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Ranchi : बहनें आज भाइयों के लिए करेंगी करम राजा की पूजा, जगाएंगी जावा 

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रांची: 

आज भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व करम परब है। झारखंड के प्रमुख त्योहारौं में से करम भी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों की संस्कृति से जुड़ा लोकपर्व है। यहभाई-बहन के प्रेम को भी दर्शाता है।  करम पर्व भादो मास की एकादशी को मनाया जाता है। आज के दिन आदिवासी पुरुष और महिलाएं मिलकर करम देवता की पूजा करते हैं। इस मौके पर सभी पारंपरिक परिधान पहनते हैं। अकड़ा में लोक नृत्य किये जाते हैं। यह पर्व ना सिर्फ आदिवासी बल्कि इसमें सनातन धर्म प्रेमी भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। 


शुभ कार्य की शुरु हो जाते हैं आज से 
झारखंड में प्रकृति की पूजा सदियों से होती आ रही है। प्रकृति आदिवासियों के संस्कृति का हिस्सा है। आज भी इसकी प्रासंगिकता है। इसमें प्रकृति का संदेश निहित है। इसलिए करम में करम डाली, सरहुल में सखुआ फूल, जितिया में कतारी आदि की पूजा की जाती है। करम पर्व की तैयारी 7 दिनों से की जाती है। आदिवासी बड़े ही बेसब्री से इसका  इंतजार करते हैं, क्योंकि करम पर्व के बाद से ही आदिवासियों में शुभ कार्य की शुरु हो जाते हैं। 


सुनाई जाती है कहानी 
पूजा के दौरान कर्मा और धर्मा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है, इस कहानी को सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली आती है। करम के दिन घर घर में कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। महिलाएं खासकर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती है। 


सात दिन पहले ही शुरू हो जाती है करम पूजा
एकादशी से सात दिन पहले ही करम पूजा शुरू हो जाती है। करम पर्व मनाने के लिए सात दिन पहले युवतियां अपने गांव में नदी या तालाब जाती हैं, जहां बांस की टोकरी में मिट्टी डालकर उसमें धान, गेंहू, चना, मटर, मकई, जौ, बाजरा, उड़द आदि के बीज बोती हैं। उसके बाद निरंतर सात दिनों तक सुबह-शाम टोकरियों को बीच में रखकर सभी सहेलियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर व उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए गीत गाते हुए नाचती हैं। इसे जावाडाली जगाना कहा जाता है।


इस दिन पाहन सुख, शांति और संपन्नता के लिए अखरा में करम की डाली गाड़ते हैं। ये डालियां मेहनत करने और इर्ष्या-द्वेष त्यागकर भाईचारे का संदेश देती है। भादो महीन में कुएं-तालाब भर जाते हैं। धरती शस्य श्यामला हो जाती है। धना के फसल लहलहाने लगते हैं। वर्षा और शरद ऋतु का अदभुत मिलन होता है ।