द फॉलोअप डेस्क
झारखंड के स्वास्थ्य विभाग में बीते तीन सालों में दवा खरीदारी में घोटाला हुआ है। ऊंची दर पर दवा की खरीदारी की गई। ये बात सरयू राय ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। उन्होंने दावा किया की बढ़ी हुई दामों पर दवा खरीदने के कारण राज्य सरकार के खजाने को 150 करोड़ से अधिक की चोट पहुंची है। वहीं, यह सिलसिला रुका नहीं है, दवाओं की खरीदारी अभी भी जारी है।
क्या है पूरा मामला
स्वास्थ्य विभाग की निकाली एक निविदा का जिक्र करते हुए जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने कहा कि अप्रैल 2020 को विभिन्न प्रकार की दवाओं की खरीद के लिए निकाली गई थी। न्यूनतम दर वाले निविदादाताओं का चयन हो गया और उन्हें स्वीकृति पत्र भी भेजा दिया गया। पर उनसे दवा की खरीदारी नहीं की गई। इसकी जगह स्वास्थ्य विभाग ने संचिका तैयार कर जिन 103 दवाओं की राज्य के अस्पताल में मांग है उसे भारत के औषधि निर्माता लोक उपक्रम से मनोनयन के आधार पर खरीद ली। संकल्प के रूप में इस प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद से भी स्वीकृति प्राप्त कर ली गई। विभागीय संकल्प में उल्लेख किया गया है कि वित्तीय नियमावली 235 को शिथिल कर नियम 245 के तहत मनोनयन के आधार पर क्रय कर राज्य के विभिन्न अस्पतालों को आपूर्ति की जाए।
काफी अधिक दर पर खरीदी गई दवाएं
विधायक सरयू राय ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि इस संकल्प में कहीं भी अंकित नहीं किया गया कि इसके पूर्व दवाओं की खरीद के लिए निविदा प्राप्त की गई थी। न्यूनतम दर वाले निविदादाताओं का चयन कर लिया गया है। उसके साथ एकरारनामा करने के लिए स्वीकृति पत्र भेज दिया गया है। निविदा में जिन दवाओं की खरीद के लिए जो न्यूनतम दर आई थी उसी दवा को केंद्र सरकार की 5 कंपनियों से काफी अधिक दर पर खरीद की गई। इसके कारण राज्य सरकार के खजाने को 150 करोड़ से अधिक की चोट पहुंची।
कोविड काल में हुई है मनमानी
सरयू के अनुसार वर्ष 2017-18 में तत्कालीन झारखंड सरकार ने मनोनयन से खरीदारी किया था। मगर संकल्प में वित्त विभाग ने यह शर्त रख दी थी कि इन जेनरिक दवाओं का क्रय वर्ष 2017-18 के लिए किया जाए। यह संकल्प 13.09.2017 को पारित हुआ था। मगर इसके बाद कोविड काल में मनमानी दर पर दवाओं की खरीदारी की गई। जिसमें अनियमितता हुई है।