द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड के सुदूरवर्ती संथाल इलाके में रहने वाले माल पहाड़िया जनजाति के लोगों की उम्र कम हो रही है। इसे लेकर रिसर्च किया जाएगा। रिम्स का पीएसएम विभाग हेड डॉ. विद्यासागर करेंगे और उनकी टीम यह शोध करेगी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इस शोध में माल-पहाड़िया जनजाति के रहन-सहन और खानपान पर रिसर्च होगा। इस शोध के लिए रिम्स को आईसीएमआर ने फंड किया है। रिसर्च में यह जानने की कोशिश की जाएगी कि आखिर माल-पहाड़िया जनजाति की औसत आयु सीमा दूसरे देशों के जनजातियों से कम क्यों है। इस बात की जानकारी भी इक्टठा की जाएगी कि बाकि देश जनजाति किस तरह का भोजन ले रहे हैं, और उनका रहन-सहन कैसा है। रिसर्च में शामिल रिम्स के चिकित्सकों ने बताया कि यह शोध यूरोप के स्वीडन के सामी जनजाति को आधार मानते हुए किया जाएगा। सामी जनजाति की तुलना संथाल के माल-पहाड़िया जनजाति से होगी। स्वीडन के सामी जनजाति की औसत जीवन लगभग 83 साल है। जबकि माल-पहाड़ियों की 60 वर्ष से भी कम। रिसर्च का यह उद्देश्य है कि जनजातियों के खान-पान में सुधार लाया जा सके, ताकि उनके स्वास्थ्य में सुधार हो औऱ वह भी लंबा जीवन जी सके। पहाड़िया समाज के अस्तित्व की रक्षा वर्तमान समय में एक महत्त्वपूर्ण ज़रूरत बन गई है। यह समुदाय ना केवल हमारी धरोहर हैं, बल्कि जल, जंगल और ज़मीन के सबसे बड़े रक्षकों में से एक हैं। जंगल को जीवनदायनी मानने वाले इस समुदाय की वजह से ही ना केवल जंगल की रक्षा संभव है, बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी इनकी बहुत भूमिका है।
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