द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड राज्य समन्वय समिति के सदस्य आज राजभवन गये थे। इस दौरान सदस्यों ने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के नाम एक ज्ञापन सौंपा है। समन्वय समिति की ओर से विनोद कुमार पांडे, राजेश ठाकुर, बंधु तिर्की, फागू बेसरा और योगेंद्र प्रसाद उपस्थित थे। सौंपे गए ज्ञापन में समन्वय समिति की ओर से राजभवन को बताया गया कि विधेयक लौटाने में संविधान की अनदेखी हुई है। ज्ञापन में लिखा है कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसके नतीजा है कि झारखंड अलग राज्य बना। जब से हेमंत सोरेन सरकार सत्ता में आई है तब से ही आदिवासी, दलित, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकके हितों में विभिन्न योजनाओं पर काम कर रही है। इसलिए सरकार ने तीन महत्वपूर्ण विधेयकों यथा (1) झारखण्ड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 (2) झारखण्ड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 एवं (3). झारखण्ड (गीड़ हिंसा एवं भीड़ लिविंग निवारण) विधेयक, 2021 विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल सचिवालय के पास भेजा था।
अनुच्छेद 200 के अंतर्गत लौटाया जाए विधेयक
राज्य सरकार ने इन सभी विधेयकों को भली-भांति एवं कानूनी तौर पर परखने के बाद ही विधान सभा से पारित था। लेकिन, राज्यपाल सचिवालय द्वारा कुछ बिंदुओं पर आपत्ति कर इन्हें सरकार को लौटा दिया गया। लेकिन यह अत्यंत ही खेदजनक है कि ऐसा करते वक्त राजभवन सचिवालय के द्वारा संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया एवं इसे बगैर आपके संदेश के वापस कर दिया गया। समन्वय समिति की ओर से बताया गया कि पूर्व में जो विधेयक लौटाए गए उस समय तत्कालीन राज्यपाल ने अपनी आपत्ति बिंदुवार बताई थी। समिति की ओर से राजभवन से आग्रह किया है कि संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत जो बातें कही गई है उसी के अनुरूप फिर से तीनों विधयकों को वापस किया जाए ताकि सरकार इन तीनों विधायकों को विधानसभा से फिर से पारित कर स्वीकृति के लिए राज भवन को भेज सके।
विशेष सत्र भी बुलाना पड़ा तो बुलाएंगे
आगे कहा गया है कि आग संविधान के संरक्षक होने के साथ-साथ आप दलित, आदिवासी, पिछडे एवं अल्पसंख्यकों के प्रति भी विशेष स्नेह रखते हैं, इसलिए इन तीनों विधेयकों पर आपका सकारात्मक निर्णय अपेक्षित है। वर्तमान गठबंधन की सरकार आदिवासी, दलित, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यक समुदाय के हित में इन विधेयकों को पुनः विधान सभा से पारित कराकर इन्हें कानूनी अमलीजामा जल्द ही पहनाएगी। इसके लिए आवश्यकता पड़ेगी तो विधान सभा का विशेष सत्र भी सरकार बुला सकती है।
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