इस्लामिक कैलेंडर में 9वें महीने को रमजान का महीना कहा जाता है। इस महीने को सबसे ज्यादा रहमत वाला महीना बताया गया है क्योंकि इस महीने में मांगी गई दुआएं अल्लाह जरूर कबूल करते हैं। इस महीने में रोजेदारों की फरियाद को अल्लाह खारिज नहीं करते हैं। इस महीने को पाक रमजान का महीना इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इसी महीने में ही पैगंबर मोहम्मद साहब को अल्लाह से कुरान की आयतें मिली थीं। रमजान का महीना 30 दिनों का माना जाता है। इसमें पूरे महीने को 10-10 करके 3 भागों में यानी अशरों में बांटा गया है। पहले 10 दिन के रोजा को रहमत कहते हैं, दूसरे 10 दिनों के रोजा को बरकत और अंतिम 10 दिनों के रोजा को मगफिरत कहत हैं। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया ऐ लोगो अपनी ज़िंदगी के हर पल दुआ किया करो कि रमज़ान आने से पहले अगर तुम्हारी मौत लिख दी गई है तो अल्लाह से दुआ करो कि तुम्हारी मौत रमज़ान के महीने में हो।
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कुरान और रोजे करते हैं सिफारिश
रसूल सल्लल्लाहअलैहिवसल्लम ने कहा है कि, हिसाब के दिन रोजे ही अल्लाह से सिफारिश करते हैं, ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को खाने, पीने और उसकी तमाम दूसरी चाहतों को दिन में रोक दिया था। आप इसके पक्ष में मेरी सिफारिश कबूल कर लीजिए। इसी तरह कुरआन भी अल्लाह से सिफारिश करता है कि, ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को रात में सोने से रोक दिया था, अब आप इसके हक में मेरी सिफारिश को कबूल कर लीजिए। कुरान और रोजे के सिफारिश से बंदे को अल्लाह की रहमत मिल जाएगी।
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