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रांची : तीन दशकों के स्थानीय लोकतांत्रिक शासन के तजुर्बे और भावी संभावनाओं पर आयोजित संगोष्ठी संपन्न 

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द फॉलोअप डेस्क
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा रांची के होटल चाणक्य बीएनआर में ‘भारत में स्थानीय लोकतांत्रिक शासन’ विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवार को समापन हुआ। 21 से 23 जून तक आयोजित इस संगोष्ठी के 25 सत्रों में देश के 11 राज्यों से करीब 270 सामाजिक कार्यकर्ताओं, गैर- सरकारी संगठनों के सदस्यों, पत्रकारों, सरकारी महकमों के अधिकारियों, अकादमिक जगत से जुड़े लोगों और स्थानीय निकायों के जन-प्रतिनिधियों ने शिरकत की। देश में पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए तीन दशक बीत चुके हैं, पांचवीं अनुसूची में शामिल आदिवासी अंचलों के लिए स्व-शासन के कानून पेसा को लागू हुए ढाई दशक बीत चुके हैं और आदिवासी समुदायों व अन्य परंपरागत जंगल निवासी समुदायों के खिलाफ हुए ऐतिहासिक अन्यायों को दूर करने की मंशा से आए वनाधिकार कानून को लागू हुए डेढ़ दशक बीत चुके हैं। ऐसे में तीन दिवसीय आयोजन ग्रामीण और आदिवासी अंचलों के भारत से सीधे तौर पर जुड़े मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ। बताते चलें कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य इन तीन दशकों की यात्रा का हर पहलू का जायज़ा लेना था। इसके अलावा भविष्य में विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिकीकरण के लिए मौजूद अवसरों के भविष्य को समझना रहा। 

भारत की शासन व्यवस्था की कल्पना बिना पंचायती राज के नहीं

राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज 21 जून को ग्रामीण और आदिवासी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों की पृष्ठभूमि और भावी दशा-दिशा पर चिंतन से हुआ। उद्घाटन सत्र में भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के सचिव सुनील कुमार, थॉमस आइज़ेक, केरल सरकार के पूर्व वित्त मंत्री, श्री विजयानंद, केरल सरकार के पूर्व मुख्य सचिव और उमा महादेवन, अतिरिक्त मुख्य सचिव कर्नाटक ने शिरकत की। पंचायती राज मंत्रालय के सचिव सुनील कुमार ने कहा कि विकेंद्रीकरण के तीन दशकों बाद अब भारत की शासन व्यवस्था की कल्पना बिना पंचायती राज के नहीं हो सकती। इसके बाद तीन अलग-अलग हॉल में समानांतर सत्रों का आयोजन हुआ। पहले दिन कुल 6 सत्र आयोजित हुए। 22 जून को भी समानांतर सत्रों में स्थानीय स्व-शासन को लेकर राज्यों की स्थिति, वनाधिकार कानून के पंद्रह वर्षों का सफर, पेसा कानून के 25 सालों के मुख्य सबक आदि का आयोजन हुआ। 

पत्रकार पी. साईनाथ ने रखे अपने विचार
स्थानीय शासन को लेकर शुक्रवार को मुख्य धारा मीडिया में कम होती जगह पर चर्चा हुई। जिसमें देश के मशहूर पत्रकार पी. साईनाथ ने अपने विचार रखे। उन्होंने रांची शहर के पत्रकारों से संवाद किया। इसके साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों के लिए इन विषयों के सही आख्यान लिखने की एक कार्यशाला भी आयोजित हुई। अंतिम दिन के सत्र में झारखंड के विशेष संदर्भ में इन तीनों कानूनों से मिली संभावनाओं पर और पेसा व वनाधिकार कानून से इन्हें मिले विस्तार पर विचार-विमर्श हुआ।

वंदना दादेल भी रहीं उपस्थित
तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में सीएम हेमंत सोरेन की प्रधान सचिव वंदना दादेल भी मौजूदगी रही। इस सत्र में अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों ने तीन दिनों के मुख्य मामलों पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन के ज़ुल्फिकार हैदर ने किया। ज़ुल्फिकार ने कहा कि यहां इन तीन दिनों में इतने सक्षम लोग एक साथ आए, इतना तजुर्बा और इतनी संभावनाएं दिखीं। ज़ाहिर है कुछ बड़ी चुनौतियां भी सामने आई। हमें चुनौतियों के लिए लोगों की क्षमता बढ़ाना होगी और संभावनाओं को फलीभूत करना होगा।

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