप दिया गया। स्टैंडिंग कमेटी ने इस बिल के एक महत्वपूर्ण प्रावधान पर परिवर्तन का सुझाव दिया। कमेटी की अनुशंसा के आलोक में केंद्र सरकार ने राज्यों से सुझाव आमंत्रित किए हैं। दरअसल बिल के इस प्रावधान के अनुसार शिड्युल एरिया के संबंधित निकाय में उस निकाय के किसी आदिवासी सदस्य को स्टैंडिंग कमेटी का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाया जाना है। फिर स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसा को संबंधित निकाय के लिए मानना बाध्यकारी किया गया था। केंद्र सरकार द्वारा मांगे गये मंतव्य पर सुझाव देने से पहले राज्य सरकार ने इस विषय को कल होनेवाली टीएसी की बैठक में रखने का फैसला किया है। अर्थात टीएसी की बैठक में सदस्यों के सुझाव लेने के बाद उसे केंद्र को भेजा जाएगा। साथ ही राज्य सरकार ने एजेंडे में इसे शामिल करते हुए उस प्रावधान के विलोपन का प्रस्ताव भी दिया है। अपने प्रस्ताव में राज्य सरकार ने कहा है कि इस विलोपन से विधेयक में जनजातीय सदस्य की अध्यक्षता में प्रस्तावित Standing Committee की शक्तियां सीमित हो जाएंगी।


हालांकि राज्य सरकार केंद्र सरकार के इस बिल के अनुसार निकायों में स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसा को बाध्यकारी मानने से पहले ही इंकार कर चुकी है। 2008-09 में झारखंड नगरपालिका अधिनियम में किए गए संशोधन में इस तरह के प्रावधान नहीं रखे गए। झारखंड के नगर निकायों में किसी आदिवासी सदस्य की अध्यक्षता में स्टैंडिंग कमेटी के गठन का प्रावधान ही नहीं किया गया। उदाहरण के रूप में रांची नगर निगम में विभिन्न वार्डों को 11 समूहों में बांट कर स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव का प्रावधान किया गया। अर्थात चार और पांच वार्डों के एक समूह से एक सदस्य मनोनीत किए गए। ये स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य होते थे और मेयर उस स्टैंडिंग कमेटी की अध्यक्षता करते थे। उसी तरह धनबाद नगर निगम में किया गया। अर्थात अलग से किसी को स्टैंडिंग कमेटी का एसटी चेयरमैन नहीं बनाया गया।

टीएसी की बैठक में इन मुद्दों पर भी होगा विचार
कल की बैठक में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के वैसे ग्राम पंचायत, जिसमें 50% या उससे अधिक आदिवासी जनजातीय आबादी हो और यदि स्थल
झारखण्ड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति,खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग के विभिन्न अधिसूचनाओं द्वारा अंतराष्ट्रीय महत्व, राष्ट्रीय महत्व, राजकीय महत्व एवं स्थानीय महत्व के पर्यटन स्थलों (धार्मिक मान्यता के स्थल को छोड़कर) घोषित हो, तो पर्यटन को बढ़ावा देने, राजस्वहित एवं अवैध मदिरा पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से उक्त प्रक्षेत्र में ऑफ प्रकृति की खुदरा उत्पाद दुकानों की बंदोबस्ती की जा सकेंगी।" इसका अर्थ है कि टीएसी की सहमति हुई तो शिड्युल एरिया के ग्राम पंचायतों में शराब की खुदरा दुकाने खुलेंगी। इसी तरह उस क्षेत्र में होटल, रेस्तरां एवं बार और क्लब की अनुज्ञप्ति दी सकेंगी। इसी तरह टीएसी की बैठक में ईचाबांध को शुरु कराने पर भी सहमति ली जाएगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि ईचा बांध को निरस्त करने से 97 हजार 256 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा सृजित नहीं की जा सकेगी। ईचा बांध नहीं बनने से खरकई बराज से रबी के फसल की सिंचाई नहीं हो पायेगी। ईचा बांध के निर्माण पर अब तक 1397 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।

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